Mrugtrushna book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mrugtrushna is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मृगतृष्णा - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
घना वन, पुष्पों और लताओं से सुशोभित बड़े-बडे, हरे-भरे और सुंदर वृक्ष, प्राय: वन्य जीव ऐसे ही निर्भीकता से स्वच्छंद विचरण करते हुए दिखाई दे जाएंगे,ये स्थान है अरण्य वन___ यहां अरण्य ऋषि वास करते हैं, ऋषि के नाम पर ही इस स्थान का नाम अरण्य वन है,इस स्थान पर उनका गुरू कुल है, जहां पर अरण्य ऋषि राजकुमार और साधारण बालकों को भी अपने ज्ञान से अवगत कराते हैं, साथ-साथ युद्ध कलाओं में भी निपुण बनाते हैं। इस गुरु कुल में अनेकों ऋषि वास करते हैं,साथ में ऋषि माताये भी है, बहुत से बालक और बालिकाएं भी यहां रहते
घना वन, पुष्पों और लताओं से सुशोभित बड़े-बडे, हरे-भरे और सुंदर वृक्ष, प्राय: वन्य जीव ऐसे ही निर्भीकता से स्वच्छंद विचरण करते हुए दिखाई दे जाएंगे,ये स्थान है अरण्य वन___ यहां अरण्य ऋषि वास करते हैं, ऋषि के नाम ...और पढ़ेही इस स्थान का नाम अरण्य वन है,इस स्थान पर उनका गुरू कुल है, जहां पर अरण्य ऋषि राजकुमार और साधारण बालकों को भी अपने ज्ञान से अवगत कराते हैं, साथ-साथ युद्ध कलाओं में भी निपुण बनाते हैं। इस गुरु कुल में अनेकों ऋषि वास करते हैं,साथ में ऋषि माताये भी है, बहुत से बालक और बालिकाएं भी यहां रहते
विभूति नाथ स्वयं ही अपने हृदय की ब्याकुलता को नहीं समझ पा रहा था,सब कुछ होते हुए भी उसके पास कुछ भी नहीं था, उसे अपना जीवन ब्यर्थ सा प्रतीत हो रहा था, उसके मस्तिष्क में विचारों का आवागमन ...और पढ़ेही तीव्र गति से हो रहा था,उसकी इन्द्रियां स्वयं उसके प्रश्नों का उत्तर चाहती थीं, परंतु उसका उत्तर पाने वो ,किसके समक्ष जाए,उसका मस्तिष्क और हृदय उस समय दिशाविहीन था। प्रात:काल का समय था,सूर्य की हल्की हल्की लालिमा धीरे धीरे चहुं ओर पसरने लगी थी, पंक्षियो ने भी अपने कोटर छोड़ दिए थे,मयूर नृत्य कर रहे थे,जगह जगह से वन्य
शाकंभरी, विभूति के जाने के उपरांत तनिक गम्भीर हो चली थी, उसने सोचा यदि विभूति को उसने क्षमा कर दिया होता तो..... परंतु उसका अपराध क्षमायोग्य नहीं था, किसी भी स्त्री को ...और पढ़ेअनुमति के बिना स्पर्श करना...... उसके उपरांत प्रेम की दुहाई देना,वासना पर प्रेम का आवरण डाल देना ये कदापि भी अनुचित नहीं है।। मैंने उसके साथ उचित व्यवहार किया, कोई और भी होता तो ऐसा ही करता, परंतु मेरा मन विभूति के चले जाने से खिन्न क्यो है, मेरा हृदय इतना विचलित हैं, मस्तिष्क में भी कई प्रश्न उठ रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं
तभी राजलक्ष्मी को पता चला कि शाकंभरी इसी राज्य की राजकुमारी है,तब राजलक्ष्मी ने अपार शक्ति से निवेदन किया की कि वे उन्हें शाकंभरी से भेंट करने की अनुमति दे।। अपारशक्ति बोले,हां! क्यो नही,वे आपकी ...और पढ़ेहै,आपको उनसे मिलने के लिए मेरी अनुमति की आवश्यकता नहीं।। राजा अमर्त्य सेन और राजलक्ष्मी, शाकंभरी से उसके कक्ष भेंट करने पहुंचे, एकाएक राजलक्ष्मी को अपने महल में देखकर शाकंभरी को अत्यधिक प्रसन्नता हुई,वो फूली ना समाई और राजलक्ष्मी को शीघ्रता से अपने बांहपाश में ले लिया।। अमर्त्य सेन ने शाकंभरी से कहा__ पुत्री शाकंभरी, जिस प्रकार राजलक्ष्मी मेरी पुत्री है
शाकंभरी, राजलक्ष्मी के विचार सुनकर घोर चिंता में डूब गई, राजलक्ष्मी की इन गूढ़ बातों का शाकंभरी के पास कोई उत्तर ना था और ये सारी बातें महाराज अमर्त्यसेन भी सुन रहे थे।। आते-जाते ...और पढ़ेकी दृष्टि शाकंभरी पर पड़ ही जाती,वो उसकी सुंदरता पर मोहित नहीं था,उसकी सरलता और सौम्यता उसे भा गई थीं, उसका व्यवहार साधारण था कोई राजसी झलक नहीं थी उसके व्यवहार में,हर बात का सहजता से उत्तर देना, सदैव दृष्टि नीचे रखकर बात करना,मुख पर सदैव एक लज्जा का भाव रहना,बस ये सब बातें ही अपार को भा गई और ये सब गुण उसे