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समंदर और सफेद गुलाब - उपन्यास
Ajay Sharma
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
समंदर और सफेद गुलाब पहला दिन 1 शताब्दी टे्रन को मैंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और मैट्रो टे्रन लेने के लिए मैट्रो स्टेशन की तरफ बढऩे लगा। ट्रॉली बैग को पहियों पर घसीटता हुआ मैट्रो की ओर बढ़ गया। बीच-बीच में बैग को उठाने की भी जरूरत पड़ती और मैं उसे झट से उठा लेता, कभी फिर से उसे पहियों के बल घसीटता हुआ आगे को निकल जाता। मुझेे पता ही नहीं चला कि कब मैं मैट्रो स्टेशन में दाखिल हो गया। वहां हर तरफ रास्ता दर्शाने के लिए तीरों के निशान (ऐरो साइन) लगे हुए थे।
समंदर और सफेद गुलाब पहला दिन 1 शताब्दी टे्रन को मैंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और मैट्रो टे्रन लेने के लिए मैट्रो स्टेशन की तरफ बढऩे लगा। ट्रॉली बैग को पहियों पर घसीटता हुआ मैट्रो की ...और पढ़ेबढ़ गया। बीच-बीच में बैग को उठाने की भी जरूरत पड़ती और मैं उसे झट से उठा लेता, कभी फिर से उसे पहियों के बल घसीटता हुआ आगे को निकल जाता। मुझेे पता ही नहीं चला कि कब मैं मैट्रो स्टेशन में दाखिल हो गया। वहां हर तरफ रास्ता दर्शाने के लिए तीरों के निशान (ऐरो साइन) लगे हुए थे।
समंदर और सफेद गुलाब 2 देखते ही देखते हवाई जहाज में चढऩे के लिए लाइन लग गई। मैं भी लाइन में खड़ा हो गया। कुछ ही देर में मैं जहाज के अंदर अपनी सीट पर बैठा था। लेकिन जहाज ...और पढ़ेअंदर का नजारा तो ऐसा था कि, पूछो ही मत। सीट पर बैठकर मुझेे ऐसा महसूस हुआ कि मैं उस शहर में जाने के लिए तैयार हूं, जहां जाने के लिए वीजा लेने की जरूरत तो नहीं होती लेकिन इस इंतजार में सारी जिंदगी निकल गई। इस शहर में आना मेरे लिए कनाडा अमेरिका में जाने से भी कठिन हो
समंदर और सफेद गुलाब 3 मैं सोया तो था ही नहीं...मेरे मन में आया कि आंखें खोलूं और देखूं कि मुंबई आने में कितना समय बाकी रह गया है। मैंने धीरे से आंखे खोलीं और अपनी घड़ी की ओर ...और पढ़ेमैंने पाया कि अभी लगभग आधा घंटा और पड़ा है। मैंने फिर से आंखें बंद कर लीं। मैं फिर से यादों के समंदर में तैरने लगा। ***** मुझे याद आई वो घटना जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू हुई थी। शायद 1971 की बात है। तब मैं था तो छोटा ही लेकिन इतना भी नहीं था। इसके बावजूद भी
समंदर और सफेद गुलाब दूसरा दिन 1 सूर्य की हल्की-हल्की किरणें खिडक़ी से होती हुई कमरे में प्रवेश कर रही थीं। मैं जमीन पर बिस्तर लगाकर लेटा हुआ था। अब तक प्रोफैसर पांडेय और मानव जी सो रहे थे। ...और पढ़ेभी इसी कशमकश में पड़ा था कि उठ जाऊं या लेटा रहूं। कहीं ऐसा न हो कि मेरे उठने से इन लोगों की भी नींद खराब हो जाए। मैंने बिना सोचेे-समझे चादर मुंह पर तान ली और लेटा रहा लेकिन ज्यादा समय तक लेट नहीं पाया। लेटने से उक्ता गया तो मैंने चादर इकट्ठी की और उठ गया। लगभग ढाई
समंदर और सफेद गुलाब 2 पता नहीं क्यों मुम्बई मेरे दिलो-दिमाग से निकलती ही नहीं थी। मुम्बई नगरी का कीड़ा मेरे दिमाग में घुसा हुआ था। हालांकि मैं रेडियो स्टेशन और टी.वी. पर कार्यक्रम करता ही रहता था। ऑल ...और पढ़ेरेडियो पर कई नाटक भी किए थे। वैसे तो मैं थिएटर भी करता था लेकिन समय के अभाव के चलते स्टेज पर नाटक करने बंद कर दिए थे। दिमाग में घुसे मुम्बई के इस कीड़े के चलते शादी के कुछ समय बाद ही मुम्बई जाने की तीव्र इच्छा ने मुझे फिर से जकड़ लिया था। मुझे लगता था, मुंबई मेरी