एक विधवा और एक चाँद
नीला प्रसाद
(1)
आज यहाँ आखिरी रात है। फैसले की ये रात मान्या के दिल पर बहुत भारी है- अपनी कह और अजित की सुन सकने वाली आखिरी रात! 'आज का दिन मेरी उम्मीद का है आखिरी दिन', नहीं, 'आज की रात मेरी उम्मीद की है आखिरी रात'...कल सुबह तो इस ट्रेनिंग हॉस्टल में दूर- दूर से इकट्ठा हुए सारे पंछी अपने- अपने बसेरे उड़, बिछुड़ जाएँगे! इसीलिए तो कह रही है जिंदगी- 'तुरंत फैसला लो या उमर भर पछताओ।'
वक्त की उफनती आई लहर जब ऐन आँखों के सामने एक चमकदार, कीमती मोती डाल गई है तो उसे मान देकर उठा लेना चाहिए, वरना नियति की दूसरी लहर उसे वापस भी तो ले जा सकती है! दिल के दरवाजे पर हौले-से दस्तक देते आकर खड़े हो गए को अबकी अंदर बुला ले या हमेशा की तरह दरवाजा मजबूती से बंद किए रहे? प्यार उसकी जिंदगी में हमेशा एक आहट की तरह आता और चला जाता रहा है। उस आहट को सुन आगे आने, उसे अपना लेने या उसमें डूब जाने की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो पाई।
'पर अब तो मैं विधवा हूँ- दिल से खाली!' मान्या ने सोचा।
डिनर हो चुका। ट्रेनिंग हॉस्टल के विशाल दस मंजिले भवन के सामने बड़े से लॉन में रात के अँधेरे में एक कुर्सी पर अकेली बैठी थी, अब बेचैनी में उठकर टहलने लगी। हल्की रोशनी का सुंदर संयोजन और घास के अंदर फिट छोटे-छोटे माइक! आत्मा को शांति पहुँचाती कोई मीठी धुन बज रही है पर वह रोना चाहती है। चाहती है कि प्रेम-भंग के गीत बजें। सारी दुनिया जान जाए कि उसकी जिंदगी न कभी महकी, न सुगंध में सराबोर हुई।
नहीं, वह चाहती है कि कोई प्रेम गीत बजे। एज इज़ जस्ट अ नंबर(उम्र एक संख्या मात्र है)। जिंदगी अभी बाकी है। बाकी है सुगंध में सराबोर होकर, किसी में डूबना-इतराना! क्या अजित अभी आएगा, सीने से लगाएगा? जरूर अब भी कुछ है उसमें, तभी तो अजित उसे चाहता है। उसकी आँखों में उमड़ते दर्द के समंदर को पी जाना, उसे भरोसा दिलाना चाहता है कि वह अब भी जिंदा है- प्यार कर-करके लबालब भिगो दिए जाने के काबिल!
वह सीढ़ियाँ चढ़ तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में चली गई। कतार में बने कमरे ट्रेनिंग के लिए आए ऑफिसरों को अलॉट कर दिए गए हैं। डेढ़ दशकों से नौकरी कर रहे शादीशुदा, व्यस्त जिंदगी जी रहे जिम्मेदार लोग हैं सब-के-सब, तो इस सावधानी की कोई जरूरत नहीं कि सुरक्षा के लिहाज से महिला अधिकारियों को दूसरे विंग में फैकल्टीज़ के बगल वाले कमरे दिए जाएँ। यह तब होता था, जब वह कुँवारी थी।
इसी कतार में पाँच कमरों के अंतराल पर दो प्राणियों के दिल कल बिछुड़ जाने के खयाल से कसक में डूबे हैं। वे धड़क रहे हैं किसी कई बार महसूसी, फिर भी अनसमझी अनुभूति से!
सजे-धजे सुगंधित कमरे में, बिस्तर पर औंधे मुँह लेटी, सुबक- सुबक रोती मान्या यहाँ आने के बाद के दिनों को एक-एक कर खँगाल रही है।
ट्रेनिंग का पहला दिन
आसमान में चाँद दिखने का आभास
ट्रेनिंग का पहला दिन था। पूछे गए चार सवालों के दनादन जवाब क्या दे दिए, सबकी नजरों में चढ़ गई। वह पीछे ही बैठा था। टी ब्रेक में आया और गपशप करने लगा।
‘तुमने तो मुझे पहचाना नहीं होगा?’ से बात शुरू हुई। मान्या पहचानती थी। फिर तो आराम से बातें शुरू हो गईं- पिछले शहर में पोस्टिंग की, दफ्तर और कॉन्फरेंसों में कभी-कभार हुई चंद मिनटों की मुलाकातों की...उन बातों की बातें, जो कच्ची उमर में संकोचवश कह नहीं पाते थे। फिर आहिस्ता से दिल की बातें!
‘बढ़ती उमर के साथ तुम ज्यादा आकर्षक लगने लगी हो। कैसी चल रही है जिंदगी?’ अजित ने पूछा तो मान्या अंदर से रो पड़ी। ‘मन के उजड़े चमन में आह का दिया जलता है’, पर प्रकट बोली
‘विधवा बनी जीती हूँ। घर से विद्रोह करके चली आई थी अपने एक घर की तलाश में, पर न घर बना, न बसा’।
उसका गला रूँध गया।
‘ओह! आई ऐम सॉरी’। अजित ने कहा।
अजित सुंदर है। गठीला, साँवला बदन, तीखे नाक- नक्श, लंबा कद, मेधावी दिखता आकर्षक व्यक्तित्व। वह मान्या का घोर प्रशंसक है, उसे सातवें आसमान पर चढ़ा देता है, तो स्वाभाविक है, मान्या को बहुत अच्छा लगता है।
मान्या ने टुकड़े- टुकड़े हो चुके अपने दिल का एक टुकड़ा प्यार का झरना बरसा रहे अजित को दे दिया।
दूसरा दिन
दूसरे दिन खिला मन में दूज का चाँद
‘क्या तुम्हें पता है, मैं मन- ही- मन तुम्हें साल-दर-साल कितना चाहता रहा? ऑफिस के तुम्हारे कमरे में जाता, तुम्हें एक नज़र देख बगल की मेज पर बैठे तुम्हारे इमीडिएट बॉस से कोई फालतू की बात करके लौट जाता। जिस दिन तुमसे भी दो बातें हो जातीं, दिन-भर इतराता फिरता।’
‘क्या तुम्हें पता है कि मैं भी मन- ही- मन तुम्हें कितना चाहती और इंतजार करती रही कि तुम कमरे में आओ तो सिर्फ मुझसे बातें करो। अपनी उन नजरों को बखानो जो मुझे इतना परेशान करती और गुदगुदाती रहती हैं। प्यार है कि नहीं है, के ज्वार-भाटे में झुलाती रहती हैं।’
‘हर प्यार कह देने या पा लेने को नहीं किया जाता पगली! कभी-कभी प्यार को सारी तीव्रता समेत मन में रख लेना ही असली प्यार है। जता दिया जाकर अपनाया नहीं जाएगा, तो दिलों में धुआँता, जिंदगी में दूषण फैलाता रहेगा। तुम्हारा एक ऑरा था- इंटेलिजेंट, सिंसियर, सलीकेदार इंजीनियर का। ऑफिस के सबसे पॉपुलर ऑफिसरों में थी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जमकर हिस्सेदारी करती थी, इतनी अच्छी ऐक्टिंग करती थी... मंच पर तुम्हें देखकर मेरी धड़कनें रुक जाती थीं। तुम्हें सराहता, साथ की इच्छा तो करता था पर लगता था कि भागदौड़ और तमाम जिम्मेदारियों भरी अपनी जिंदगी में अगर तुम्हें ले आऊँगा, अपनाऊँगा तो बर्बाद भले कर दूँ, आबाद नहीं कर पाऊँगा। तुम्हें लगातार विकसित होते रहने को जो वातावरण चाहिए, वह मैं दे नहीं पाऊँगा। इसीलिए यही ठीक है- प्यार करना पर मन में ही रखना.. और फिर जो कहा नहीं गया, वह प्यार, क्या प्यार नहीं होता?’ वह मुस्कराती आँखों के साथ कह रहा है।
‘बोल देते तो दो कुँवारे, जो तब तक किसी से कमिटेड नहीं थे, साथ- साथ घूमते- भटकते- लिखते-पढ़ते...पहाड़ पर बैठकर सूरज का उगना-डूबना देखते, गाने सुनते... क्या पता प्रेम- पत्र भी लिखते!’, मान्या हँस रही है। अजित भी हँस रहा है।
‘मेरे पति को यही शिकायत रही कि मैंने कभी कहा ही नहीं कि मुझे उनसे प्यार है, तो वे जानते कैसे? इसीलिए वे किसी न किसी और से प्यार करते रहे- उनसे, जो दिन में कई-कई बार कहती, लिखकर जताती रहीं कि प्यार है, प्यार है, प्यार है...मैंने कभी जताया नहीं कि वे कितने अच्छे हैं तो उन्हें लगा, मैं मन में उन्हें बुरा समझती हूँ।' वह आँखों में भर आए आँसुओं के बावजूद मुस्कराकर बोली, 'अब सोचो कि शब्द ही सबकुछ हैं? क्या प्यार का बार- बार उचार ही अंदर से समृद्ध कर सकता है? खुद को पूरे- का- पूरा दे देना, भावों से, कर्मों से, बिन शब्दों के समझा देना- कुछ नहीं? क्या बिन-बोला इजहार अर्थहीन है?!’
अजित यह सुनकर हँसने लगा। मान्या रोने लगी ।
उसे रोती देख वह एकदम से सीरियस हो गया।
तीसरा दिन
अतीत के काले बादलों को पछाड़कर बाहर निकल आया चाँद!
‘हाँ, अजित, शादी तो की, पर जल्द ही विधवा हो गई। और वो भी ऐसे कि विधवा हुई तो साथ रोने तक को कोई नहीं था- न दोस्त, न परिवार, न समाज! किसी को पता जो न चला कि मैं विधवा हो चुकी हूँ। मेरा सबकुछ बे-आवाज़ टूटा और मैं आज तक अपने घर के बिखरे टुकड़े चुनती जीती हूँ... कि जैसे नियति ने कहा कि तुमने अपने चाहने वालों का दिल - मजबूरन ही सही - बार-बार तोड़ा है, उन्हें अपनाने से - भारी मन से, मजबूरी में सही - इनकार किया है, तो अब टूटे दिल से जीना तुम्हारी नियति होगी। तुम्हारी जिंदगी एक ऐसी जिंदगी होगी जिसमें प्यार की खोज होगी, तड़पन होगी और होगी प्यार के अहसास को पकड़ने की अनवरत कोशिश। इसी कोशिश में तुम बूढ़ी होकर मर जाओगी, पर उफनते-बरसते प्यार में कभी नहा न पाओगी। प्यार तुम्हें अंत तक छकाता रहेगा। क्य़ा तुम समझ सकते हो ऐसे जीना कितना मुश्किल है? कि आप अंदर से दुख में डूबे हों पर आपको सुख का अभिनय करते जीना पड़े, अंदर रेगिस्तान में अंधड़ चलता हो पर बाहर वासंती बयार दिखानी पड़े, दिमाग की नसें तनती हों पर मुस्कराना पड़े, कि आप...’
मान्या की आँखों में आँसू देख, अजित की आँखें भी भीग गईं। वह उठा और चला गया।
मान्या को अपने आँसू दिखाना नहीं चाहता।
नि:शब्द समानुभूति भी प्यार है- मान्या ने सोचा।
पाँचवाँ दिन
चाँद अंदर चमकता है !
पता नहीं किस दोस्त की कार उठा लाया था अजित! खूब घुमाया, तेज-तेज गाने सुनाए - गाकर, तो सी.डी. से भी। मसखरा बना हँसाता रहा। फिर अचानक से मान्या को छेड़ता-सा बोला-
‘मैं पिघला हुआ चाँद हूँ, मुझे पी लो’।
‘मैं फटा हुआ दिल हूँ, मुझे सी लो’, मान्या ने चुहल लौटाया।
‘मैं सुबह की ओर बढ़ती रात हूँ’, अजित ने कहा तो मान्या ने जड़ दिया-
’मैं खत्म हो चुकी बात हूँ’
‘नहीं, बात अभी बाकी है’, मान्या के कहे को अजित ने उलट दिया।
‘रात अभी बाकी है’ अजित की ओर मुड़कर हँसती हुई मान्या ने भी फिल्मी लाइन उचार दी।
दो जोड़ी होंठ एक-साथ मुस्कराते, एक दिल में बदल जाते है।
टी ब्रेक, लंच ब्रेक से शुरू करके अब शामें भी साथ गुजरने लगी हैं। बीच के पंद्रह सालों को सारे अनुभव बाँटकर पाट लिया गया। एक हल्केपन ने मान्या को घेर लिया - जैसे न किसी अतीत का बोझ हो, न भविष्य की चिंता! न विधवापन किसी लाश-सा कंधे पर लदा हो, जिसे उठाकर चलने की मजबूरी हो; न ही परंपरा का कोई अदृश्य परदा सिर पर डला हो।
‘मैं कोई भ्रम नहीं हूँ। मैं सचमुच सामने हूँ। तुम्हें प्यार करता हूँ, तुम्हें अपना सकता हूँ।’-
अजित ने कहा, तो सीढ़ियाँ चढ़ती मान्या ठिठक गई, फिर मुस्करा दी।
अजित ने धीमे से पूछा-
‘क्या मैं तुम्हें चूम सकता हूँ?’
‘नहीं’, दृढ़ता से बोल कर मान्या झटके से कमरे में घुस गई।
बिस्तर पर लेटी तो उसके होठों पर अजित के होंठ चिपके हुए थे। वह मसल रहा था, चूस रहा था, निशान बना रहा था गालों पर। अभ्यास बहुत पुराना है, पर संकोच नया। नहीं, संकोच बहुत पुराना है, अभ्यास नया... बेशर्मी की आदत जो नहीं ठहरी! इस आलिंगन में बाहुपाश कुछ ज्यादा कसे हैं, ताकत के इस्तेमाल की तरह! इसमें वो कोमलता नहीं जिसकी वह आदी रही है, पर होंठ फिर भी थरथरा रहे हैं। शरीर में कोई लहर दौड़ती है जैसे, और बिजली होंठों से शुरू होकर पाँवों के तलवों में समा जाती है। वह होठों पर पिला हुआ है- मानो अभी, इसी क्षण, उसके सारे वजूद को होठों की मार्फत पी लेगा। वह प्रतिदान नहीं दे पाती। उसके लिए चुंबन लेने- देने की इच्छा, दुलार में सने नाजुक-नाजुक होठों की छुअन है, जैसे कोई संगीत बजाता हो आत्मा में! शरीर के तारों को इस उम्मीद के साथ हौले- हौले छेड़ा जाता हो कि उनमें से राग-रागिनियाँ निकलेंगी।
अगले दिन उसे देख अजित स्वाभाविक तरीके से मुस्कराया तो मान्या एकदम से शर्मा गई। फिर अचकचाकर महसूसा कि अजित ने असल में चूमा थोड़े था, वह तो इनकार सुनकर दरवाजे पर से ही चला गया था!
क्रमश..