jyako rakhe saaiya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

ज्याँकों राँखें साईंयाँ.. भाग 3

वह युवी को निगलने ही वाला था तभी युवीका हाथ अपने गले मे पहने, बाबा के लॉकेट पर पड़ा. जिस में बाबा की शिर्डी की पवित्र विभूति भरी थी. उसने वह लॉकेट गले से खीचते हुए निकाला और उस पिशाच के मुंह पर दे मारा. मानो एक आग का गोला उस पिशाच के मुंह मे डाला गया, उस पवित्र लॉकेट से वो हवा में उड़ती खोपड़ी वहां से बहुत दूर जा गिरी. युवी तेजी आगे बढ़ा मंदिरकी तरफ, बस मन्दिर की सीढियाँ दो कदम आगे शुरू होने पर ही थी, तभी अचानक किसी ने उसका एक पैर पकड़कर उसे पीछे की तरफ घसीटा.
युवी ने पीछे देखा फिर वही दरिंदे पिशाच का अंतड़िया लटकने वाला अधनंगा धड़.
वह धड़ उसे नीचे की तरफ घसीट रहा था औऱ युवी नीचे गिर पड़ा. एक बड़े पत्थर को युवी ने कसकर पकड़कर रखा बस एक ही कदम पर मन्दिर की सीढ़ी थी.
युवी छटपटा रहा था, उस खूनी पिशाच के धारदार तेज नाखून युवी के पैरों में गढ़ गये थे.
युवी अपनी शरीर की सारी ताकत से पत्थर को पकड़े रक्खा था.
अपनी एड़ी चोटी तक की ताकत लगा दी. युवी ने बाबा का जयकारा लगाया और एक हाथ सीढी पर रख्खा.
हाथ सीढ़ी पर पडतेही उस पिशाच की पकड़ ढीली हो गयी. युवी ने फिर दूसरा हाथ अगली सीढ़ी पर बढ़ाया औऱ पिशाच भागता हुवा झाड़ियों में चला गया.
यह देख युवि को आश्चर्य हुवा अपना मोबाइल उठाकर वह सीढियों से मन्दिर की ओर बढ़ गया....
ऊपर लाइटे लगी थी उजाला अच्छा था वह मन्दिर के अंदर पहुच गया. पास ही में पानी का मटका दिखा, उसने दौड़ कर आठ दस ग्लास पानी पी लिया, सामने साईंनाथ की मोहक मूरत देख वह साईं चरणों मे जा गिरा. फूटफूटकर रोने लगा
" बाबा आप का आशिर्वाद मेरे साथ न होता तो मैं आज जिंदा न बच पाता,मेरे प्रभु आज अपनेही मुझे जीवन दान दिया हैं"
साईबाबा के चरणों मे गिरकर युवी भावविभोर हो रहा था.
तभी उसे अपने दोनो पैरो के तलवो में कुछ हल्का गर्म चिपचिपे द्रव का एहसास हुवा, उसने देखा के पैरो में गढ़े पिशाच नाखूनो के घाव से खून बह रहा था. घुटनो तक की पेण्ट भी फट चुकी थी , घाव से खून निकल कर पैरोंतले आ रहा था. वह बाबा की मन्द स्मित करती हुई छबि को देख बोला "बाबा यह सब क्या हो रहा हैं, मुझे कुछ भी नही सूझ रहा, मेरी मती बन्द हो गयी हैं, बाबा आपही आगे मार्ग दिखाओ"
यह कह कर युवी फिर चरणों पर अपना माथा रख कर आंसू बहाने लगा.
तभी बाबा के मकुट पर का आशीर्वादरूपी एक फूल युवी के सर पर आ गिरा, युवी ने बाबा की मूरत को देखते हुए वह फूल उठाया, उसे बाबा का आशीर्वाद समझकर अपने दोनों आंखों पर लगाया और अपने शर्ट की जेब मे रख दिया. फूल आँखों पर लगाते ही उसे एक अलग ही दिव्य रोशनी का एहसास हुवा, फूल जेब मे रखते ही ह्रदय में असीम शान्ति और दृढ़ आत्मविश्वास की अनुभूति हुई. यह सब हो ही रहा था के एक और फूल बाबा के मकुट से गिर कर पास रखे विभूति के कटोरे में जा गिरा.
औऱ थोड़ी विभूति उड़कर नीचे गिरी, गिरते समय कुछ विभूति युवी की जख्म पर भी लग गई. युवी ने विभूति उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.
ये क्या...युवी के जिस घाव पर विभूति लगी थी वहा का घाव तुरंत भरने लगा. और फर्श पर जहाँ विभूति पड़ी थी वहां पर भी खून के दाग मिट चुके थे.
युवी साईबाबा के संकेत को जान गया उसने कटोरी से विभुति उठा कर अपने माथे पर लगाई फिर अपने घाव पर लगाने लगा. जैसेजैसे वह विभुति पैरो घाव पर लगाते ही वह घाव तुंरत भर कर पुर्ववत बन जाता. यह देख उसे आनंद और साईं विभुति के चमत्कार का अनुभव हो रहा था. यह क्रिया करते समय युवी को उस पिशाच के लिए कुछकुछ संकेत भी मिल रहे थे. सभी घावो पर विभुति लगाने के बाद वह पूर्ववत उठ खड़ा हुवा,उसके आँखों मे एक चमक थी. मन में गहरी शान्ति और आत्मविश्वास भर गया था.

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