Badi Pratima book and story is written by Sudha Trivedi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Badi Pratima is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
बडी प्रतिमा - उपन्यास
Sudha Trivedi
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
एक झुंड भरकर युवा आधुनिक लडकियां टीचर्स ट्रेंनिंग काॅलेज के गेट पर रुककर यह देहाती गीत गा रही हैं। सभी लडकियों ने ट्रेनिंग काॅलेज की यूनिफाॅर्म पहन रखी है - राजकमल की सफेद काॅटन साडियां और लाल रूबिया ब्लाउज । साडियों में तो कुछ अलग करने की संभावना नहीं है, इसीलिए इन ट्रेनी शिक्षिकाओं की सारी सृजनात्मकता और कलात्मकता उनके ब्लाउज की सिलाई पर आ थमी दिखती है। उनके कलात्मक सौंदर्य की पराकाष्ठा उनके बालों के सिंगार में भी झलक रही है। प्रतिमा चौहान के बाल उसके घुटनों तक आते हैं। उसने अपने बालों की तो लंबी चोटी बना रखी है, मगर चेहरे पर साधना कट लटें झूल रही हैं । अर्चना के बाल कटे हुए हैं। ट्रेनिंग काॅलेज के नियमों के मुताबिक वह बाल खुले नहीं रख सकती, इसीलिए उसने किसी तरह एक कठोर, अनुशासनप्रिय अभिभावक जैसे रबर बैंड में उन्हें जबर्दस्ती घुसा रखा है । आधुनिक युवाओं जैसे स्वच्छंदताप्रिय बाल रबर बैंड से निकल- निकल जा रहे हैं । इटालियन देवी सी दिखनेवाली अंजना कद में थोडी छोटी है, पर बाल उसके बेहद घने और लंबे हैं। लगता है उसकी सारी खुराक उसके बालों को लग जाती है। उसने दो चोटियां बना रखी हैं, जो उसके कंधों पर आगे की ओर को झूल रही हैं। खिलंदडे स्वभाव की डाॅली के लिए साडी संभालना ही मुश्किल का काम है, वह बालों की तो क्या सज्जा कर पाती। किसी तरह एक उंचा जूडा बना रखा है।
बडी प्रतिमा (1.) “ कहमा से चलि अइल हे रधिका कहां कयले जाय हो लाल कवने बाबा दरवजवा हो रधिका बाजइछई मिरदंग हो लाल !” एक झुंड भरकर युवा आधुनिक लडकियां टीचर्स ट्रेंनिंग काॅलेज के गेट पर रुककर यह ...और पढ़ेगीत गा रही हैं। सभी लडकियों ने ट्रेनिंग काॅलेज की यूनिफाॅर्म पहन रखी है - राजकमल की सफेद काॅटन साडियां और लाल रूबिया ब्लाउज । साडियों में तो कुछ अलग करने की संभावना नहीं है, इसीलिए इन ट्रेनी शिक्षिकाओं की सारी सृजनात्मकता और कलात्मकता उनके ब्लाउज की सिलाई पर आ थमी दिखती है। उनके कलात्मक सौंदर्य की पराकाष्ठा उनके बालों
बडी प्रतिमा (2.) प्राचार्या सरोज शर्मा बाल विधवा हैं। अपने बाल बच्चे कोई हैं नहीं। काॅलेज की छात्राओं के प्रति उनका सहज स्नेह भाव रहता है।मगर अनुशासन ढीला हो जाने के भय से उसे अधिक व्यक्त नहीं करती हैं। ...और पढ़ेछात्राओं से सीधे कोई बात करतीं ही नहीं। जो कुछ भी कहलवाना होता है, उप प्राचार्य फजलुर्रहमान सर से कहलवाती हैं। वही फजलुर्रहमान, जिन्हें छात्राएं अभी अपने गीत में फजली बाबा कहकर प्रसन्न हो रही थीं। ट्रेनिंग काॅलेज के बहुत बडे अहाते के उत्तर और दक्षिण की ओर टीचर्स क्वार्टर हैं। पूरब में प्रिंसिपल का बडा बंगला और छात्राओं के
बडी प्रतिमा (3.) पढाकर आई लडकियां अपने कमरों में आकर कपडे बदलने लगीं । कुंआरी लडकियों में से अधिकांश ने छोटे छोटे फ्राॅक पहन लिए, विवाहिताओं ने मैक्सी से संतोष किया । सब अपने-अपने बेड पर बैठकर एक दूसरी ...और पढ़ेबातें करने लगीं । कोई, अपने बालों में तेल चुपडकर कंघा करने लगी तो कोई चंदन घिसकर चेहरों पर मलने लगी। कुछ लडकियां सुबह सूखने के लिए रखे गए कपडे ले आकर तह लगाकर तकियों के नीचे रखने लगीं तो कोई अपनी काॅपी में असाइनमेंट पूरा करने लगी। विनीता का गौना होना है। वह आजकल केवल अपना दहेज जुटाने में
बडी प्रतिमा (4.) डाॅली, छोटी अंजना और गीतू की तिकडी थी हाॅस्टल में । तीनों ने अपनी चौकियां खिसकाकर एक साथ कर ली थीं। गीतू जब इस बार ...और पढ़ेगई थी तब एक बडी किंग साइज खूबसूरत चादर ले आई थी। तीनों चौकियों पर वही चादर एक साथ बिछाई जाती। प्रधान शिक्षिका की बेटी गीतू- सलीकेदार, मितभाषिणी और हंसमुख तो थी ही, मिलनसार भी बहुत थी । इस तिकडी में डाॅली थोडी खिलंदडी थी, लेकिन बाकी दोनों की सहनशीलता और स्नेह के बल पर इनकी तिकडी खुशहाल रहती थी। मेस में या शिक्षिकाओं के यहां
बडी प्रतिमा (5.) एक सुहानी सुबह ! शनिवार का दिन था। पूर्णिमा का चांद अभी पश्चिम में चमक ही रहा था। आज नजदीक के कस्बों से छात्रावास में आई सभी छात्राएं अपने-अपने घर जानेवाली थीं । अब वे चार ...और पढ़ेके बाद ही आतीं। कुछ लडकियां जो दूर से आई हुई थीं, वे इन चार दिनों की छुटिटयों में भी हाॅस्टल में ही रहनेवाली थीं। विभा इस बार घर नहीं जा रही थी। उसे अपने कैप्स्यूल पूरे करने थे। चूंकि आज ज्यादातर छात्राएं घर जानेवाली थीं इसीलिए मेस में ड्यूटियर की कमी थी। उसने सोचा था कि मीरा का हाथ