Prabodh Kumar Govil लिखित उपन्यास कोरोना काल की कहानियां

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कोरोना काल की कहानियां द्वारा  Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
आंसू रुक नहीं रहे थे। कभी कॉलेज के दिनों में पढ़ा था कि पुरुष रोते नहीं हैं। बस, इसी बात का आसरा था कि ये रोना भी कोई रो...
कोरोना काल की कहानियां द्वारा  Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
"सपनों की सेल" पिछले एक घंटे में उसने सातवीं बार मोबाइल में समय देखा था। गाड़ी आने में अब भी लगभग सवा घंटे का समय बाक़ी...
कोरोना काल की कहानियां द्वारा  Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
"विषैला वायरस" - प्रबोध कुमार गोविल वो रो रहे थे। शायद इसीलिए दरवाज़ा खोलने में देर लगी। घंटी भी मुझे दो- तीन बार बजानी...
कोरोना काल की कहानियां द्वारा  Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
बन्नो तेरा कजरा लाख का ! आर्यन बहुत ख़ुश था। उसके पिता आज की शानदार पार्टी के साथ होने वाली मीटिंग में उसे कंपनी के निदे...
कोरोना काल की कहानियां द्वारा  Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
मेरे पास पूरा एक घंटा था।स्पोर्ट्स क्लब में टेनिस की कोचिंग के लिए अपने पोते को छोड़ने के लिए मैं रोज़ छह बजे यहां आता थ...