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एक विधवा और एक चाँद - उपन्यास
Neela Prasad
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (1) आज यहाँ आखिरी रात है। फैसले की ये रात मान्या के दिल पर बहुत भारी है- अपनी कह और अजित की सुन सकने वाली आखिरी रात! 'आज का दिन मेरी उम्मीद का है आखिरी दिन', नहीं, 'आज की रात मेरी उम्मीद की है आखिरी रात'...कल सुबह तो इस ट्रेनिंग हॉस्टल में दूर- दूर से इकट्ठा हुए सारे पंछी अपने- अपने बसेरे उड़, बिछुड़ जाएँगे! इसीलिए तो कह रही है जिंदगी- 'तुरंत फैसला लो या उमर भर पछताओ।' वक्त की उफनती आई लहर जब ऐन आँखों के सामने एक चमकदार, कीमती मोती डाल
एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (1) आज यहाँ आखिरी रात है। फैसले की ये रात मान्या के दिल पर बहुत भारी है- अपनी कह और अजित की सुन सकने वाली आखिरी रात! 'आज का दिन मेरी उम्मीद ...और पढ़ेहै आखिरी दिन', नहीं, 'आज की रात मेरी उम्मीद की है आखिरी रात'...कल सुबह तो इस ट्रेनिंग हॉस्टल में दूर- दूर से इकट्ठा हुए सारे पंछी अपने- अपने बसेरे उड़, बिछुड़ जाएँगे! इसीलिए तो कह रही है जिंदगी- 'तुरंत फैसला लो या उमर भर पछताओ।' वक्त की उफनती आई लहर जब ऐन आँखों के सामने एक चमकदार, कीमती मोती डाल
एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (2) आठवाँ दिन अंदर पूर्णिमा में बदलता जाता है चाँद! वे टहल रहे हैं। पेड़ों की छाँह भरे घुमावदार, साफ-सुथरे रास्तों पर, जहाँ पेड़ों से झरे पीले पत्ते बिछे हैं। अतीत सूख-झरकर ...और पढ़ेबिछ गया है? मान्या पूछना चाहती है। अगले सेशन का समय हो रहा है। अजित कह रहा है- ‘हम अलग रास्तों पर निकल गए थे, पर नियति ने हमें फिर से मिला दिया। एक तुम - लहूलुहान दिल की विधवा एक मैं - बिना विवाह, लंबे रिश्ते से गुजर, प्रेमिका से अलग हो चुका कुँवारा। तो वीराना झेल रहे, आधे-
एक विधवा और एक चाँद नीला प्रसाद (3) ये चाँद कोई भ्रम तो नहीं! अजित और मान्या कुर्सियों पर बैठ गए- आमने-सामने। ओह! अजित उसके ठीक बगल में उसका हाथ अपने हाथों में लेकर क्यों नहीं बैठता? कुछ पलों ...और पढ़ेचुप्पी जब सीने पर रखा पहाड़ बन जाए तो बोलना पड़ता है। मान्या की आवाज किसी दूसरी दुनिया से जबरन खींच लाई गई। वह अब भी खोई-सी थी। 'कुछ कहना चाहती हूँ अजित!' अजित की मुस्कराहट ने हामी का संकेत दिया, तो मान्या ने हिम्मत जुटाई- 'दो आत्मनिर्भर लोगों के साथ में, मेरे जाने- सिर्फ और सिर्फ दिल का रिश्ता