अनमोल सौगात - 6 Ratna Raidani द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अनमोल सौगात - 6

भाग ६

रवि कॉलेज के बाहर नीता का इंतज़ार कर रहा था। दोपहर के १२ बजे तक नीता नहीं आयी। रवि की बैचेनी बढ़ने लगी थी। उसने पास के P.C.O. से नीता के घर पर फोन लगाया किन्तु हर बार उर्मिला ने ही फोन उठाया और रवि को बिना कुछ बोले ही बार बार फोन काटना पड़ा। नीता समझ गयी थी कि रवि ही फोन कर रहा है किन्तु वह मजबूर थी। अब रवि का धैर्य भी जवाब देने लगा था।

रवि ने कॉलेज से नवीन के घर का रुख किया इस आशा से कि शायद संध्या से कुछ जानकारी मिल सके।

"हाय नवीन! कैसे हो? आज ऑफिस से छुट्टी ली है। सोचा अगर तुम फ्री हो तो तुम्हारे साथ कुछ समय बाहर बिताया जाए।" रवि ने कहा।

नवीन ने जवाब में कहा, "सॉरी यार रवि! आज मुझे बहुत जरूरी काम से बाहर जाना है। फिर किसी दिन साथ में चलेंगे।"

रवि को संध्या कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। उसने नवीन से पानी पिलाने के लिए कहा। नवीन ने संध्या को आवाज़ लगायी, "संध्या, रवि के लिए एक गिलास पानी लाना। रवि मैं अपना बैग लेकर आता हूँ। तुम मुझे बस स्टॉप तक छोड़ दोगे?"

 

"हाँ जरूर।" रवि ने जवाब दिया।

 

नवीन अंदर अपना बैग लेने चला गया। तभी संध्या पानी लेकर आयी। रवि ने एक सेकंड भी बर्बाद किये बिना अपनी बात शुरू की. "संध्या! मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मैं कब से कोशिश कर रहा हूँ पर नीता से बात नहीं हो पा रही है। मेरा उससे बात करना बहुत जरूरी है। तुम प्लीज उस तक मेरा एक मैसेज पहुँचा दो कि मैं गणेश मंदिर के पीछे उसका इंतज़ार कर रहा हूँ।" संध्या कुछ समझ पाती तब तक नवीन आ गया इसलिए रवि को अपनी बात वहीं खत्म करनी पड़ी। दोनों घर से निकल गए।

 

रवि मंदिर में खड़े खड़े यही सोच रहा था कि पता नहीं संध्या ने उसका सन्देश नीता तक पहुँचाया होगा या नहीं। पता नहीं नीता अभी तक आयी क्यों नहीं। करीब एक घंटा होने के बाद भी नीता का कोई अता पता नहीं था। रवि को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे तभी उसने संध्या को मंदिर की तरफ आते हुए देखा। संध्या को देखकर उसे राहत मिली कि कम से कम नीता के विषय में कोई समाचार या सन्देश अवश्य मिलेगा।

 

संध्या ने कहा, "रवि अब नीता तुमसे कभी नहीं मिल पाएगी।"

 

"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" रवि ने स्तब्ध होकर पूछा।

 

संध्या ने पिक्चर से लौटने के बाद जो कुछ भी नीता के घर पर हुआ, वह पूरा घटनाक्रम उसे सुनाया। रवि नीता से मिलकर उसे अपने घर पर हुए बवाल के बारे में बताना चाह रहा था पर नीता के घर पर भी ऐसा कुछ हुआ होगा, इसकी उसे जरा भी कल्पना नहीं थी। संध्या ने रवि को सांत्वना देते हुए कहा, "मैं तुम दोनों के लिए भगवान से प्रार्थना करुँगी कि शीघ्र ही इस समस्या का हल निकले और तुम दोनों हमेशा के लिए मिल जाओ।"

 

रवि ने संयमित होते हुए कहा, "संध्या! तुमने मेरे लिए आज जो भी कुछ किया है, उसके लिए धन्यवाद शब्द बहुत कम होगा। अब मैं कुछ और उपाय सोचता हूँ।"

 

संध्या वहाँ से चली गयी। मामला ज्यादा बिगड़ जाये, उसके पहले इसका हल ढूंढने का रवि ने निश्चय कर लिया। अगले दिन रविवार था। रवि सुबह जल्दी तैयार होकर अपने माँ बाप को बिना बताये घर से निकला, क्योंकि अब उसे उनके सहयोग की कोई उम्मीद नहीं थी। जो कुछ भी करना था उसे ही करना था, अतः वह अकेले ही नीता के घर गया। घंटी दबाने पर उर्मिला ने दरवाजा खोला।

 

"आप कौन हैं? किससे मिलना है?" उर्मिला ने पूछा।

 

"नमस्ते आंटी! मैं रवि हूँ। रवि मैनी।" उर्मिला आश्चर्यचकित थी। वह कुछ कहती उससे पहले ही शशिकांतजी ने पूछा, "उर्मिला! कौन आया है?" और वह दरवाजे पर आ गए। रवि को यूं अचानक देखकर उनका पारा चढ़ने लगा। वे रवि को पहचान गए थे क्योंकि उन्होंने उसे पिक्चर से नीता के साथ निकलते हुए देखा था।

 

पड़ोसियों के सामने कोई तमाशा ना बने इसलिए उन्होंने अपने गुस्से पर काबू रखते हुए कहा, "उर्मिला अंदर आओ और दरवाजा बंद करो।"

 

रवि आश्वस्त हुआ कि कम से कम अंदर आने का मौका मिला। वह इधर उधर देखने लगा। शशिकांतजी ने क्रोधित स्वर में कहा, "इधर उधर देखने की जरूरत नहीं है। क्यों आये हो बताओ और तुरंत रवाना हो जाओ।"

 

"अंकल" जैसे ही रवि ने कहा, शशिकांतजी भड़क गए। "मैं तुम्हारा अंकल नहीं हूँ।"

 

"सॉरी सर! मैं नीता और अपने रिश्ते के बारे में आपसे बात करने आया हूँ। हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं। मैं आपको पूरा विश्वास दिलाता हूँ कि मैं उसे बहुत खुश रखूँगा। हमें आपका आशीर्वाद चाहिए। मैं जानता हूँ की हम अलग जाति के हैं पर हमारी खुशी एक दुसरे के साथ हैं।" रवि ने पूरी हिम्मत से अपनी बात कही।

 

"अच्छा तो अब तुम मुझे बताओगे मेरी बेटी की खुशी के बारे में। उसका रिश्ता कहाँ और किससे करना है ये मैं तय करूँगा। मैं जानता हूँ उसके लिए क्या अच्छा है क्या नहीं।" शशिकांतजी की आवाज़ ऊँची होती जा रही थी।

 

"नहीं पापा! आप नहीं जानते कि मेरी खुशी किसके साथ है। आपको सिर्फ अपने पद और प्रतिष्ठा की चिंता है।" नीता ने सीढ़ियों से उतारते हुए कहा।

 

नीता की इस बेबाकी से उर्मिला और शशिकांतजी हतप्रभ रह गए।

 

"नीता अपने कमरे में जाओ।" शशिकांत जी ने आदेश दिया।

 

नीता ने पलटकर जवाब दिया, "नहीं, मैं कहीं नहीं जा रही। जबसे रवि यहाँ आया है, आप उसकी बेइज्जती किये जा रहे हैं। अगर हम चाहते तो बिना आपके आशीर्वाद के भी शादी ---!" नीता को बीच में रोकते हुए उर्मिला ने कहा, "नीता, तुम होश में तो हो? क्या बोले जा रही हो?"

 

अब शशिकांतजी से और नहीं रहा गया और उन्होंने रवि की बाँह पकड़ते हुए धक्का देकर उसे गेट से बाहर कर दिया। रवि और नीता मिन्नतें करते रहे पर उन्होंने एक न सुनी और दरवाजा बंद कर दिया।

 

"उर्मिला, अपना सामान बाँध लो। आज शाम को ही तुम और नीता जौनपुर जाओगे।" शशिकांतजी ने गुस्से से काँपते हुए कहा। नीता की बातें सुनने के बाद, वो अब एक पल भी नीता और रवि को नहीं देना चाहते थे।

 

"पापा प्लीज, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। आप ऐसा नहीं कर सकते। प्लीज पापा।" नीता ने रोते गिड़गिड़ाते हुए कहा।

 

कुछ घंटो बाद नीता ट्रेन की सीट पर बैठी हुई थी। उसके आँसू थम ही नहीं रहे थे और बूंदे उसी घड़ी पर गिरे जा रही थी जो रवि ने उसे गिफ्ट की थी। घड़ी का समय और जीवन के क्षण दोनों ही धुंधले होते जा रहे थे।