आजादी - 18 राज कुमार कांदु द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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आजादी - 18



राहुल बंद कमरे में पड़ा बड़ी देर तक अपने ख्याली घोड़े दौडाते रहा लेकिन उसके ख्याली घोड़े किसी मंजिल तक नहीं पहुंचे और इस दिमागी कसरत से थक हार कर राहुल वहीँ कमरे में बैठे बैठे ही निढाल हो गया । कहना जरुरी नहीं कि इसमें पिछली रात के रतजगे का भी खासा असर था । दुसरे बच्चे भी मन से बेचैन ही सही लेकिन ऊपर से निश्चिन्त हो आराम फरमा रहे थे ।
पता नहीं कितनी देर तक राहुल ऐसे ही पड़ा रहा । भूख और हलकी ठण्ड के अहसास से उसकी नींद खुल गयी । उसने खुद को उन बच्चों के मध्य ही सोये हुए पाया और उसकी स्मृति ताजी हो गयी । भूख का अहसास होते ही उसके सामने दोपहर के खाने का दृश्य घूम गया । अखबारों पर रखे गए भात के टुकडे को याद कर उसे उबकाई सी आने लगी । सभी बच्चे ठण्ड के मारे सिकुड़े और सिमटे हुए थे । राहुल ने बाहर की तरफ का अंदाजा लगाने का प्रयास किया लेकिन सफल न हो सका । बाहर कहीं से भी झांकने का उसे कोई जरिया नजर नहीं आया । उसने दरवाजे की झिरी से झांक कर देखने का प्रयास किया लेकिन बाहर नीरव शांति और घुप्प अँधेरे के अलावा उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया । ठण्ड के अहसास से राहुल ने अंदाजा लगा लिया था कि अब रात हो चुकी थी और इसीलिए शायद उसे अँधेरे के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था । तभी नजदीक आते कदमों की आहट सुनकर राहुल दरवाजे से हटकर अपनी जगह पर आकर बैठ गया । अँधेरे कमरे में एक छोटा सा बल्ब रोशन हो उठा था जिसकी तरफ राहुल का ध्यान ही नहीं गया था ।
थोड़ी ही देर में नजदीक आते कदमों की आहट दरवाजे के समीप आकर थम गयी और चरमराहट की तेज आवाज के साथ दरवाजा खुल गया ।
पुनः वही दोपहर का भोजन वाला कार्यक्रम दुहराया गया । वही भोजन और सभी बच्चों के बीच राहुल का वही बर्ताव । भुख के मारे उसके पेट में चूहे कूद रहे थे लेकिन अभी भी उसने वह भोजन स्वीकार नहीं किया । सभी बच्चों के भोजन कर लेने के बाद दोनों आदमी सारा बर्तन और भोजन लेकर वापस चले गए ।

ऑटो में बैठा विनोद अपने बाबूजी के साथ घर पहुँच गया । बेसब्री से उनका इंतजार कर रही कल्पना लपककर आगे बढ़ी लेकिन तभी बाबूजी को ऑटो से उतरते देखकर तुरंत ही कदम पीछे खिंच लिया और सर पर का पल्लू संवारने लगी । विनोद की माताजी भी चिंतित और परेशान नजर आ रही थीं सो उन्हें देखते ही बोल पड़ी ” क्या बताया पुलिसवालों ने ? कुछ पता चला राहुल के बारे में ? ”
संक्षेप में विनोद के बाबूजी ने पुलिस स्टेशन में घटा पुरा घटनाक्रम सिलसिलेवार तरीके से उन्हें बता दिया । निराशा के भाव लिए बाबूजी के चेहरे पर यह बताते हुए उम्मीद की एक हल्की किरण सी चमक गयी कि पड़ोस के मोहल्ले के डॉक्टर राजीव का लड़का भी गुम हो गया है । उसके गुमशुदगी की रपट भी पुलिस चौकी में लिखी हुयी है और इसीलिए पुलिस जी जान से अपराधियों की तलाश में लगी हुयी है । इंसान के स्वार्थी फितरत का यह कितना बड़ा उदाहरण था । उस गुमशुदा बच्चे के दुःख से दुखी न होकर उसके प्रति संवेदना न जताते हुए उसके गुम होने में भी अपना फायदा देखना यह विनोद के बाबूजी का स्वार्थ ही तो दिखा रहा था । अपने पोते राहुल से उनका स्नेह तो स्वीकार्य है लेकिन डॉक्टर के बेटे बंटी से उन्हें कोई संवेदना नजर नहीं आना ही चिंताजनक है । बंटी एक तरह से उनके लिए चारे जैसा ही लग रहा था जिसका पीछा करते हुए पुलीस शिकार की तलाश कर रही थी । इस तलाश में राहुल के शिकारी के मिलने की भी संभावना छिपी हुयी थी । जबकि दोनों बच्चों के गुम होने की परिस्थितियां बिलकुल अलग अलग थीं । बंटी का अपहरण हुआ था जबकि राहुल स्वयं ही घर से भागा हुआ था । वह अपराधियों के चंगुल में ही होगा इसका कोई भी प्रमाण न तो पुलीस के पास था और न ही उसके माता पिता के पास कोई जानकारी थी फिर भी उन्होंने पुलिस की कथनी पर विश्वास करते हुए उन्हींकी तरह से सोचना शुरू कर दिया था ।
बंद कमरे में राहुल दुसरे बच्चों के साथ यूँ ही पड़ा सोने का प्रयत्न कर रहा था । नींद से बोझिल पलकें शरीर को निढाल कर जमीन पर ही लेटने को मजबुर कर देतीं वहीँ थोड़ी ही देर में सर्दी भी आकर जागते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराये बिना नहीं रहती । इसी तरह सर्दी और नींद के बीच रस्साकशी में किसी तरह सभी बच्चों की रात गुजर गयी । सुबह होने को था कि तेज चरमराहट की आवाज के साथ दरवाजा खुल गया । सामने वही दोनों शख्स खड़े थे । लेकिन इस बार दोनों अकेले नहीं थे उनके साथ था एक बहुत ही प्यारा मासुम सा पांच साल का लड़का । दरवाजे को खोलकर उस लडके को अन्दर कमरे में ढकेलते हुए दोनों वापस दरवाजा बंद कर चले गए । वह नया आनेवाला लड़का लगातार रोये जा रहा था । दरवाजा बंद होते ही वह और जोर से रोने लगा था । राहुल चुपचाप उसे देखता रहा । उसे मालुम था कि अभी इसे चुप कराने का कोई फायदा नहीं होगा । बड़ी देर तक रोने के बाद वह लड़का चुप हुआ । अब उसका रुदन सिसकियों में बदल गया था । राहुल ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और अपना हाथ बढ़ाते हुए बोला ” मेरा नाम राहुल है और तुम्हारा ? ”
सिसकियों के बीच ही उस लडके ने राहुल की तरफ देखा और फिर हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया । वह कुछ बोलना तो चाहता था लेकिन उसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी । राहुल ने भी उसकी मनोदशा को भांपते हुए उसका हाथ अपने हाथों में लेकर उसे इशारे से सांत्वना देने की कोशिश करता रहा । कुछ देर की सिसकियों के बाद वह थोडा संयत होते हुए राहुल से बोला ” मेरा नाम टीपू है । मैं आपको राहुल भैया बोलूं ? ”
राहुल मुस्कुरा पड़ा ” हाँ ! क्यों नहीं ? लेकिन यह तो बताओ तुम कहाँ से इनके हाथ में आ गए ? ”
सुनकर टीपू रुआंसा हो गया फिर भी कुछ याद करते हुए बोला ” कल शाम को मैं अपनी मम्मी के साथ बाजार आया हुआ था । मम्मी की गोद में मेरा छोटा भाई भी था । एक दुकान पर मम्मी कुछ खरीद रही थी कि मेरी नजर सामने के खिलौने की दुकान पर गयी । एक सुन्दर मोटरकार देखकर उसे नजदीक से देखने का लालच मन में आ गया । मम्मी की तरफ देखते हुए ही मैं उस दुकान पर पहुँच गया और उस कार को निहारने लगा । बस दो मिनट के लिए ही मेरी नजर मम्मी की तरफ से हटी थी और जब मम्मी का ध्यान आया मैंने उस दुकान की तरफ देखा जहां मैं मम्मी को छोड़ आया था । लेकिन मम्मी वहाँ नहीं मिली । मैं वहीँ बैठकर रो रहा था कि एक दादी सी दिखने वाली औरत आई और मुझे बताया कि मेरी मम्मी बाहर मेरा इंतजार कर रही है । मैं उसके साथ चलने लगा । बाजार से बाहर आते ही उस औरत ने मुझे एक ऑटो में बैठा कर कहा कि मेरी मम्मी उसके घर गयी है जहां वह मेरा इंतजार कर रही है । बड़ी देर तक ऑटो चलता रहा और कई अँधेरे रास्तों से होता हुआ वह एक घर के सामने रुका । वहां बड़ी देर तक रुकने के बाद किसीसे फोन पर बात करने के बाद वह औरत मुझे इस घर के बाहर के मैदान तक ले आई । वहाँ से मुझे दो आदमी लेकर यहाँ तक आये । ऑटो में बैठने के साथ ही मुझे डर लगने लगा था और मैं रोने लगा था । यही मेरी पूरी कहानी है । ”


क्रमशः