Ghar ki Murgi Dal Barabar book and story is written by S Sinha in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ghar ki Murgi Dal Barabar is also popular in प्रेरक कथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
घर की मुर्गी दाल बराबर - उपन्यास
S Sinha
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
सुदीप जमशेदपुर के एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क था . उसकी नौकरी स्थायी नहीं थी .कंपनी बीच बीच में उसे कुछ दिनों के लिए बैठा देती थी ताकि उसको रेगुलर स्टाफ का हक़ नहीं मिले . वहीँ बिष्टुपुर में एक छोटे से घर में किराए पर अकेला रहता था .उसके माता पिता दोनों इस दुनिया में नहीं थे .सुदीप की प्रारम्भिक शिक्षा पटना के मीठापुर स्थित दयानंद विद्यालय से हुई थी .इस स्कूल से वह बहुत प्रभावित था .इस स्कूल के मुख्य भवन पर कंक्रीट के बड़े बड़े हिंदी और अंग्रेजी अक्षरों में लिखा है “ सादा जीवन उच्च विचार , मानव जीवन का श्रृंगार , PLAIN LIVING HIGH THINKING “ . बाद में जमशेदपुर के बिष्टुपुर के ‘ के .एम .पी .एम. स्कूल’ से पढ़ाई कर उसी शहर के कॉपरेटिव कॉलेज से हिंदी में ऑनर्स के साथ स्नातक तक की पढ़ाई की थी .
भाग 1 अक्सर सुनने या देखने में आता है कि अपने घर की प्रतिभा को समुचित मान्यता नहीं मिलती है .... ...और पढ़े कहानी - घर की मुर्गी दाल बराबर सुदीप जमशेदपुर के एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क था . उसकी नौकरी स्थायी नहीं थी .कंपनी बीच बीच में उसे कुछ दिनों के लिए बैठा देती थी ताकि उसको रेगुलर स्टाफ का हक़ नहीं मिले . वहीँ बिष्टुपुर में एक छोटे से घर में किराए पर अकेला रहता था .उसके माता पिता दोनों इस दुनिया में नहीं थे .सुदीप की प्रारम्भिक शिक्षा पटना के मीठापुर स्थित दयानंद विद्यालय से
भाग - 2 . भाग 1 में आपने पढ़ा कि सुदीप और नंदा दोनों रांची में एक प्रकाशक के पास गए …. ...और पढ़े कहानी - घर की मुर्गी दाल बराबर नंदा और सुदीप दोनों एक दूसरे की और देखने लगे .रांची में कोई उनका परिचित था नहीं और होटल में पैसे ज्यादा लगते .कुछ देर बाद नंदा बोली “ अभी तो रुकना मुश्किल है , फिर अगले सप्ताह आती हूँ
अंतिम भाग 3 - पिछले अंक में आपने पढ़ा कि सुदीप और नंदा जब रांची गए तब एक प्रकाशक ने सुदीप की कुछ रचनाएं स्वीकार कर ली .... ...और पढ़े कहानी - घर की मुर्गी दाल बराबर “ और कुछ रचनाएँ जो समसामयिक नहीं हैं , उनके बारे में तुम्हें बता रही हूँ .दरअसल आजकल पाठक को सहज मनोरंजक रचनाएँ चाहिये .वैसे भी आजकल इतने मूवीज और टी वी सीरियल के आगे कम ही लोग हैं जो मैगज़ीन या किताबें खरीद कर पढ़ते हैं . वैसे भी हमारे यहाँ किताबों पर पैसे खर्च करने वालों की संख्या बहुत कम है .