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यारी - उपन्यास
Prem Rathod
द्वारा
हिंदी लघुकथा
सूरज धीरे धीरे ढल रहा था,पंछी अपने घौंसले की तरह बढ़ रहे थे फाल्गुन महीने के कारण वातावरण मे ज्यादा ठंडी या गर्मी नहीं थी और मौसम एकदम खुशनुमा था, ठंडी हवाएं धीरे-धीरे चल रही थी। सर्दी की सुबह, वसंत की हवाएं और बारिश यह तीनों चीजें मुझे पहले से ही बहुत पसंद थी, इसलिए मैं घर से निकल कर बाहर टहलने के लिए निकल पड़ा। चलते चलते मैं गांव के बाजार तक पहुंच गया।वहांं देखा तो आज होली के त्यौहार की वजह से सब लोग उसी की खरीदारी में व्यस्त थे
शाम के 5:00 बजे थे मैंने बैंक से बाइक स्टार्ट करके अपने घर की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा। घर पहुंच कर सीधा अपने रूम में पहुंचा और फ्रेश होकर अपने बेड पर लेटा,पर पता नहीं क्यों आज ...और पढ़ेसे किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था। शायद कुछ टाइमपास हो जाए यह सोचकर मैंने मोबाइल हाथ में लिया कुछ देर तक देखने के बाद उसे भी बेड़ की साइड पर रख लिया और बेडरूम की बाल्कनी की तरफ बढ़ा।बाहर देखा तो सूरज धीरे धीरे ढल रहा था,पंछी अपने घौंसले की तरह बढ़ रहे थे फाल्गुन महीने
वो आदमी उस चीज को अच्छी तरह से समझ सकता है,जिसने उस चीज को महसूस किया हो और मैंने इस चीज को सिर्फ महसूस ही नहीं किया बल्कि इस चीज को जिया है,उस हर एक पल को उस हर ...और पढ़ेलम्हे को इसीलिए मैं इस चीज को आप सबके सामने अच्छी तरह से बयां कर सकता हूं।मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो अजय मोहित और विनय मेरी थोड़ी दूरी पर खड़े थे पर उनके साथ पार्थ नहीं था।अजीब बात थी क्योंकि थोड़ी देर पहले तो वह सब एक साथ पार्क से निकलकर अपने घर की तरफ चले गए थे,फिर यह
मैं जैसे ही बैग्स की तरफ बढ़ने वाला था कि तभी किसी ने पीछे से मेरा गला पकड़ लिया। मैं कुछ कर पाता उससे पहले ही उसने मेरे चेहरे पर कपड़ा ढक दिया और मुझे मारना शुरू कर दिया।
हम सब के मना करने के बावजूद भी रघु ने पानी में छलांग लगा दी, कुछ देर तक रघु पानी से बाहर नहीं आया। हम सब लोग वहीं पर देख रहे थे,पर वहां पर कोई हलचल नहीं हुई,हमें चिंता ...और पढ़ेरही थी कि आखिर उसे कुछ हो तो नहीं गया।'तुम सब वहांं क्या देख रहे हो?' हम सब ने पीछे मुड़कर देखा तो रघु हमारेेे पीछे खड़ा था।'तुम यहां पर कैसेेे? तुमने तो वहां पर छलांग लगाई थी' यह सुनकर वह हंसने लगा'अरे यह सब तो आम बात है.... हमारी ट्रेनिंग के दौरान इससे भी ऊंचे और गहरेे पानी में