Chunni book and story is written by Krishna Chaturvedi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Chunni is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
चुन्नी - उपन्यास
Krishna Chaturvedi
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
अध्याय - एकॐ भूर् भुवः स्वःतत् सवितुर्वरेण्यंभर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात्…बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।इन श्लोको के साथ गुरु जी ने उपदेश शुरू किया। सारे शिष्य हाथ जोड़े गुरु के चरणों को स्पर्श किया। "आज का उपदेश मे हम अर्जुन के उस कथन को लेंगे जिसमे वो पूछते है - हे कृष्ण आप एक तरफ कहते हो हम कुछ नही करते, जो भी होता है वो सब पहले से सुनिश्चित है, हमारा उसमे कोई हाथ नही है, और दूसरी तरफ कहते हो हमारा धर्म लड़ना ही है। ये दो बिपरित बाते क्यों?
अध्याय - एकॐ भूर् भुवः स्वःतत् सवितुर्वरेण्यंभर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात्…बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।इन श्लोको के साथ गुरु जी ने उपदेश शुरू किया। सारे शिष्य हाथ जोड़े गुरु ...और पढ़ेचरणों को स्पर्श किया। "आज का उपदेश मे हम अर्जुन के उस कथन को लेंगे जिसमे वो पूछते है - हे कृष्ण आप एक तरफ कहते हो हम कुछ नही करते, जो भी होता है वो सब पहले से सुनिश्चित है, हमारा उसमे कोई हाथ नही है, और दूसरी तरफ कहते हो हमारा धर्म लड़ना ही है। ये दो बिपरित बाते क्यों?
चुन्नी अपने नाम के हिसाब से ही है।बिल्कुल वैसा ही जैसा उसका नाम है।बचपन से ही भोला और नादान।लोग उसके भोलेपन का फायदा उठा लेते है। बचपन से चुन्नी को पढ़ने का बड़ा शौक था।उसे क्या पता था यही ...और पढ़ेउसे एक दिन कही और ले जायेगा। पढ़ने के इसी लत मे वो अजीबो गरीब कारनामे करता था। किताब लेकर कभी बिस्तर के नीचे,कभी संदूक के पीछे, कभी छत पर, कभी खेतो मे बैठ कर।पूरा परिवार उसके इस आदत से परेशान रहते थे। वो घंटो घंटो गायब रहता था। इस नशे मे उसने घर के सारे किताब पढ़ डाले। फिर जब
वैसे आत्म निर्भर होने की कोई उम्र नही होती पर उस बालक के लिए मुश्किल है जो घर से कभी बाहर निकला ही नही।चुन्नी सत्रह साल तक अकेले कभी घर से बाहर निकला नही था, और आज अकेले दूर ...और पढ़ेसात सौ मील मद्रास जा रहा है।सबसे दूर का सफर उसने घर से आधे मील दूर गुरुजी के आश्रम तक का तय किया था अभी तक, जहाँ वो रोज शाम को जाता था।अपने साथ बाबूजी को लाना चाहता था, पर गुरुजी ने साफ मना कर दिया था ये कहते हुए कि अब तुम अपना काम खुद किया करो,आखिर कब तक
चारबहुत बड़ी ईमारत थी जिसपे मोटे अक्षरों मे लिखा था केंद्रीय प्रोधीगिकी संस्थान वाराणसी,चुन्नी उसके मुख्य द्वार पर खड़ा था,जहाँ चार दरबान खड़े थे,उनमें जो एक अधेड़ उम्र का था वो कागजी काम करवा रहा था,कौन हो कहाँ से ...और पढ़ेआने का उदेश्य क्या है वगैरह वगैरह।चुन्नी भी वहाँ पहुँचा और अपना नाम बताया।दरबान ने ऊपर से नीचे तक देखा। "नया दाखिला हो। " उसने बोला"जी आज ही आया हु। " चुन्नी बोला। "अंदर ही रहोगे या बाहर कही देखा है जगह रहने का। " उसने पूछा। "जी बाहर ही।हॉस्टल ज्यादा महंगा है मेरे ख़र्चे के बाहर है।" चुन्नी बोला। "ठीक है।दाखिले का कार्य
कॉलेज का पहला दिन। चुन्नी हर तरफ संसा के नजरो से देख था। हर चीज नई थी वहाँ, हर लोग नये थे। उपर से पहले कभी अकेले वो कही गया नही ना ही कभी अकेले रहा। माँ पापा हमेशा ...और पढ़ेहोते थे।वहाँ अब वो अकेला था, जो बाजी करना था, जो भी अनुभव होना था सब अकेले। चुन्नी धीरे धीरे पीठ पर पिट्ठू झोला टाँगे आगे बढ़ रहा था। वो अपने कक्ष की तलाश कर रहा आगे बढ़ रहा था। एक गार्ड चुन्नी को ससंकित देख पूछा"कहाँ जाना है? ""फर्स्ट ईयर मे"चुन्नी घबराते हुए बोला। " तीसरे माले पर है चले जाओ। "गार्ड