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रीता का कसूर - उपन्यास
पूर्णिमा राज
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
म्हारी बनरी गुलाब का फूल , कि भँवरा बन्ना जी ।महारी बनरी चाँद का नूर ,कि चकोरा प्यारा बनरा जी ॥ एक घर में महिलाएं ढोल और हरमोनियम पर यह ब्याह गीत गा रही थी। यह घर था ' कटक निवास ' जहाँ पर आज श्री राम कटक जी की इकलौती पुत्री रीता का ब्याह है। रीता अपने घर मे पापा , भाई और माँ की लाडली है। आज रीता की माँ ने उसको बड़े प्यार से हल्दी के लिये तैयार किया है। सभी ओर ब्याह गीत गाये जा रहे है।बाहर से रीता के पापा की आवाज आती है -" चलो
म्हारी बनरी गुलाब का फूल , कि भँवरा बन्ना जी ।महारी बनरी चाँद का नूर ,कि चकोरा प्यारा बनरा जी ॥ एक घर में महिलाएं ढोल और हरमोनियम पर यह ब्याह गीत गा रही थी। यह घर था ' ...और पढ़ेनिवास ' जहाँ पर आज श्री राम कटक जी की इकलौती पुत्री रीता का ब्याह है। रीता अपने घर मे पापा , भाई और माँ की लाडली है। आज रीता की माँ ने उसको बड़े प्यार से हल्दी के लिये तैयार किया है। सभी ओर ब्याह गीत गाये जा रहे है।बाहर से रीता के पापा की आवाज आती है -" चलो
रीता २२- २३ साल की खुले विचारों की स्वाभिमानी नवयुवती थी । उसका मन बहुत मासूम था , वह असहाय और जरूरत मंदो की हमेशा मदद करती थी । वह किसी का दुःख नही देख सकती थी । वह ...और पढ़ेसुंदर अंदर से थी, उतनी ही सुंदर बाहर से भी थी , उसका दुग्ध समान गोरा रंग, काले घने लहराते बाल और मृगनयनी आँखें उसके रूप पर चार चाँद लगाती थी । अगर यह कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उसकी सुंदरता किसी कवि की कल्पना से भी अधिक सुंदर थी । वह दिल्ली विश्वविद्यालय मे स्नातक की पढ़ाई