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आजादी - उपन्यास
राज कुमार कांदु
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
राहुल बारह बरस का हो चला था । सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था । पढाई के साथ सभी गतिविधियों में औसत ही था । खाना खाने में भी उसके नखरे कम नहीं थे । काफी मानमनौव्वल के बाद दो निवाले खाकर माँ बाप पर अहसान कर देता था ।माँ के काफी ध्यान देने और टयूशन के बावजूद छमाही नतीजे में वह किसी तरह से पास हुआ था ।उसके पिताजी ने ऑफिस से आकर उसका परीक्षाफल देखते ही गुस्से में उसे एक तमाचा रसीद कर दिया था । साथ ही उसकी माँ को भी डांट पीलाते हुए राहुल का खेलना और
राहुल बारह बरस का हो चला था । सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था । पढाई के साथ सभी गतिविधियों में औसत ही था । खाना खाने में भी उसके नखरे कम नहीं थे । काफी मानमनौव्वल के बाद दो ...और पढ़ेखाकर माँ बाप पर अहसान कर देता था ।माँ के काफी ध्यान देने और टयूशन के बावजूद छमाही नतीजे में वह किसी तरह से पास हुआ था ।उसके पिताजी ने ऑफिस से आकर उसका परीक्षाफल देखते ही गुस्से में उसे एक तमाचा रसीद कर दिया था । साथ ही उसकी माँ को भी डांट पीलाते हुए राहुल का खेलना और
राहुल का भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था । रह रह कर उसे स्कूल की याद आने लगती । उसके दिमाग में घूम रहा था ‘ स्कूल में लंच की छुट्टी हुयी होगी । सब बच्चे अपना ...और पढ़ेलंच बॉक्स लेकर एक साथ बैठ कर लंच कर रहे होंगे । उसे अपने मित्र सोनू की बहुत याद आ रही थी । वही तो था जो जबरदस्ती उसकी टिफिन से सब्जी ले लेता था और चटखारे लेकर खाते हुए उसके माँ की बड़ी तारीफ करता ” वाह ! वाह ! आंटीजी के हाथों में तो गजब का जादू है
शीघ्र ही विनोद और कल्पना पुलिस स्टेशन पहुँच गए । पुलिस स्टेशन में कई पुलिस के अधिकारी आ जा रहे थे । विनोद की समझ में नहीं आ रहा था किससे पूछे कहाँ शिकायत करे ? ‘ पूर्व में ...और पढ़ेभी पुलीस चौकी से पाला नहीं पड़ा था । इसी असमंजस में कल्पना भी थी । फिर भी हिम्मत करके बाहर नीकल रहे एक अधिकारी से कल्पना ने पूछ ही लिया ” साहब ! हमारा बेटा स्कूल से घर नहीं आया है । कहाँ शिकायत करें ? ”वह अधिकारी सज्जन था । एक माँ की तड़प को महसूस कर उसने
राहुल कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो गया था । पता नहीं कितनी देर तक वह ऐसे ही सोया रहा । अभी वह नींद में ही था कि तभी उसे ठण्ड का अहसास हुआ और कुर्सी पर बैठे बैठे ...और पढ़ेउसने पैर ऊपर करके खुदको और सिकोड़ लिया और फिर से सोने का प्रयत्न करने लगा । लेकिन ठण्ड के मारे उसकी नींद उचट गयी थी । बड़ी देर तक वह वैसे ही पड़े पड़े सोने का प्रयत्न करता रहा लेकिन कामयाब नहीं हुआ । नींद उचटने की वजह से उसे रोना आ रहा था । उसके जेहन में कौंध
राहुल ने स्वतः ही सामने रखी बाल्टी उठा ली और बगल की दुकान के सामने लगी बोरिंग से पानी भरने के लिए चल दिया । बोरिंग के हत्थे पर जोर लगाते हुए राहुल के मस्त्तिष्क में अभी कल ही ...और पढ़ेदिनचर्या किसी चलचित्र की भांति घुम गयी ।‘ ………………सुबह के आठ बज रहे थे । हमेशा की तरह राहुल अभी भी सोया हुआ ही था । तभी उसकी माँ ने कमरे में प्रवेश किया और उसको जगाते हुए बोली ” राहुल ! बेटा राहुल ! आठ बज गए हैं और तुम अभी तक सो रहे हो ? नहाना धोना ,