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बाबा - उपन्यास
Junaid Chaudhary
द्वारा
हिंदी प्रेरक कथा
दिन जुमेरात शहादत का महीना मोहर्रम से दो दिन पहले मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्साजिस से शुरू हुआ मेरी ज़िंदगी का किस्सा मेरे बाबामुझे वो दिन कभी याद करने की ज़रूरत नही।क्योंकि जिसे भुलाया न जा सके वो कभी यादों का मोहताज नही होता। उस दिन में स्कूल से घर आने के लिए रवाना हुई।। मेरे बाबा बीमारी से जूझ रहे थे। अस्पताल में वो अपनी ज़िंदगी के आखरी पल गुज़ार रहे थे।यू तो में बाबा से मिलने स्कूल से आकर जाया करती थी लेकिन उस दिन अजीब सा एहसास हुआ।मानो कोई मुझसे मेरी अज़ीज़ चीज़ छीन रहा हो।ओर में सीधे
दिन जुमेरात शहादत का महीना मोहर्रम से दो दिन पहले मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम हिस्साजिस से शुरू हुआ मेरी ज़िंदगी का किस्सा मेरे बाबामुझे वो दिन कभी याद करने की ज़रूरत नही।क्योंकि जिसे भुलाया ...और पढ़ेजा सके वो कभी यादों का मोहताज नही होता। उस दिन में स्कूल से घर आने के लिए रवाना हुई।। मेरे बाबा बीमारी से जूझ रहे थे। अस्पताल में वो अपनी ज़िंदगी के आखरी पल गुज़ार रहे थे।यू तो में बाबा से मिलने स्कूल से आकर जाया करती थी लेकिन उस दिन अजीब सा एहसास हुआ।मानो कोई मुझसे मेरी अज़ीज़ चीज़ छीन रहा हो।ओर में सीधे
अम्मी इद्दत में बैठी थी।।बड़ी मान मनोव्वल ओर इलतेजाओ के बाद वो कुछ दिन की मोहलत देकर चले गए। इद्दत पूरी होते ही अम्मी ने कुछ जमा पेसो से लेडीज सूट्स का काम कर लिया।।तपती दोपहरों में बाबा का ...और पढ़ेलिए वो घरो घरो जाती और सूट्स दिखाती।कभी कोई खरीद लेता तो कभी कोई इतने कम दाम लगा देता की अम्मी का हौसला ही हिल जाता।। लेकिन वो फिर हिम्मत जुटाती क्योंकि वो जानती थी कि मांगी हुई मोहलत कभी भी खत्म हो सकती है। ओर इंसान के भेष में छुपे हैवान कभी भी हैवानियत पर उतर सकते है।कुछ दिन गुज़रने