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बाबा - पार्ट 2


अम्मी इद्दत में बैठी थी।।बड़ी मान मनोव्वल ओर इलतेजाओ के बाद वो कुछ दिन की मोहलत देकर चले गए। इद्दत पूरी होते ही अम्मी ने कुछ जमा पेसो से लेडीज सूट्स का काम कर लिया।।

तपती दोपहरों में बाबा का गम लिए वो घरो घरो जाती और सूट्स दिखाती।कभी कोई खरीद लेता तो कभी कोई इतने कम दाम लगा देता की अम्मी का हौसला ही हिल जाता।।

लेकिन वो फिर हिम्मत जुटाती क्योंकि वो जानती थी कि मांगी हुई मोहलत कभी भी खत्म हो सकती है। ओर इंसान के भेष में छुपे हैवान कभी भी हैवानियत पर उतर सकते है।

कुछ दिन गुज़रने के बाद वो फिर वापस आ गए।।इस बार उनकी आंखों में ज़रा भी रहम न था।उन्होंने कुछ नही सोचा कि हमसे खून का रिश्ता है।बल्कि वो तो रिश्तो का खून करने के इरादे से आये थे। वेसे भी जो पेसो के लिए जीता हो वो रिश्तो की कद्र क्या करेगा।। हमारे बाबा ने हमे बस मोहब्बत ओर अख़लाक़ ही विरासत में दिए थे। बाकी जो बचा था वो उनके इलाज ओर अम्मी की इद्दत में चला गया।।पेसो की तंगी की वजह से भाई ने 10th के एग्जाम छोड़ दिये और कमाने के लिए दूसरे राज्य में चला गया।।वक़्त बड़ा बेरहम है जो बच्चा स्कूल का बस्ता उठाने में नखरे दिखाता था आज वो घर की ज़िम्मेदारी कंधो पर लिए घर छोड़ गया।।में बस बेबसी ओर आंसुओ भरी आंखों से उसे जाते देखती रही।।


खेर ताया के लड़के ने समान उठा कर फेकना शुरू कर दिया।

अब वक्त हमारी आज़माइश ले रहा था।ज़िन्दगी नया खेल-खेल रही थी।न राह थी न मन्ज़िल थी।न कोई ऐसा था जिस से आस लगाते।वो एक एक कर सामान फेंक रहे थे ओर बदतमीज़ी बोल रहे थे।।ओर लोग खड़े हमारा तमाशा देख रहे थे।




लेकिन किसी ने सही कहा है जिसका कोई नही होता उसका खुदा होता है।। जहाँ सारे दरवाज़े बन्द होते है वहां वो अपनी रहमत के दरवाज़े खोल देता है। बस अल्लाह ने फरिश्ते के रूप में मेरी अम्मी के खालू हाजी साहब को भेज दिया।हाजी साहब रसूख वाले आदमी थे और बहुत धाकड़ थे।उनकी पँचायत का सुनाया फैसला कोई नही टालता था।। जब उन्होंने देखा कि घर का सामान बाहर फिकवाया जा रहा है तो उनके अल्फ़ाज़ - चाहू तो इस सब समान की जगह तुम सब को बाहर फिकवा दु ओर ये घर इसके नाम करा दु।।लेकिन मेरा ये कदम इस औरत की खुद्दारी को ठेस पहुंचायेगा। तुमने क्या सोचा इन बच्चों का कोई नहीं। फिर जब उन्होने हमारी तरफ नज़र की तो हम तीनों माँ बेटियों की आंखों में आंसू ओर बेबसी देख कर वो भी तड़प उठे। ओर उन्होंने अहद कर लिया कि अब इन बच्चों को जल्द अज़ जल्द अपना मकान मिलेगा।।उन्होंने वहां से हमारा समान उठवाया ओर अपने घर ले आये।।


मेरे ज़ेहन में घर छोड़ते वक़्त बस एक ही बात थी कि या रब एक घर जिसकी खुली छत हो.. और इज़्ज़त की रोटी हो... कोई बेइज़्ज़ती करने वाला न हो.. मिल जाए मोला।।

अम्मी थी गरीब लेकिन खुद्दारी के मुआमले में बहुत अमीर थी।।अपने खालू के घर रहना उन्हें अच्छा नही लगा। हाजी साहब ये बात जानते थे इसलिए तीसरे दिन ही उन्होंने अपने भाई का मकान हमे किराये पर दिलवा दिया।। वो घर ऐसा था कि तीसरी मंजिल थी। और पानी सबसे नीचे लगे हत्थी के नल से भर कर ले जाना पड़ता था।। में ओर मेरी अम्मी नीचे से पानी भर कर जितनी सीढ़िया चढ़ती बस यही ज़ुबा पर होता या रब मानती हु तू मेरी आज़माइश ले रहा है। लेकिन अब जहा भी हमारा अपना घर हो वहां हमे पानी की दिक्कत न हो।
खुदा 70 माओ से ज़्यादा प्यार करता है।ओर दुआ करने वाला उसके सबसे करीब रहता है।।

खुदा का करिश्मा था कि अभी हमे इस किराये के घर मे रहते महज़ 26 दिन हुए थे कि हाजी साहब फिर आते हैं ओर कहते है मेरे साथ चलो एक घर दिखाता हु। हम घर देखने जाते है ।अम्मी के खालू कहते है घर पसन्द आया ?

मेरी माँ का जवाब जो आप अंदाजा लगा सकते है।उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा घर तो बहुत अच्छा है। पर मेरी हैसियत के मुताबिक नही है।आप ऐसा दिखा दीजिये जिसे में ले सकू।

में सोचने लगी कि अब हाजी साहब भी हमारी बेबसी का मज़ाक उड़ा रहे है।।

इतने में वो बोले बस अपना सामान यहां ले आओ
ये घर तुम्हारा।।लेकिन मसला वही था कि दूध का जला छाज भी फूक कर पीता है। अम्मी घबराई हुई थी। इस घबराहट में कई रंग उनके चेहरे पर आ जा रहे थे। हाजी साहब ने कहा अरे तुम जिस मकान को छोड़ कर आई हो उसके हिस्से के 1 लाख 20 हज़ार में ले आया हु उनसे। थोड़े बहुत जुड़े जंगड़े तुम्हारे पास पड़े हो तो मुझे दे दो।। में इस घर मे किराये दार रखवा दुंगा। जो किराया आता जाए उसे तुम जमा कर के मुझे देते रहना। इस से तुम्हारी खुद्दारी भी बची रहेगी और काम भी हो जायेगा।


उस वक़्त की मेरी खुशी को लफ़्ज़ों में बया करना मुश्किल है। जहा हम सिर्फ सर छुपाने लायक़ ज़मीन से खुश हो जाते वह 65 गज़ का घर मिल जाना करिश्मे से कम न था।हम सब की दुआ क़ुबूल हो गयी।।में खुदा से अक्सर नमाज़ में कहा करती या खुदा किराये का घर काटखाने को दौड़ता है।हर वक़्त बेइज़्ज़ती का डर लगा रहता है।या खुदा अपना मकान करा देना।और आज अपना मकान हो गया।।लेकिन पानी की दिक्कत हमे यहां भी रही।और यहां भी पानी सरकारी नल से भर कर लाना पड़ता।लेकिन फिर भी ज़िन्दगी ने धीरे-धीरे ख़ूबसूरत मोड़ लेना शुरू कर दिया।भाई काम सीख कर अपने शौक मार कर घर पैसा भेजने लगा।। घर की उधारी धीरे धीरे जमा कर हमने रजिस्ट्री अपने नाम करा ली।।
पर ज़ालिम दुनिया अपने ज़ुल्म से कहां बाज़ आती है।।
जो कमज़ोर होता है उसे ज़्यादा दबाया जाता है।और ये तजुर्बा हमें हमारे पड़ोसियों ने दिया।किसी ने भी हमे लाइट नही दी।।रमज़ान का महीना शदीद गर्मियों के दिन रोज़े की हालत में दिन तो जैसे तैसे कट जाता ।लेकिन अंधेरे में इफ्तार के बाद लेटने का मन करता तो गर्मी बुरा हाल कर देती।में कभी कभी इफ्तार के बाद आसमान की तरफ मुह कर के कहती बाबा आप होते तो ये सब मुसीबतें न होती।।आप क्यों हमे तन्हा ज़ालिमों के बीच मे छोड़ गए बाबा।।आप तो जानते है बाबा में आपकी बहादुर बच्ची हु।इतनी जल्दी हार नही मान ने वाली ।में टूटना नही चाहती लेकिन ये हालात तोड़े बिना रुकना नही चाहते बाबा।। जब आपकी ज़्यादा याद आती है तो।में आपकी आखरी निशानी आपका बटुआ देख लेती हूं।।इतनी तंगी के बावजूद भी मेने उन पेसो को कभी खर्च करने का नही सोचा बाबा।।


इधर मेरी माँ चाहती तो हाजी साहब से कह कर लाइट वगेरा का कनेक्शन करा सकती थी।।लेकिन उनकी गैरत उन्हें कुछ कहने न देती। लेकिन हाजी साहब भी अजीब नजूमी थे।जिन्हें न जाने कब कैसे हमारी परेशानियों का पता लग जाता और झट से आ जाते।। जब उन्होंने आकर देखा कि पानी सरकारी नल से लाना पड़ रहा है रोज़े में ... ओर इफ्तार अंधेरे में हो रही है। तो पहले अम्मी को डांटा ओर कहा की कोई परेशानी हुआ करे तो बताया क्यों नही करती हो।। फिर उन्होंने हाथो हाथ लाइट का तार खिंचवा कर मोटर लगवा दी।। कहते है वक़्त कहा रुकता है ।बस अपने निशान छोड़ जाता है।


दर्द आपके आगे दो पहलू रखता है।
या तो आप को पूरी तरह तोड़ देता है
या फिर बेहद मजबूत बना देता है।
ये आपके ऊपर है कि आप आजमाइशों के दौर में अंधेरे में रहना चाहते है या उम्मीद की रोशनी के साथ आगे बढ़ना चाहते है।।


ओर ये उम्मीद की रोशनी ही थी जिसकी वजह से में ओर मेरी माँ ने कभी हिम्मत नही हारी।।मुझे समझ नही आता लोगो ने औरत को कमज़ोर का खिताब क्यो दिया है।क्या वो लोग नही जानते औरत तीन बार मौत से लड़ कर ज़िन्दगी की जंग जीत ती है।

जब वो पैदा होती है।
जब उसकी शादी होती है।
ओर सबसे मुश्किल जब वो माँ बनती है।


औरत ने तो मौत को भी हरा दिया।
फिर ए दुनिया तूने उसे कमज़ोर का नाम क्यो दिया।।

जिन रास्तो को लोग मन्ज़िल समझ कर बैठ जाते है माँ उन रास्तो से गुज़रती चली गई।
परेशानियां ' दर्द' तकलीफें
ज़िन्दगी का हिस्सा है
अगर दुख दर्द न हो तो खुशी का एहसास ही न हो।।


किसी शायर का शेर है

मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहे

के दाना खाक में मिल कर गुले गुलज़ार होता है।

इसलिए आप किसी के भी मान ने वाले हो याद रखे वो किसी का साथ नही छोड़ता।।क्योंकि मेरा अल्लाह बड़ा अज़ीम है।।।


जज़्बात सना के
अल्फ़ाज़ जुनैद चौधरी के।

- जुनैद चौधरी

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