Bhutiya kamra - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

भूतिया कमरा - 1

पापा की जोब मुम्बंई ट्रान्सफर हुई थी।कल रात ही पापा-मम्मी और मे विस्वकर्मा एपार्टमेन्ट के आठवे माले पे फ्लेट नंबर 103 मे सीफ्ट हुए थे।लगभग सारा सामान आ चुका था।लेकिन कुछ सामान लाना अभी भी बाकी था।

मेरा एडमिसन अब यहा की स्कुल मे करना था लेकीन पापा को काम था तो कुछ दिन के बाद कराने को कहा था।तब तक मेने सोचा की एपार्टमेन्ट मे कुछ दोस्त बना लु।

सुबे उठकर पापा जोब के लिए निकल गये।मे लेट उठी थी।थोडी आलस आ रही थी तो मे बाल्कनी मे चली गई।

मे बाल्कनी मे पोहची तो क्या देखती हु।जीस एपार्टमेन्ट मे हम थे वह खंडर सा लग रहा था।बिल्डीग बोहोत पुरानी सी लग रही थी।बिल्डीग के आसपास देखा तो बोहोत सारे सुखे हुए पेड-पोधै नजर आ रहे थे।बोहोत ही संन्नाटा छाया हुआ था।मानो जेसे एपार्टमेन्ट मे बस मै ही थी।

मै भाग के घर मे आ गई।मेने माँ को कहा की "हम यही ही क्यो रेहने आ गये???कोई ओर जगह घर देखते ना माँ...."

माँ ने कहा..."हा....मुझे भी ये जगह ठीक नही लगी।पर पापा को अर्जन्ट काम था तो उनके दोस्तने यही घर बताया।अब हमे कुछ दिन यही रहना होगा।"

मेने सोचा की कोई बात नही।लोग तो रेहते ही होगे यहा।मेने फ्रेस होकर खाना भी खा लिया।

साम हो गई थी।घर मे बेठे बेठे मे बोहोत बोर हो चुकी थी तो सोचा चलो बाहार घुम के आती हु।

मेने घर का दरवाजा खोला मे लिफ्ट के पास गयी।वहा देखा तो मै क्या देखती हु...लिफ्ट तो बन्द थी।

मे सोच ही रही थी की सिडीया उतर के निचे चली जाती हु की....की अचानक से मेने एक चीख सुनी...मे चोक गई।वह चिख हमारे सामने वाले फ्लेट 104 मे से आई थी।मुझे लगा की सायद कोई नही रेहता होगा.....उस फ्लेट मे।

कुछ ही देर मे उस फ्लेट मे से जोर जोर से झगडो की आवाजे आने लगी।

मे सुन ही रही थी की अचानक से 104 फ्लेट का दरवाजा खुलने लगा।मेने अपने कदम पीछे ले लिए।झगडो की आवाजे और तेज हो गई।मेने सोचा की क्या है ये सब...झगडो की आवाजो के साथ मेरी नजर उस फ्लेट 104 पे पडी।

मेरी नजर पडते ही मुजे क्या दिखा.....अंदर मुझे चुप-चाप से बेठा एक लडका दिखा।वो सायद कीसी बात को लेकर गुम-सुम सा लग रहा था।अचानक से उसने मुझे बाहर देख लिया।वो खडा हुआ।मानो कई सालो बाद उठा हो।उसने मेरी तरफ कदम बढाए।मेरे कदम पीछे चलने लगे।वो अचानक मेरे पास आ गया मे डर बोहोत गई।पर उसे मेहसुस नही होने दे रही थी की मे डर रही हु।

वो लडका मेरे सामने आकर खडा हो गया और कुछ नही बोल रहा था।

मेने सोचा सायद उसे पता नही होगा की हम यहा रेहने आये है।मेने सोचा की मे ही बात कर के देखती हु।मेने उसे देखा और पुछा की..."क्या तुम भी यही रेहते हो ???"

वो लडका मेरे लफ्ज सुन मानो चोक गया...उसने अचानक मुझसे कहा की..."एय लडकी क.....क्या....तुम मुझे देख सकती हो....??हा...म..मे...यही रेहता हु।"

मुझे कीसी बात का कोई अंदाजा नही था बस अजीब लग रहा था सब...झगडो की आवाज जोर जोर से आ रही थी....मेने उसे पुछा...."ये आवाजे...कोन इतना झगड रहा है भला????"

उसने कहा की..."हे....!!!तु...तुम्हे ये आवाजे भी सुनाई दे रही है!!!....म...मेरे....मम्मी-पापा...."

मेने उसे कहा....की "क्यो ईतना झगड रहे है???तुम चुप कराओ उन्हे...."

वो कुछ नही बोले और जोर जोर से हसने लगा...

मेरा डर अब ओर बढ गया था......

Shhhhh.......

To be continue.....

By jayshree_Satote

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