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जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी - उपन्यास
PANKAJ SUBEER
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी (कहानी पंकज सुबीर) (1) यह कहानी सुने जाने से पहले कुछ जानकारियों से अवगत होने की माँग करती है। उन जानकारियों की रोशनी के अभाव में कहानी कुछ अविश्वसनीय लगेगी। इसलिए बहुत संक्षिप्त सी जानकारी यहाँ दी जा रही है। इसे भी कहानी की हिस्सा ही मान कर पढ़ा जाए। कहानी की कहानी और ज्ञान का ज्ञान। असल में यह कहानी एक विशेष अंचल की है। इस अंचल में कुछ जिलों में कई सारी जातियों की मिली-जुली जनसंख्या है। इस मिली-जुली जनसंख्या में कुछ जातियाँ ऐसी भी हैं, जो बिल्कुल भी
जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी (कहानी पंकज सुबीर) (1) यह कहानी सुने जाने से पहले कुछ जानकारियों से अवगत होने की माँग करती है। उन जानकारियों की रोशनी के अभाव में कहानी कुछ अविश्वसनीय लगेगी। ...और पढ़ेबहुत संक्षिप्त सी जानकारी यहाँ दी जा रही है। इसे भी कहानी की हिस्सा ही मान कर पढ़ा जाए। कहानी की कहानी और ज्ञान का ज्ञान। असल में यह कहानी एक विशेष अंचल की है। इस अंचल में कुछ जिलों में कई सारी जातियों की मिली-जुली जनसंख्या है। इस मिली-जुली जनसंख्या में कुछ जातियाँ ऐसी भी हैं, जो बिल्कुल भी
जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी (कहानी पंकज सुबीर) (2) श्रीमती शीला देवी के गौने के क़रीब दो महीने बाद ही घटनाक्रम शुरू होता है। सबसे पहले तो यह हुआ कि श्रीमती शीला देवी की माताजी ...और पढ़ेखेत पर काम करते समय साँप काटने से चल बसीं। पत्थर वाले पीर के चबूतरे पर दिन भर झाड़ा-फूँकी होती रही। मगर कुछ न हो सका। साँप का ज़हर अपना काम कर गया। और श्रीमती शीला देवी का मायका स्त्री विहीन हो गया। मतलब यह कि अब घर के काम-काज करने की ज़िम्मेदारी चारों पुरुषों पर ही आ गई। एक
जनाब सलीम लँगड़े और श्रीमती शीला देवी की जवानी (कहानी पंकज सुबीर) (3) उसके बाद की बरसात श्रीमती शीला देवी के लिए वैसी नहीं रही, जैसी कष्टदायक उस दिन के पहले थी। अब बरसात में ठंडक आ गई थी। ...और पढ़ेआ गई थी, या ठंडक पड़ती रहती थी। अब हिना का अत्तर खेत के उस टप्पर में गाहे-बगाहे महकने लगा था। बल्कि यह कहें तो ज़्यादा ठीक होगा कि हिना के अत्तर की भीनी-भीनी महक अब टप्पर में हमेशा ही बनी रहती थी। एक-दो दिन कम होती, फिर किसी दिन तेज़ हो जाती। जिस दिन तेज़ बरसात होती उस दिन