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ज्याँकों राँखें साईंयाँ.. - उपन्यास
योगेश जोजारे
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
युवी केलेंडर की तारीख देखते हुवे."उस रात जो हुवा वह मरते दम तक याद रहेगा. पर उस रात न अमावस्या थी और नाही पूर्णिमा फिर भी यह घटना कैसे घटी. बस आसमान में दिनभर से बदली छाई थी,उस रोज मौसम भी कुछ बईमान सा था....आनेवाला कोई तूफान था.....!हां... मेंरी जिंदगी में, एक तूफान अनदेखा,अनचाहा तूफान....!"ठीक एक महीने बाद उस रात की घटना युवी को फिर याद आई थीऔर युवी उस रात की गहरी डरावनी यादों में डूब गया.गुरुवार का ही दिन था , देर रात युवी कि पत्नी उसे समझते हुए कह रही थी."अगले गुरुवार...दो बार चले जाना, साईबाबा के
युवी केलेंडर की तारीख देखते हुवे."उस रात जो हुवा वह मरते दम तक याद रहेगा. पर उस रात न अमावस्या थी और नाही पूर्णिमा फिर भी यह घटना कैसे घटी. बस आसमान में दिनभर से बदली छाई थी,उस रोज ...और पढ़ेभी कुछ बईमान सा था....आनेवाला कोई तूफान था.....!हां... मेंरी जिंदगी में, एक तूफान अनदेखा,अनचाहा तूफान....!"ठीक एक महीने बाद उस रात की घटना युवी को फिर याद आई थीऔर युवी उस रात की गहरी डरावनी यादों में डूब गया.गुरुवार का ही दिन था , देर रात युवी कि पत्नी उसे समझते हुए कह रही थी."अगले गुरुवार...दो बार चले जाना, साईबाबा के
क्यों किउस चमकती हुई बिजली में युवी ने जो देखा, उसकी एक झलक ही इतनी क्रूर , भयंकर,डरावनी थी. शायद यह आंखों का धोका या बुद्धि का भ्रम हों, यह सोचकर युवी ने आंखे बंद की सच्चे मन से ...और पढ़ेको आवाज लगाई और जोर से"जय साईंनाथ" का जयकारा लगाते हुए मोबाइल टॉर्च को उस दिशा में घुमाया. पर ये क्या... फिर वही दृष्य.एक अधनंगा ईन्सान एक के पेड से उल्टा लटक कर झूल रहा था, चमगादड़ की तरह. उसका सर ऊपर लटके पैरो के बीच एक टहनी पर थी. और उल्टे लटके हुए धड़ से खून पानी की तरह
वह युवी को निगलने ही वाला था तभी युवीका हाथ अपने गले मे पहने, बाबा के लॉकेट पर पड़ा. जिस में बाबा की शिर्डी की पवित्र विभूति भरी थी. उसने वह लॉकेट गले से खीचते हुए निकाला और उस ...और पढ़ेके मुंह पर दे मारा. मानो एक आग का गोला उस पिशाच के मुंह मे डाला गया, उस पवित्र लॉकेट से वो हवा में उड़ती खोपड़ी वहां से बहुत दूर जा गिरी. युवी तेजी आगे बढ़ा मंदिरकी तरफ, बस मन्दिर की सीढियाँ दो कदम आगे शुरू होने पर ही थी, तभी अचानक किसी ने उसका एक पैर पकड़कर उसे पीछे
मन में गहरी शान्ति और आत्मविश्वास भर गया था.साईंबाबा के चरणों पर माथा टेक कर युवी बोला " बाबा मै समझ गया कि आप क्या चाहते हो, बस मुझे आशीर्वाद दीजिये के में सफल हो सकू"यह कहकर युवी ने ...और पढ़ेही पड़े एक कपडे की झोली में विभुति भरकर अपने साथ ली और थोड़ी अपनी शर्ट की जेब मे भर ली. थोड़ीसी विभूति पाणी में डाली, वह पाणी पीकर युवी नवऊर्जा तरोताज़ा हो कर मन्दिर से बाहर आ गया.मोबाईल में समय देखा रात के २:२०.ऊँचे टीले पर मोबाईल को रेंज नही थी.सीढ़ियों के पास आते ही उसे एक बोर्ड दिखाई
फिर वह एक लम्बी छलाँग लगाकर युवी पर झपट पड़ा तभी युवी ने फुर्ती से जेब की विभुति निकली, "जय साईंनाथ" के जयकारे के साथ उस पिशाच्च की ओर फेकि युवी का साहस और बढ़ रहा था.उस पिशाच के ...और पढ़ेमे साईंविभुति के कारण जलन होने लगी.वोह और ग़ुस्से में आ गया "अब तू देख मेरा कमाल" बोलते ही पिशाच ने अपना कटा सर और धड़ दोनो अलग किये, जिससे वह दो अलग दिशाओ से वार करने लगा. युवी के एक हाथ में मोबाईल होने के कारण वह सिर्फ एक ही दिशा में साईंविभुति फेक सकता था. जिससे कटा सीर