बडी प्रतिमा - 4 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 4

बडी प्रतिमा

(4.)

डाॅली, छोटी अंजना और गीतू की तिकडी थी हाॅस्टल में । तीनों ने अपनी चौकियां खिसकाकर एक साथ कर ली थीं। गीतू जब इस बार घर गई थी तब एक बडी किंग साइज खूबसूरत चादर ले आई थी। तीनों चौकियों पर वही चादर एक साथ बिछाई जाती। प्रधान शिक्षिका की बेटी गीतू- सलीकेदार, मितभाषिणी और हंसमुख तो थी ही, मिलनसार भी बहुत थी । इस तिकडी में डाॅली थोडी खिलंदडी थी, लेकिन बाकी दोनों की सहनशीलता और स्नेह के बल पर इनकी तिकडी खुशहाल रहती थी। मेस में या शिक्षिकाओं के यहां इनकी ड्यूटियां भी साथ लगती थीं। मेस में डाॅली आटा गूंथने सब्जी काटने आदि का काम फुर्ती से निबटा देती थी। शिक्षिकाओं के यहां ड्यूटी लगने पर वह झाडू-पोंछा कर देती थी। हालांकि जयलक्ष्मी मैम उसके काम करने के बेतुके ढंग पर कई बार गीतू को फटकार लगा चुकी थीं। तब सलीकेदार गीतू ही मामला संभालती थी। वह इतने करीने से जयलक्ष्मी मैम के घर की पलंगों की चादर पोशी करती, एक-एक चीज सजाती कि घर में जैसे लक्ष्मी-सी आ गई हों। गीतू अपने सलीके के कारण ही हर किसी की स्नेहभाजन थी।

एक बार यह तिकडी जब वैदेही मैम के घर ड्यूटी पर थी, तब उनके घर से उनकी बहू का चांदी का एक चाबी का छल्ला गायब हो जाने की खबर आई थी ।तब बात ज्यादा नहीं बढी, क्योंकि उस समय वैदेही मैम की ननद और उनके कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे, इसीलिए संशय उन पर भी था। यह छल्ला बहू को उसके किसी प्रिय रिश्तेदार ने दिया था, इसीलिए उसके गुम जाने पर वह रोई भी थी।

प्रिंसिपल सरोज शर्मा और विज्ञान शिक्षिका भवतारिणी देवी को छोडकर बाकी सभी शिक्षिकाओं के घर का झाडू-पोंछा, चैका-बरतन, रसोई-पानी बारी बारी से छात्राओं को ही करना पडता है। सरोज शर्मा जी के यहां इसलिए नहीं कि वे छात्राओं से काम करवाना नियम विरुद्ध मानती हैं । उनके पास बाहर का काम करने के लिए सरकारी अर्दली है । घर के कामों के लिए एक बुढिया, जो रिश्ते में उनकी ननद लगती है, उनके साथ रहती है। इसके अलावा वे खुद भी घर के काम थोडा-बहुत कर लेती हैं। यदि उन्हें पता चल जाता कि बाकी शिक्षिकाएं छात्राओं से नौकरानियों का काम लेती हैं तो वे उन शिक्षिकाओं पर कार्रवाई अवश्य करतीं। मगर ये घाघ शिक्षिकाएं और इंटर्नल माकर््स के कारण फेल कर दिए जाने के डर से उनसे डरी सहमी रहनेवाली छात्राएं कभी सरोज शर्मा को इस बात की भनक ही नहीं पडने देती हैं। एकाध बार उन्होंने छात्राओं को शिक्षिकाओं के घर देखकर पूछा भी था –

“बोर्डर्स को घर क्यों बुलाया जाता है ? जो भी निर्देश हों, कक्षा में दिया करें आपलोग । यदि कक्षाएं कम पडती हैं तो विशेष कक्षाएं लगाई जा सकती हैं।”

उन्हें शायद इस बात का कभी स्वप्न भी न आया होगा कि उनकी दुलारी छात्राएं उनके ही छात्रावास में और शिक्षिकाओं के घरों में बरतन मांजती हैं और मसाला पीसती हैं !

भवतारिणी मैम के यहां ड्यूटी पर कोई छात्रा इसलिए नहीं जाती है कि उनका अपने पति से शायद संबंध विच्छेद हो चुका है। बाकी दबंग शिक्षिकाएं उन्हें तीन कौडी के भाव भी नहीं पूछती थीं और यह बात छात्राओं को भी अच्छी तरह समझा देती थीं कि भवता के तो पति भी उन्हें सपोर्ट नहीं करते हैं। उनके घर भली लडकियों का आना जाना ठीक नहीं है। यह बात जयलक्ष्मी मैम सबसे अधिक जोर शोर से कहती थीं, जिनके दरवाजे पर फजली सर का खूंटा गडा ही रहता है!

हमारी ये भावी शिक्षिकाएं नौकरानियों वाले इसी काम को ड्यूटी लगना कहती हैं। जिस दिन बडी प्रतिमा की ड्यूटी होती, उस दिन तो जयलक्ष्मी मैम चिउडा कुटवाने, दाल दलवाने, गेहूं फटकवाने, बालू डालकर मकई का भूंजा भुंजवाने आदि का काम भी करवाती थीं। ड्यूटी न होने पर भी इन कामों के आ पडने पर वे बडी प्रतिमा को बुलवा लिया करती थीं। बडी प्रतिमा भी बिना किसी ना नुकुर के काम कर आती थी। हालांकि उस पर नजर कडी रखती थीं क्योंकि हाॅस्टल में बार बार पैसे और सामान गुमने पर उनका शुबहा भी बडी प्रतिमा पर ही था।

क्रमश..