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पागल-ए-इश्क़ - उपन्यास
Deepak Bundela AryMoulik
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
दोस्तों.. नमस्कार.. ?आपके सामने एक फिर प्यार की कहानी के साथ मौजूद हूं... मेरा हमेशा से मकसद यहीं रहा हैं कि प्यार को समझें एक दूसरे की भावनाओं को समझें आप कितने खुश नसीब हैं कि आपको प्यार करने का मौका मिला... लेकिन इस दुनियां में ऐसे बहुत से लोग भी हैं जो सच्चा प्यार करते हुए भी एक दूसरे के ना हों सके.. कारण कभी समाज की बेड़िया रही तो कहीं हालात लेकिन ज़रूरी नहीं उसके पीछे हम ज़िन्दगी ही बर्बाद कर लें.. सच्चे प्रेमी कभी जीवन का अंत नहीं करते.. ये कहानी मैंने सन 2001 में फ़िल्म के
दोस्तों.. नमस्कार.. ?आपके सामने एक फिर प्यार की कहानी के साथ मौजूद हूं... मेरा हमेशा से मकसद यहीं रहा हैं कि प्यार को समझें एक दूसरे की भावनाओं को समझें आप कितने खुश नसीब हैं कि आपको प्यार करने ...और पढ़ेमौका मिला... लेकिन इस दुनियां में ऐसे बहुत से लोग भी हैं जो सच्चा प्यार करते हुए भी एक दूसरे के ना हों सके.. कारण कभी समाज की बेड़िया रही तो कहीं हालात लेकिन ज़रूरी नहीं उसके पीछे हम ज़िन्दगी ही बर्बाद कर लें.. सच्चे प्रेमी कभी जीवन का अंत नहीं करते.. ये कहानी मैंने सन 2001 में फ़िल्म के
पागल-ए-इश्क़ (पार्ट -2)गाड़ी एयरपोर्ट परिसर मैं तेज गती से आकर रूकती हैं सभी लोग जल्दी जल्दी गाडी से उतरते हैं तभी रोहन अपनी मां से कहता हैं मम्मा आप अंदर पहुँचो मैं बाद में आता हूं और हा ...और पढ़ेको गेट नम्बर 8 से बाहर लेकर आना आप.. महक सहमति से अपना सिर हिला देती हैं और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाती हैं... रोहन गेट नम्बर 8 की ओर चला जाता हैं.. आज रोहन बाबा काफी खुश नज़र आ रहें हैं..? महक एक लंबी सांस भरते हुए बोलती हैं.... हां दयाल जी.. काश भाई बहन का ये प्यार इसी तरह उम्र बना रहें.. और दोनों
डूब कर तेरी तन्हाइयों में मुझें मर जानें दो.. !तिरे इश्क़ में जो मुझें सवर जानें दो.. !!रेनू शून्य थी पर मन में कई सबाल उठ रहें थे और वही रोहन मौन था.. तो वहां दयाल जी निशब्द ...और पढ़ेरेनू की नज़रे दोनों पर प्रश्न चिन्ह की तरह टिकी थी.. रोहन ये पागल कौन हैं..? रोहन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा था पता नहीं दीदी मैं तो अप्पा को बचपन से ही देखता आ रहा हूं. बिटिया आप तो खामखं परेशान हों रही हैं.. नहीं अंकिल जब उस पागल ने मुझें छुआ तो पता नहीं मुझें कुछ अलग सा महसूस हुआ.. बेटी वो बहुत नेक इंसान
कंटीन्यू पार्ट -4महक की कार तेज गती से घर की तरफ दौड़े जा रही थी.. महक पीछे की सीट पर बैठी बैठी सोच रही थी.. कि रेनू को जरूर कुछ आभास हों गया हैं.. तभी दयाल जी ने चुप्पी ...और पढ़ेहुए कहा.. मेम... कहीं रेनू बिटिया को कोई शंका तो नहीं हुई..? यहीं तो मैं भी सोच रही हूं.. पता नहीं क्यों दिल बैठा जा रहा है... अब आप ही बताये दयाल जी ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए...? मेरे हिसाब से तो आपको अब सारी बात दोनों को बता देनी चाहिए...!हुम्म.. आप सही कह रहें है दयाल जी... आज रेनू का बर्थडे