Pake Falo ka Baag book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pake Falo ka Baag is also popular in जीवनी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पके फलों का बाग़ - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी जीवनी
बाग़ के फल अब पकने लगे थे। लेकिन माली भी बूढ़ा होने लगा। माली तो अब भी मज़े में था, क्योंकि बूढ़ा होने की घटना कोई एक अकेले उसी के साथ नहीं घटी थी। जो उसके सामने पैदा हुए वो भी बूढ़े होने लगे थे। फ़िर भी बुढ़ापे से बचने का एक रास्ता था। उसने सोचा कि वो फ़िर से जन्म ले लेगा। वो एक बार पुनः पैदा होगा। उसे पुनर्जन्म जैसी बातों में कभी विश्वास नहीं रहा था। पर ये पुनर्जन्म था भी कहां? वो अभी मरा ही कहां था। अभी तो उसका जीवन था ही। तो उसने इसी
बाग़ के फल अब पकने लगे थे। लेकिन माली भी बूढ़ा होने लगा। माली तो अब भी मज़े में था, क्योंकि बूढ़ा होने की घटना कोई एक अकेले उसी के साथ नहीं घटी थी। जो उसके सामने पैदा हुए ...और पढ़ेभी बूढ़े होने लगे थे। फ़िर भी बुढ़ापे से बचने का एक रास्ता था। उसने सोचा कि वो फ़िर से जन्म ले लेगा। वो एक बार पुनः पैदा होगा। उसे पुनर्जन्म जैसी बातों में कभी विश्वास नहीं रहा था। पर ये पुनर्जन्म था भी कहां? वो अभी मरा ही कहां था। अभी तो उसका जीवन था ही। तो उसने इसी
लो, इधर तो मैं फ़िर से अपने गुज़रे हुए बचपन में लौट रहा था, उधर मेरे इस यज्ञ में घर के लोग भी आहूति देने लगे। मुझे मेरी बेटी ने मेरे पचास साल पहले अपने स्कूल में बनाए गए ...और पढ़ेचित्र ये कह कर भेंट किए कि पापा, मम्मी की एक पुरानी फ़ाइल में आपके ये चित्र रखे हुए मिले। मैंने चित्रों को हाथ में लेकर देखा। सचमुच, जब मैं नवीं कक्षा पास करके दसवीं में आया था तब छुट्टियों में बनाए गए ये चित्र थे। कुछ इक्यावन साल पहले की बात ! मुझे याद आया कि जब मैंने नवीं
क्या मैं दोस्तों की बात भी करूं? एक ज़माना था कि आपके दोस्त आपकी अटेस्टेड प्रतिलिपियां हुआ करते थे। उन्हें अटेस्ट आपके अभिभावक करते थे। वो एक प्रकार से आपके पर्यायवाची होते थे। हिज्जों या इबारत में वो चाहें ...और पढ़ेभी हों, अर्थ की ध्वन्यात्मकता में वो आपसे जुड़े होते थे। उनके और आपके ताल्लुकात शब्दकोश या व्याकरण की किताबों में ढूंढ़े और पढ़े जा सकते थे। वो आपको परिवार में मिलते थे, मोहल्ले - पड़ोस में मिलते थे, स्कूल- कॉलेज में मिल जाते थे। दुकान - दफ़्तर में मिल जाते थे। जहां आप काम करें, वहां ये भी होते
मुझे रशिया देखने का चाव भी बहुत बचपन से ही था। इसका क्या कारण रहा होगा, ये तो मैं नहीं कह सकता पर मेरे मन में बर्फ़ से ढके उदास देश के रूप में एक छवि बनी ही हुई ...और पढ़ेऔर अब, जब मुझे पता चला कि रशिया जाना है तो आप समझ सकते हैं कि मेरी सोच पर मेरा कितना वश रहा होगा। एक लंबा सिलसिला दिवास्वप्नों का शुरू हो गया। इन्हीं दिनों जयपुर के अनुकृति प्रकाशन ने मेरी लघुकथाओं की एक किताब "दो तितलियां और चुप रहने वाला लड़का" प्रकाशित की थी। लेखन और प्रकाशन तो अरसे से
मुझे अपने जीवन के कुछ ऐसे मित्र भी याद आते थे जो थोड़े- थोड़े अंतराल पर लगातार मुझसे फ़ोन पर संपर्क तो रखते थे किन्तु उनका फ़ोन हमेशा उनके अपने ही किसी काम को लेकर आया। - आप बैंक ...और पढ़ेबैठे हैं, मेरे मकान का काम चल रहा है, कुछ पैसा किसी तरह मिल सकता है क्या? - मैं आपसे मिलना चाहता हूं, मेरे चचेरे भाई के गांव का एक आदमी अपनी बेटी की स्कॉलरशिप के लिए परेशान हो रहा है, उसे अपने साथ लेे आऊं? - मेरे गुरुजी के लड़के की अटेंडेंस शॉर्ट हो गई, सर आपका आशीर्वाद मिल