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अनमोल सौगात - उपन्यास
Ratna Raidani
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
"मम्मी मम्मी!" पवित्रा ने घर में घुसते हुए उत्साह से आवाज़ लगायी। किन्तु उसे घर का वातावरण कुछ बोझिल सा महसूस हुआ। मुकेश हमेशा की तरह टी.वी. पर घटिया और साजिशों से भरे पारिवारिक सीरियल देखने में व्यस्त था। पवित्रा इन सब का असर अपने घर पर भी देख रही थी लेकिन अब वह इन्हें नज़रअंदाज़ करने लगी थी। अपना बैग एक तरफ रखते हुए वह सीधे कमरे की तरफ गयी।
भाग १ "मम्मी मम्मी!" पवित्रा ने घर में घुसते हुए उत्साह से आवाज़ लगायी। किन्तु उसे घर का वातावरण कुछ बोझिल सा महसूस हुआ। मुकेश हमेशा की तरह टी.वी. पर घटिया और साजिशों से भरे पारिवारिक सीरियल देखने में ...और पढ़ेथा। पवित्रा इन सब का असर अपने घर पर भी देख रही थी लेकिन अब वह इन्हें नज़रअंदाज़ करने लगी थी। अपना बैग एक तरफ रखते हुए वह सीधे कमरे की तरफ गयी। नीता अपने कमरे में ही थी। रो रोकर उसकी आँखें सूज गई थी। पवित्रा समझ गई कि ये पैसों को लेकर हुई लड़ाई का असर है। अपने
भाग २ २० वर्षीय नीता बी.ए. फाइनल ईयर में पढ़ रही थी। अपने कॉलेज की टॉपर और अन्य गतिविधियों में भी हरफनमौला थी। खेल कूद का भी उसे बहुत शौक था। बैडमिंटन उसका पसंदीदा खेल था। बी.ए. की पढ़ाई ...और पढ़ेकरने के बाद वह आगे और भी पढ़ना चाहती थी। नीता के पिता शशिभूषण पांडे वैसे तो मूल रूप से उत्तरप्रदेश के जौनपुर शहर के निवासी थे किन्तु सरकारी नौकरी में होने के कारण कई सालों से विभिन्न प्रदेशों में उनका तबादला होते रहता था। इस समय वे मध्य प्रदेश के जबलपुर में बिजली विभाग में उच्च पद पर कार्यरत
भाग ३ रवि के पिता बृजभूषण मैनी का तबादला कुछ दिनों पहले ही जबलपुर में हुआ था। वे उसी डिपार्टमेंट में जूनियर पद पर थे जहाँ नीता के पिता कार्यरत थे। रवि की माँ कल्पना एक गृहणी, बहुत बातूनी ...और पढ़ेरूढ़िवादी महिला थी। इकलौते पुत्र रवि से बहुत लगाव और अपेक्षाएं थी। रवि ने इसी वर्ष M.Com. पास किया था और जबलपुर में ही एक प्राइवेट फर्म में काम शुरू किया था। उस दिन नीता को पहली बार देखने के बाद से वह उसी के विचारों में खोया रहता था। उसके बारे में जानने की उत्सुकता भी बहुत थी किन्तु
भाग ४ नीता मंदिर के पिछवाड़े पहुँची। चूँकि दोपहर का समय था इसलिए मंदिर में सन्नाटा था। "ट्रॉफी जीतने की बहुत बहुत बधाई" रवि के शब्दों में खुशी थी क्योंकि उसके सामने नीता खड़ी थी, जो कि किसी मीठे ...और पढ़ेके सच होने जैसा था। "Thank you!! अब बताओ मुझे यहाँ क्यों बुलाया?" नीता ने धीमे स्वर में पूछा। "तुम्हें नहीं पता?" रवि ने मुस्कुराते हुए सवाल का जवाब देने के बजाय नीता से ही सवाल किया। नीता ने सर हिलाते हुए ना में जवाब दिया और दूसरी तरफ देखने लगी। "नीता, आज मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना
भाग ५ जैसे ही नीता ने घर में प्रवेश किया तो देखा कि शशिकांतजी बैचेनी से टहल रहे थे और उर्मिला भी चिंतित नजर आ रही थी। नीता से शशिकांतजी ने पूछा, "क्यों? कॉलेज का प्रोग्राम कैसा रहा?" नीता ...और पढ़ेभावों को समझ नहीं पायी और बड़ी सहजता से जवाब दिया, "बहुत अच्छा था पापा। बस थोड़ी थकान हो गयी। मैं कमरे में जाकर आराम कर लेती हूँ।" वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी। शशिकांतजी ने पीछे से व्यंगात्मक लहजे में कहा, "हाँ, कॉलेज बंक करके पिक्चर देखना और रेस्टॉरेंट में खाना पीना अच्छा ही होता है और