ज्याँकों राँखें साईंयाँ... भाग 4 योगेश जोजारे द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ज्याँकों राँखें साईंयाँ... भाग 4

मन में गहरी शान्ति और आत्मविश्वास भर गया था.
साईंबाबा के चरणों पर माथा टेक कर युवी बोला " बाबा मै समझ गया कि आप क्या चाहते हो, बस मुझे आशीर्वाद दीजिये के में सफल हो सकू"
यह कहकर युवी ने पास ही पड़े एक कपडे की झोली में विभुति भरकर अपने साथ ली और थोड़ी अपनी शर्ट की जेब मे भर ली. थोड़ीसी विभूति पाणी में डाली, वह पाणी पीकर युवी नवऊर्जा तरोताज़ा हो कर मन्दिर से बाहर आ गया.
मोबाईल में समय देखा रात के २:२०.
ऊँचे टीले पर मोबाईल को रेंज नही थी.
सीढ़ियों के पास आते ही उसे एक बोर्ड दिखाई दिया, आश्चर्य की बात ये थी कि आज से पहले उसने यह बोर्ड़ युविने कभी नहीं देखा उस पर लिखा था
' यहाँ से रात 10 बजे के पहले ही साईंदर्शन कर टीले के नीचे उतर जाए, क्यो की रात 11 बजे के बाद इस टीले में एक नरभक्षी पिशाच्च घूमता हैं. यदि टीले के उपर ही देरी हो जाए तो साईंदरबार में ही रात बिताइये. यह एक जागृत स्थान हैं यहां मन्दिर की सीढ़ियों से ऊपर आप सुरक्षित हैं. सुबह 5 बज के बाद ही घर की ओर प्रस्थान करे. धन्यवाद...!'
युवी यह पढ़कर मनहिमन मुस्कुराते हुये साईं दरबार की सीढ़ियों से होकर नीचे उतरने लगा.जैसे उसे बाबा की ओर से कोई गुप्त संदेश ही मिला हो. आखरी सीढ़ी पर रूककर युवी मंदिर की ओर मुड़ा बाबा को अधोवदन झुक कर नमन किया "बाबा मुझे शक्ति,साहस प्रदान करना" बोलते हुए वह आखरी सीढ़ी उतर आगे बढ गया.
अब युवी के मन मे दृढ़विश्वास, ह्रदय में साहस भरा था. मानो साईंबाबा ने उसे कोई कार्य सोंपा हो. युवी अब टीले से काफी नीचे आ चुका था, तभी झाड़ियो में कुछ हलचल हुई. युवी ने मोबाइल टॉर्च घुमाकर उस दिशा में देखा, वही कटा हुवा सिर तेजी से उसकी और आ रहा था...
युवी से वो अभी टकराने ही वाला था के युवी नीचे झूक गया.
"आजा मैं तेरे ही आने की राह देख रहा था, कहाँ छिप रहा हैं. हिम्मत है तो मेरे सामने आ, मेरा मुकाबला कर" इतना कहते ही उस पिशाच का धड़ गर्द झाड़ियों से कूद कर बाहर आया ठीक युवी के सामने,कहि से वह कटा सिर भी गोल घूमता उस के धड़ पर एक फिट ऊपर आ धमका
" आ.. हां..हां... हा....!" उस पिशाच की क्रूर हसि चारो तरफ गूंज रही थी.
"अरे तू मुझे नही अपनी मौत को पुकार रहा है, मैंने तेरे जैसे कई यो को अपना भोजन बनाया है.अब तेरी बारी है,
ऊँ वाँ हआ...हा.. हा हा". वह पिशाच इस झाड़ से उस झाड़ उल्टा लटकते, कूदते हुये बोला. पलक झपकते ही वह कब युवी के पास आया कब उसके छाती पर तेज नाख़ूनों से वार कर गया पता ही नही चला. छाती पर वार करते समय ऊपर की जेब की विभुति गिर पड़ी, थोडी विभूति पिशाच के हाथों को लग गयी वैसे ही उसके हाथ का कुछ मांस नीचे गिकर जल गया. उसी दरमियान विभुति युवी के घाव पर भी गिरी, वह घाव भरकर पूर्ववत हो गया.
"जय साईंनाथ" कह कर युवी पिशाच्च की ओर दौड़ पड़ा यह देख कर पिशाच्च घुसे मे आकर इधर से उधर पेडो पर बन्दरो की तरह जोरजोर से कूदने लगा. फिर वह एक लम्बी छलाँग लगाकर युवी पर झपट पड़ा तभी युवीने....