Bhutiya kamra book and story is written by jayshree Satote in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Bhutiya kamra is also popular in डरावनी कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
भूतिया कमरा - उपन्यास
jayshree Satote
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
पापा की जोब मुम्बंई ट्रान्सफर हुई थी।कल रात ही पापा-मम्मी और मे विस्वकर्मा एपार्टमेन्ट के आठवे माले पे फ्लेट नंबर 103 मे सीफ्ट हुए थे।लगभग सारा सामान आ चुका था।लेकिन कुछ सामान लाना अभी भी बाकी था। मेरा एडमिसन अब यहा की स्कुल मे करना था लेकीन पापा को काम था तो कुछ दिन के बाद कराने को कहा था।तब तक मेने सोचा की एपार्टमेन्ट मे कुछ दोस्त बना लु। सुबे उठकर पापा जोब के लिए निकल गये।मे लेट उठी थी।थोडी आलस आ रही थी तो मे बाल्कनी मे चली
पापा की जोब मुम्बंई ट्रान्सफर हुई थी।कल रात ही पापा-मम्मी और मे विस्वकर्मा एपार्टमेन्ट के आठवे माले पे फ्लेट नंबर 103 मे सीफ्ट हुए थे।लगभग सारा सामान आ चुका था।लेकिन कुछ सामान लाना अभी भी बाकी था। ...और पढ़े मेरा एडमिसन अब यहा की स्कुल मे करना था लेकीन पापा को काम था तो कुछ दिन के बाद कराने को कहा था।तब तक मेने सोचा की एपार्टमेन्ट मे कुछ दोस्त बना लु। सुबे उठकर पापा जोब के लिए निकल गये।मे लेट उठी थी।थोडी आलस आ रही थी तो मे बाल्कनी मे चली
उसने लडके ने कहा की..."हे....!!!तुम्हे ये आवाजे भी सुनाई दे रही है!!!....म..मेरे....मम्मी-पापा...."मेने उसे कहा....की "क...क्यो ईतना झगड रहे है???तुम चुप कराओ उन्हे...."वो कुछ नही बोले और जोर जोर से हसने लगा....मेरा डर अब बढ गया था......डरते डरते मेने अपने ...और पढ़ेपीछे लेना शुरू कर दिया.....पर उसने अचानक से मुझे आवाज दि और मुझे वही रोक लिया और कहा की.... "रुको....अब मे...तुम्हारे साथ ही रहुगा....हंम्मेशा..........""त....तुम मेरे साथ क्यो रहोगे भला" मे घबराते हुए बोली....."क्यो की तुमने मुझे देखा....मुझ से बाते की...अब मे तुम्हारा...दोस्त हु....."इतना केह के वो और हसने लगा......मुझे बोहोत अजीब लग रहा था वो....उसने कहा की "घबराओ मत....मे दोस्त
मै सिडीयो पे भाग ही रही थी की अचानक वो लडका मेरे सामने आ गया...मे जोर से टकरा गई उससे और गीर गई....मे जेसे ही खडी हुई एकदम से मे फ्लेट नंबर 104 के सामने आ चुकी थी....मे भाग ...और पढ़ेघर की ओर बढी...घर के बहार पोहोचते ही मे जोर जोर से घर का दरवाजा खटखटाने लगी....माँ ने जेसे ही दरवाजा खोला मे लिपट गई उनसे..."क्या हुआ तुम्हे....बताओ मुझे क्या हुआ तुम्हे???"...माँ बोले..."म...माँ वो....म...मे..."...मे माँ को बताने ही जा रही थी की वो लडका मेरे सामने आ गया और मे एकदम से सुन्न पड गई...मे आते ही चुप-चाप एक कोने
मे उस लडके से बोहोत डर गई थी....पर कुछ भी हो जाए मुझे जानना था...की उसने मुझे ये लोकीट क्यो दिया...?? आखिर कोन था वो...???क्या वो जानता था मुझे....???आखिर उसे क्या चाहीये था मुझसे...????और उस कमरे मे कुछ....अरे....क्या था....???ऐसे ...और पढ़ेसवालो के साथ पेहले मे नहा कर फ्रेस हो गई... फिर नास्ता करने बेठी...पर मेरा ध्यान अब भी उस लडके और उसके दिये लोकीट पर था...मे नास्ता कर के अपने बेड रूम मे चली गई....मेने लोकीट को अपने हाथो मे लिया और मेने सोच लिया की कुछ भी हो जाये मे उस फ्लेट....नंबर 104 मे जरूर जाउंगी....और मे बस निकल