Suratiya book and story is written by vandana A dubey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Suratiya is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सुरतिया - उपन्यास
vandana A dubey
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
’नमस्ते बाउजी. कैसे हैं?’बाहर बरामदे में बैठे बाउजी यानी रामस्वरूप शर्मा जी, सुधीर के दोस्त आलोक के इस सम्बोधन और उसके पैर छूने के उपक्रम से गदगद हो गये. ’ठीक ही हूं बेटा. अब बुढ़ापे में और कैसा होना है? भगवान जितने दिन अभी और कटवाये यहां काटेंगे. अपनी इच्छा से कब कौन गया है? शरीर है तो हारी-बीमारी है, लाचारी है. क्या कीजियेगा? सब झेलना है....!’ किसी को अपनी ओर मुखातिब देख बाउजी ने सारी बातें एक साथ कह लेनी चाहीं. लेकिन तब तक सुधीर अन्दर से आ गया था. बोलते हुए बाउजी की ओर उसने जिन नज़रों से देखा,
’नमस्ते बाउजी. कैसे हैं?’बाहर बरामदे में बैठे बाउजी यानी रामस्वरूप शर्मा जी, सुधीर के दोस्त आलोक के इस सम्बोधन और उसके पैर छूने के उपक्रम से गदगद हो गये. ’ठीक ही हूं बेटा. अब बुढ़ापे में और कैसा होना ...और पढ़ेभगवान जितने दिन अभी और कटवाये यहां काटेंगे. अपनी इच्छा से कब कौन गया है? शरीर है तो हारी-बीमारी है, लाचारी है. क्या कीजियेगा? सब झेलना है....!’ किसी को अपनी ओर मुखातिब देख बाउजी ने सारी बातें एक साथ कह लेनी चाहीं. लेकिन तब तक सुधीर अन्दर से आ गया था. बोलते हुए बाउजी की ओर उसने जिन नज़रों से देखा,
अचानक गुड्डू को याद आया कि उसके स्कूल में भी तो लोककला पेंटिंग होने वाली है, वो भी नेशनल लेबल की!! यदि बाउजी कोलाज़ जानते हैं, तो और भी बहुत कुछ जानते होंगे. गुड्डू तुरन्त वापस लौटा. बाउजी को ...और पढ़ेबाउजी तो बाखुशी तैयार हो गये. कब से तो कोई काम जैसा काम खोज रहे थे वे. अब हाथ आया है तो छोडेंगे नहीं. गुड्डू भी मारे खुशी के दौड़ता हुआ सरोज के पास गया खबर सुनाने. “जानती हो मम्मा, बाउजी कोलाज़ जानते हैं और फ़ोक पेन्टिंग भी. वे मेरी एग्जीबिशन के लिये पेंटिंग बनायेंगे...हुर्रे.....!” “अरे! बाउजी कैसे बनायेंगे? उन्हें
आप सोच रहे होंगे कि हम इतना सब क्यों बता रहे? अरे भाई! न बतायें, तो आप बाउजी को जान पायेंगे? नहीं न? तो चुपचाप पढ़िये उनके बारे में. “क्या बाउजी..... कब से आवाज़ें लगा रही. आप सुनते ...और पढ़ेनहीं. कितनी बार कहा है कान की मशीन लगाये रहा कीजिये. अगर नहीं लगानी थी, तो खरीदवाई ही क्यों? पच्चीस हज़ार की मशीन पड़ी है बिस्तर पर और मैं गला फाड़-फाड़ के पागल हुई जा रही हूं.” सरोज, बाउजी की मंझली बहू की झल्लाई हुई आवाज़ इतनी तेज़ थी, कि कोई अगर बाहर के गेट पर होता, तो भी सुन लेता.
सरोज और सुधीर, दोनों का ही महीने के पहले हफ़्ते में मूड अच्छा रहता है, तब तक, जब तक बाउजी ने पैसा नहीं दिया . उसके बाद फिर रोज़ के ढर्रे पर ही उनका मूड भी चलने लगता है. ...और पढ़ेये बुरा नहीं लगता बाउजी को. घर में यदि कोई ऐसा व्यक्ति रह रहा है जिसे पर्याप्त पेंशन मिल रही हो, तो उसका दायित्व है घर के खर्चों में हाथ बंटाना. टीवी ऑन करके बैठ गये थे बाउजी. सीरियल वे देखते नहीं, न्यूज़ में एक ही न्यूज़ को इस क़दर दिखाते हैं चैनल वाले कि बाउजी उकता जाते हैं. सुबह
सुधीर की आवाज़ पड़ गयी थी बाउजी के कानों में. उन्हें लगा, लौट जायें, लेकिन फिर आ गये टेबल पर, अपनी कुरसी के पास. उनकी कुरसी पर गुड्डू, सुधीर का बेटा बैठा था, सुधीर ने फौरन दूसरी कुरसी की ...और पढ़ेइशारा किया, बाउजी उसके इशारे पर दूसरी कुर्सी खिसका बैठ गये. वैसे आदत तो उन्हें अपनी उसी कुर्सी पर बैठने की है. अब आपको लगेगा कि भई इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? कहीं भी बैठ गये? लेकिन सबकी आदत होती है न अपनी एक निश्चित जगह पर बैठने की! फिर बाउजी तो सदियों से बैठते चले आ रहे उस जगह.....!