Buri Aurat hu me book and story is written by Vandana Gupta in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Buri Aurat hu me is also popular in महिला विशेष in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
बुरी औरत हूँ मैं - उपन्यास
Vandana Gupta
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
बुरी औरत हूँ मैं (1) झुरमुटी शामों में उदास पपीहे की पीहू पीहू कौंच रही थी सीना और नरेन हर लहर से लड़ रहा था, समेट रहा था खुद को जब भी किसी दरीचे में कोई न कोई लहर आकर छेड़ जाती सुप्त तारों को और फिर शुरू हो जाती एक और जद्दोजहद कभी वक्त से तो कभी खुद से. काश दिल एक जंगल होता जहाँ होते सिर्फ शेर चीते बाघ लोमड़ियाँ या फिर पेड़ पौधे और कंटीली झाड़ियाँ तो शायद इतना संघर्ष न करना पड़ता उसे.....नहीं नहीं, जंगल में भी जंगली जानवरों से लड़ना पड़ता है खुद के अस्तित्व
बुरी औरत हूँ मैं (1) झुरमुटी शामों में उदास पपीहे की पीहू पीहू कौंच रही थी सीना और नरेन हर लहर से लड़ रहा था, समेट रहा था खुद को जब भी किसी दरीचे में कोई न कोई लहर ...और पढ़ेछेड़ जाती सुप्त तारों को और फिर शुरू हो जाती एक और जद्दोजहद कभी वक्त से तो कभी खुद से. काश दिल एक जंगल होता जहाँ होते सिर्फ शेर चीते बाघ लोमड़ियाँ या फिर पेड़ पौधे और कंटीली झाड़ियाँ तो शायद इतना संघर्ष न करना पड़ता उसे.....नहीं नहीं, जंगल में भी जंगली जानवरों से लड़ना पड़ता है खुद के अस्तित्व
बुरी औरत हूँ मैं (2) “ मिस्टर ! तुम चिंता मत करो, मैं खुद देख लूंगी मुझे क्या करना है और देखो तुमने मेरा बहुत टाइम वेस्ट कर दिया है, मुझे लगता है मुझे चलना चाहिए, कभी मेरी जरूरत ...और पढ़ेतो इस नंबर पर कॉल कर देना मैं आ जाऊँगी”, कह उसने एक कार्ड अपने पर्स से निकाल मुझे दिया और चली गयी मुझे मेरे सवालों के साथ छोड़. सपना था या हकीकत ? एक उहापोह में खुद को पाया. नहीं ये सच नहीं है, वो जो दिखती है या कहती है उससे कहीं बहुत गहरे अंदर गड़ी हुई है,
बुरी औरत हूँ मैं (3) वहीँ एक दिन घर में उत्सव का आयोजन था जिसमे हम दोनों भी शामिल थे. मेरे छोटे भाई की पत्नी के दूर के रिश्ते के एक रिश्तेदार भी आये थे और शमीना को देख ...और पढ़ेउठे. उन्होंने शमीना के बारे में छोटे भाई की पत्नी को बताया क्योंकि वो उसे पहचान गए थे और फिर ये बात सारे घर में फ़ैल गयी. मुझे कटघरे में खड़ा कर दिया गया. सबका यही कहना था तुमने तो खानदान की नाक कटा दी, इसे अभी के अभी छोड़ दो लेकिन जब मैंने बताया मैं सब कुछ जानता हूँ
बुरी औरत हूँ मैं (4) अब जरूरत थी एक सिरा पकड़ने की. पहले नौकरी की व्यवस्था करनी जरूरी थी इसलिए अपनी पुरानी कम्पनी में ही जाकर दरख्वास्त लगाई तो उन्होंने हाथों हाथ मुझे ले लिया शायद मेरी किस्मत के ...और पढ़ेको मुझ पर रहम आना शुरू हो गया था. ज़िन्दगी एक ढर्रे पर जब चलने लगी तो खुद को व्यस्त रखने को सामाजिक संस्थाओं से जुड़ गया. दिन कंपनी में और शाम वहां. अब सुबह शाम की व्यस्तता में मैं शमीना को एक हद तक भूल चूका था. यूँ भी ज़िन्दगी में करने को कुछ बचा नहीं था. कुछ मित्र