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चुन्नी - अध्याय तीन

वैसे आत्म निर्भर होने की कोई उम्र नही होती पर उस बालक के लिए मुश्किल है जो घर से कभी बाहर निकला ही नही।चुन्नी सत्रह साल तक अकेले कभी घर से बाहर निकला नही था, और आज अकेले दूर करीब सात सौ मील मद्रास जा रहा है।सबसे दूर का सफर उसने घर से आधे मील दूर गुरुजी के आश्रम तक का तय किया था अभी तक, जहाँ वो रोज शाम को जाता था।अपने साथ बाबूजी को लाना चाहता था, पर गुरुजी ने साफ मना कर दिया था ये कहते हुए कि अब तुम अपना काम खुद किया करो,आखिर कब तक अपने बाबूजी के बैशाखी पर चलते रहोगे।
डर और दुख से ब्यथित हुआ एक बार सुन कर,लेकिन गुरुजी की बात टालना उसके बस की बात नही थी। तो निकल पड़ा अकेले ही।


रात के दस बज गए थे, ट्रेन के बोगी मे ज्यादातर लोग सो गए थे, और ट्रेन अपने पूरे बेग से गंतव्य की तरफ भाग रही थी।चुन्नी भी लेट गया, और गुरु को याद करने लगा।मन मे सोच रहा था पता नही क्या होगा, अंजान शहर, अंजान लोग, मै संतुलन बना तो लूंगा। गुरुवर मेरी सहायता करना। आप का ही सहारा है।


"बेटा"। गुरुजी की आवाज़ आई।
सिर पर प्यार भरा स्पर्श कर रहे थे।

" आ गए आप गुरुवर "। चुन्नी बोला
" हाँ तुम इतने जोर से याद करोगे आना तो पड़ेगा।"गुरुजी ने बोला।
"हाँ याद किया मैंने,मुझे डर लग रहा था। पर आप इतने दूर से आये कैसे? "चुन्नी उत्साह और आश्चर्य के साथ पूछा।
" मै तो तुम्हारे साथ ही था, जब तुम निकले थे मै तुम्हारे साथ ही निकला था।शायद तुमने ध्यान नही दिया। "गुरुजी बोले।
" क्या आप साथ मे ही चले थे, पर मैंने तो नही देखा। "चुन्नी फिर आश्चर्य से बोला।
" हाँ, मै साथ ही था, बस तुम नही देख पाए। "गुरुजी सिर पर हाथ फेरते हुए बोले।
" ठीक है फिर अब मुझे कोई परेशानी नही है। आप जब आ गए तो सब ठीक है। "चुन्नी आँख छलकाते हुए बोला।
" तुम कतई चिंता छोड़ कर अपने लक्ष्य की ओर चलो, मै हमेशा ही साथ रहूँगा।"
"अगर तुम्हे फिर भी लगता है कि मै नही हूँ, तुम्हे उस स्थिति के लिए एक गूढ़ मंत्र दे रहा हूँ, जिसके जाप से तुम मुझे अपने करीब पाओगे और तुम्हारे सारे कष्ट भी दूर होंगे। " गुरुजी बोले।
"जी गुरुवर कृपा प्रदान करे। " चुन्नी बोला।
"ध्यान से सुनो -
संकट हरे मिटे सब पीरा, जो सुमरे हनुमत बलबीरा, जै जै हनुमान गुसाई, कृपा करहु गुरु देव की नाई।"
"जब भी तुम ये मंत्र का स्मरण करोगे, तुम मुझे अपने पास पाओगे। " गुरुजी ने सिर पर हाथ फेरते हुए बोला।

चुन्नी खुशी से नाच उठा।


"बेटा, बेटा" दो बार आवाज आई।
"जी गुरुजी, आप बोलते रहो मै सुन रहा हूँ। " चुन्नी बोल।
"बेटा मै गुरुजी नही टिकट निरीक्षक हूँ, अपना टिकट दिखा दो। " अधेड़ उम्र के ब्यक्ति की आवाज आई।

चुन्नी हड़बड़ाकर उठा,और चारो तरफ देखने लगा।
गुरुजी तो वहाँ नही थे पर काली कोट पहने टिकट निरीक्षक साहब हाथ मे कागज लिए खड़े थे। चारो तरफ हल्का उजाला था,ज्यादातर लोग अपना टिकट जाँच करा कर सो चुके थे।

चुन्नी टिकट निकाल कर दिखाने लगा।
टिकट निरीक्षक जाँच कर कर आगे बढ़ गया।
चुन्नी ने ठंडी आहे भरी और फिर से लेट गया।
"क्या ये सब सपना था? गुरुजी नही थे? या सच मे वो आये थे?"मन मे सोच रहा था वो।
" गुरुजी ने जो मंत्र दिया है उसका उपयोग कर के देखता हूँ, अगर सच होगा तो वो जरूर मुझे कुछ संकेत देंगे।"चुन्नी अपने मन मे सोच रहा था।

चुन्नी पलाथी मार और आँखें मूंद कर बैठ गया,फिर उसी मंत्र का स्मरण करने लगा मन ही मन।

संकट हरे मिटे सब पीरा, जो सुमरे हनुमत बलबीरा, जै जै हनुमान गुसाई, कृपा करहु गुरु देव की नाई।"

संकट हरे मिटे सब पीरा, जो सुमरे हनुमत बलबीरा, जै जै हनुमान गुसाई, कृपा करहु गुरु देव की नाई।"

बार बार वो मंत्र का उच्चारण कर रहा था,आँखे बंद थी तो ध्यान की मुद्रा मे पहुँच गया। फिर चंद पलो मे ही वो अंतर ध्यान हो गया।थोड़ी देर मे वो, एक गहरी खाई सी जहाँ बस अंधेरा ही दिख रहा था,वहाँ पहुँच गया, ऐसा लग रहा था वो उस अंधेरे से होते हुए आगे बढ़ता जा रहा, एक रास्ता बनता जा रहा था।वो आगे बढ़ता रहा,चलते चलते उसे एक नाग दिखाई दिया जो अपना मस्तक अपनी पूछ मे घुसाकर सोया हुआ था,जैसे ही उस नाग को चुन्नी के आने की दस्तक आई, वो चेतन हो गया और धीरे धीरे अपना मस्तक बाहर निकालने लगा। चुन्नी वही खड़ा होकर उस नाग को देखने लगा। नाग जाग कर धीरे धीरे उपर की तरफ सरकने लगा, ऐसा लगा वो रास्ता बता रहा, चुन्नी भी उसके पीछे हो लिया।
जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहा था अंधेरा थोड़ा कम होता जा रहा था। जो मंत्र का उच्चारण वो कर रहा था अब उसे वो खुद सुनाई देने लगा,ऐसा लग रहा था कोई और उनका उच्चारण कर रहा और चुन्नी उसे सुन रहा था।

थोड़ा और आगे बढ़ने पर एक कमल का पुष्प दिखाई दिया, जिसकी खुशबू पूरे वातावरण मे फैली हुई थी।उसके बड़े बड़े पंखुड़ीयो से तेज ज्योति निकल रहा था। वो नाग वहाँ जाकर रुक गया और गायब हो गया। चुन्नी कमल के चारो तरफ घुम कर उसका निरीक्षण करने लगा,पर वो शायद गंतव्य नही था। कमल के उपर से कहीं दूर से एक पतली रोशनी दिखाई देने लगी,जो एक संकरे से गली से आती जान पड़ रही थी।चुन्नी वो रोशनी की लकीर पकडकर कर आगे बढ़ने लगा। आसपास कुछ दिखाई नही दे रहा था, पर जैसे जैसे वो आगे बढ़ रह था,रोशनी की लकीर मोटी होती जा रही थी।चुन्नी आगे बढ़ता जा रहा था, अपने पूरे ताकत से, जल्दी पहुँचना चाहता था, पर रास्ता था कि ख़तम ही नही हो रहा था।

चलते चलते वो थक गया पर अंधेरा रास्ता ख़तम होने का नाम नही ले रहा था। बस दूर रोशनी का टिम टिमाता दिया जैसा दिखता रहा। चुन्नी वहाँ पहुँच नही पा रहा था। काफी देर हो गया जब कुछ हाथ नही लगा तो चुन्नी वापस लौटने लगा,उसी रास्ते जिससे अंदर गया था,अब वो चाह रहा था बस जल्दी बाहर निकल जाए।लौटते वक़्त देखा कि कमल सुकड़ कर छोटा हो गया था,और नाग फिर से अपना मस्तक अपनी पुंछ मे डालकर सो गया था। बाहर निकलने ही वाला था की एक आवाज आई -

"मै अपने भक्तो को कभी छोड़ता नही हूँ, जो एक बार मेरे रास्ते पर कदम रख देता है वो फिर कभी भटकता नही है,मै उसका ख्याल रखता हूँ,और बार बार उसी रास्ते पर उसे डालता रहता हूँ, जब तक वो मंजिल नहीं पा लेता। तुम फिर आओगे। तुम्हारा इंतजार रहेगा। "

चुन्नी की आँखें खुल गई।
"ये क्या था?हे गुरुवर मेरी रक्षा करना।"
डर के मारे वो आँख बन्द कर के सो गया।
ट्रैन अपने बेग से आगे बढ़ रही थी।

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