Sumandar aur safed gulaab - 3 - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

समंदर और सफेद गुलाब - 3 - 1

समंदर और सफेद गुलाब

तीसरा दिन

1

आज भी मैं सुबह सबसे पहले जग गया था लेकिन आज की सुबह कल की सुबह की तरह नहीं थी। कल जब मैं उठा था, तो मैंने मुम्बई की सुबह को अपने आगोश में भर लिया था जबकि आज मैं उस सुबह को जल्दी से जल्दी अलविदा कहना चाहता था। खैर, मैंने चाय बनाई और पीने लगा। चाय पीते-पीते मैंने देखा कि अनिल भी जग गया था। वह अपना बिस्तर लपेटने लगा था। अनिल ने मेरी तरफ देखते ही कहा, ‘डाक्टर आकाश आपको आपको याद है न, हमने आज मेरे उस दोस्त के यहां जाना है, जो यहां एक आश्रम में रहता है? वह भी कभी इस मायानगरी में स्ट्रगल करने के लिए आया था। उसे काम भी मिलने लगा था लेकिन कहते हैं न किस्मत के बिना कुछ नहीं मिलता।’

मैंने उसकी हां में हां मिलाई और कहा, ‘याद है न मुझे आज वापस भी लौटना है। कल रात जो टिकट बुक करवाई थी, उसकी रिजर्वेशन आज की है।’

अनिल ने मेरी बात सुनते ही कहा, ‘हां, मुझे याद है। चिन्ता न करो, मैं आपको एयरपोर्ट तक छोडक़र आऊंगा।’

हम लोग तैयार होकर बाहर सडक़ पर आ गए। वहां से हमने ऑटो लिया और एक बार फिर मड आइलैंड की तरफ बढऩे लगे। एक बहुत बड़े बंगले के आगे जाकर अनिल ने ऑटो रिक्शा रोकने के लिए चालक से कहा। हमने पैसे दिए और जल्दी से उतरकर बंगले के अंदर जाने लगे। हमें किसी ने नहीं रोका, बल्कि सभी ने अनिल से दुआ-सलाम की। देखते ही देखते हम एक संन्यासी के सामने बैठे थे। इधर-उधर की बातें हुईं तो अनिल ने संन्यासी से कहा, ‘संन्यासी जी, यह मेरे दोस्त हैं। इसे अपनी मुम्बई में फिल्म इंडस्ट्री के लिए स्ट्रगल की कहानी सुनाओ।’

एक बार तो संन्यासी ने कहा, ‘छोड़ो अनिल जी, गड़े मुर्दे उखाडऩे से क्या फायदा? जो तकदीर में लिखा है, वही मिलता है।’

अनिल ने फिर कहा, ‘कहानी तो आपसे जरूर सुनेंगे क्योंकि मैं अपने दोस्त को इसी शर्त पर यहां लेकर आया हूं।’

संन्यासी ने एक ठंडी आह भरी और कहा, ‘मुझे सुनाने में कोई ऐतराज तो नहीं है, लेकिन फिर भी कभी सोचता हूं, तो मन उदास हो जाता है।’

फिर वह थोड़ी देर के लिए चुप कर गया।

बाद में कहने लगा, ‘मैं जब यहां आया था, उसके पीछे बहुत लम्बी स्ट्रगल थी। यहां की सडक़ों से जानकारी लेते-लेते ही बहुत समय गुजर गया लेकिन अंतत: तलाश खत्म हुई। मुझे एक धार्मिक सीरियल में काम मिल गया। उस समय चैनल का प्रोड्यूसर या डायरेक्टर कास्टिंग तय करता था। यानी सारा खेल इन्हीं के हाथों में होता था लेकिन देखते ही देखते आज सब कुछ बदल गया है। अब रोल के लिए हर भूमिका चैनल अदा करता है। एक रोल के लिए चार आदमी पेश करने होते हैं। फिर चैनल की मर्जी होती है, चारों में से जिसे मर्जी चुन ले। जिसे चैनल चुनता है, उसी पर आखिरी मुहर लगती है कि फलां रोल के लिए फलां आदमी फिट है। हालांकि चैनल में भी नये-नये लडक़े और लड़कियां हैं, जो जानते ही नहीं कि एक्टिंग किस चिडिय़ा का नाम है और किसे कौन सा रोल देना है। कई बार ऐसा होता है कि बहुत बड़े एक्टर को छोटा सा रोल मिल जाता है। कई बार नौसिखिए आदमी को बहुत बड़ा रोल मिल जाता है। स्थितियां तो बहुत विकराल हैं। बात चाहे टैलीवुड की हो या बॉलीवुड की। अब मैं असल मुद्दे पर आता हूं।’

अनिल और मैं उत्सुक्ता से संन्यासी की बात सुनने लगे।

उसने आगे कहा, ‘यह तब की बात है, जब मुझे डायरेक्टर दारूवाला के साथ काम करते हुए दो साल से ज्यादा हो चुके थे। मुझे लगता था कि जब तक दारूवाला का सीरियल खत्म न हो, मुझे कोई नया सीरियल नहीं पकडऩा चाहिए। इस सीरियल को करते-करते मेरी जिन्दगी में बहुत बड़ा मोड़ आ गया था। लोअर क्लास फैमिली से निकलकर मिडिल क्लास फैमिली को पार करके मैं सीधा अपर क्लास में जा पहुंचा। यहां जिन्दगी में इंतजार नाम की कोई चीज नहीं। यहां पहुंच कर ऐसा लगने लगा था, सब्र का फल मीठा होता है। गरीबों में यह बात खूब फलती है। यहां तो पैसा फैंक तमाशा देखने वाली बात थी।

काम करने के लिए नौकर-चाकर। चीज खराब हो जाए तो उसे फैंक दो, उसकी जगह नयी आ जाएगी वर्ना मैंने तो अपनी जिन्दगी में चीजें खराब हो जाएं तो उन्हें ठीक कराते-कराते जिन्दगी निकल जाते हुए भी देखा है। सबसे बड़ी बात यह थी कि मुम्बई जिसको रास आ जाए, वह मुम्बई का बादशाह कहलाने लगता है। मां मुंब्रा देवी की उस पर बड़ी कृपा हो जाती है। यह बात भी झूठ नहीं कि समंदर की रेत समंदर में ही मिल जाती है। इसी दौरान एक मशहूर डायरैक्टर के साथ नये सीरियल के लिए बात चल पड़ी। वह सीरियल रामायण से रिलेटिड था।

वह मुझे राम के रोल में लेना चाहता था। जैसे ही उसने मुझे कहा कि आप राम का रोल करेंगे तो मैंने बिना सोचेे उसे तपाक से कहा, ‘यह कैसे हो सकता है, आपको पता है न मेरा चेहरा...उस पर फुलवेरी के निशान हैं। जो सीरियल पहले कर रहा हूं, उसकी बात कुछ और है क्योंकि उसमें कुछ रोल भी डरावनी किस्म का...’ अभी मैंने बात पूरी भी नहीं की थी तो वह खुद ही बोल पड़ा,‘अरे छोड़ो चेहरे-वेहरे को, वो हम खुद देख लेंगे। प्लास्टिक सर्जरी करवा देंगे। सारा खर्च मेरा। बस आप एक बार हां कर दो और विदेश जाने की तैयारी करो। अगर यह सीरियल चल निकला तो न जाने कितनी भाषाओं में चलेगा।’

वो तो अपनी बात कहकर चला गया लेकिन उसके जाने के बाद मैं सोचनेे लग पड़ा और मुझे लगा कि अगर मैं जिन्दगी में बहुत बड़ा बनना चाहता हूं तो छोटे-मोटे लालच को छोडऩा ही पड़ेगा। जैसा उसका प्रपोजल है, उस हिसाब से तो सीरियल बहुत बड़ा होगा। मुम्बई में चाहिए क्या, एक हिट तो सब फिट। और वही एक हिट मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही थी।

मैं पूरा दिन सोचता रहा और दारूवाला के सीरियल की शू्टिंग करने भी नहीं जा पाया। अंतत: इसी नतीजे पर पहुंचा कि मुझे हां कर देनी चाहिए। देर रात को मैंने डायरेक्टर राहुल को फोन किया। यह देर रात भी मुम्बई के लिए नहीं है क्योंकि इस समय मुम्बई अपने पूरे शबाब पर होती है। मुम्बई की अपनी ही चाल-ढाल है। मुम्बई किसी कायदे-कानून को नहीं मानती। यहां सिर्फ चलती का नाम गाड़ी है।

खैर, डायरेक्टर राहुल ने फोन उठाया और मैंने हां कह दी।

दारूवाला को पता चला तो मेरे ऊपर भडक़ गया। मैंने भी कहा, ‘हमारा कोई लिखित कांट्रैक्ट तो हुआ नहीं। हम दोनों अपनी मर्जी से कभी भी, किसी भी वक्त एक-दूसरे को छोड़ सकते हैं।’

मेरी बात सुनकर वह तुरंत बोला, ‘नहीं हुआ तो कांट्रैक्ट कर लेते हैं।’

उसकी बात सुनकर मुझे गुस्सा आ गया। मैंने कहा, ‘दारूवाला जी, अब मुम्बई की मायानगरी की चालाकियां मैं भी समझने लगा हूं। अब मैं आग की भट्ठी में तप चुका हूं, मतलब आग से निकला हुआ आदमी हूं। अब आपकी मीठी-मीठी बातें मुझे नहीं फुसला सकतीं।’

मैंने देखा कि दारूवाला बहुत मायूस था। लेकिन मैंने उसे एक बात कही, ‘दारूवाला जी मैं आपकी मजबूरी समझता हूं। अब आपकी मजबूरी के लिए मैं अपना विकास तो नहीं छोड़ सकता। इस दिन के लिए मैंने घर-बार छोड़ दिया था। आप क्या चाहते हैं कि जो किस्मत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है, मैं उसे ठुकरा दूं?’

खैर, दारूवाला ने इधर-उधर की कई बातें की और अंतत: विदा लेकर चला गया।

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