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समायरा की स्टूडेंट - उपन्यास
Pradeep Shrivastava
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
दिसंबर का दूसरा सप्ताह शुरू हो चुका है। ठंड ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है। पांच बजते-बजते शाम हो जा रही है। सूर्यास्त होते ही अंधेरा घना होने लगा है। समायरा को स्कूल की छुट्टी के बाद घर पहुंचने में एक घंटा से ज़्यादा समय लग जाता है। शहर से उसका स्कूल कई किलोमीटर दूर है। साधन भी कोई सीधा नहीं है। तीन जगह टेंपो बदलने, फिर करीब एक फर्लांग पैदल चलने के बाद ही वह स्कूल से घर पहुंचती है। रोज-रोज की इस दौड़-धूप के चलते वह पांच साल में ही टीचरी की नौकरी से ऊब गई है।
दिसंबर का दूसरा सप्ताह शुरू हो चुका है। ठंड ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है। पांच बजते-बजते शाम हो जा रही है। सूर्यास्त होते ही अंधेरा घना होने लगा है। समायरा को स्कूल की छुट्टी के बाद घर पहुंचने ...और पढ़ेएक घंटा से ज़्यादा समय लग जाता है। शहर से उसका स्कूल कई किलोमीटर दूर है। साधन भी कोई सीधा नहीं है। तीन जगह टेंपो बदलने, फिर करीब एक फर्लांग पैदल चलने के बाद ही वह स्कूल से घर पहुंचती है। रोज-रोज की इस दौड़-धूप के चलते वह पांच साल में ही टीचरी की नौकरी से ऊब गई है।
‘अरे यार यह तुम्हारी स्टूडेंट है कि कोई तमाशा।’
‘वह है तो स्टूडेंट ही है। एक इनोसेंट स्टूडेंट। जिसे शातिर बनाने वाली, सारी खुराफ़ात की जड़ रिंग मास्टर तो ज्योग्रॉफी की टीचर नासिरा अंजुम है।’
‘नासिरा!’
‘हां, नासिरा। जब तुम ...और पढ़ेथे तो तुमसे बड़ा चहक-चहक कर बातें कर रही थी। और तुम भी ऐसे चिपके जा रहे थे, फिदा हुए जा रहे थे कि पूछो मत। घर पहुंच कर बोले अरे यार तुम्हारी नासिरा तो बड़ी पटाखा चीज है।’