Amar Prem book and story is written by Vandana Gupta in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Amar Prem is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अमर प्रेम. - उपन्यास
Vandana Gupta
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (1) प्रेम और विरह का स्वरुपप्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है और खुदा ही प्रेम है --------सत्य है।प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्यदिन-ब-दिन बढ़ता ही है ।
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (1) प्रेम और विरह का स्वरुपप्रेम ----एक दिव्य अनुभूति --------कोई प्रगट स्वरुप नही,कोई आकार नही मगर फिर भी सर्व्यापक ।प्रेम के बिना न संसार है न भगवान । प्रेम ही खुदा है ...और पढ़ेखुदा ही प्रेम है --------सत्य है।प्रेम का सौन्दर्य क्या है ------विरह । प्रेम का अनोखा अद्भुत स्वरुप विरह(वियोग)है ।बिना विरह के प्रेम अधूरा है और बिना प्रेम के विरह नही हो सकता ।दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । एक के बिना दूसरे की गति नही ।प्रेम के वृक्ष पर विकसित वो फल है विरह जिसका सौंदर्यदिन-ब-दिन बढ़ता ही है ।
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (2) एक बार अजय को चित्रकारी के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ उसे प्राप्त करने के लिए उसे अर्चना के शहर जाना था। जाने से पहले अजय ने ये खुशखबरी अर्चना को ...और पढ़ेलिखकर पहुंचाई और साथ ही अर्चना से मिलने की इजाजत मांगी और अपना फ़ोन नम्बर दिया । उससे पूछा कि क्या वो उससे मिल सकती है सिर्फ़ एक बार या एक बार फ़ोन पर ही मुबारकबाद दे सकती है । मगर अपने संस्कारों और मर्यादाओं से बंधी अर्चना ने उससे मिलने से मना कर दिया। जिस दिन अजय को सम्मान
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (3) एक ही पल में इतना कुछ अचानक घटित होना--------अर्चना को अपने होशोहवास को काबू करना मुश्किल होने लगा। जैसे तैसे ख़ुद को संयत करके अर्चना ने भी अपने परिवार से अजय ...और पढ़ेपरिचय कराया और फिर अजय ने भी अपने परिवार से अर्चना के परिवार को मिलवाया। दोनों परिवार इकट्ठे भोजन का और उस खास शाम का आनंद लेने लगे। मगर इस बीच अर्चना और अजय दोनों का हाल 'जल में मीन प्यासी 'वाला हो रहा था। आज दोनों आमने- सामने थे मगर लब खामोश थे. दोनों के दिल धड़क रहे थे
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (4) उधर अजय अपने वादे पर अटल था ----- दोबारा कभी न मिलने का वादा। अब उसने अर्चना को पुकारना छोड़ दिया था शायद अर्चना से मिलकर उससे अपना हाल-ए-दिल कहकर अजय ...और पढ़ेवक़्ती सुकून मिल गया था मगर फिर भी एक उदासी हर पल उसके जेहन पर छाई रहती ।अर्चना की यादों के साये हर पल उसके मानस- पटल पर छाये रहते । अब तो उसने खामोशी को अपना हमसफ़र बना लिया था और गुमनाम अंधेरों में जीवन गुजारने लगा था सिर्फ़ अर्चना की कवितायेँ पढता और उन्हें अपनी चित्रकारी से सजाता।
अमर प्रेम प्रेम और विरह का स्वरुप (5) जब समीर ने इतना आश्वासन दिलाया तब अर्चना ने हिम्मत करके राख में दबी चिंगारी का समीर को दर्शन कराने की ठान ली और वादा लिया यदि वो नाराज भी होगा ...और पढ़ेउसे कह देगा मगर उसे छोड़कर नहीं जाएगा क्योंकि अर्चना के लिए उसके पति और बच्चों का जीवन में क्या महत्त्व है वो कोई नहीं समझ सकता, वो उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती और जो खलिश उसे राख किये जा रही है वो बताने पर हो सकता है तूफ़ान की ज़द में सारा घर आ जाए इसलिए