Mere Humdum Mere Dost book and story is written by Kripa Dhaani in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mere Humdum Mere Dost is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मेरे हमदम मेरे दोस्त - उपन्यास
Kripa Dhaani
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
नीरा बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठी बारिश की झिलमिलाती बूंदों को टकटकी लगाये देख रही थी। हाथ में चाय का प्याला था, जिसकी गर्म चुस्कियाँ उस भीगे हुए दिन की ज़रूरत थी।
दिल उदास था उसका। सुबह-सुबह ही पतिदेव से ज़ोर-दार झगड़ा हुआ था। यद्यपि पति-पत्नि के बीच नोंक-झोंक और लड़ाई-झगड़ा कोई नई बात नहीं। इसे दांपत्य जीवन का अंश कहा जाये, तो गलत न होगा। प्यार और तकरार का तालमेल ही तो दांपत्य जीवन में रस घोलता है। लेकिन, जब प्यार कहीं गुम हो जाये और बस तकरार ही रह जाये, तब क्या?
तब यही उदासी, ठंडा हो चुका मन, जिसमें कोई भी चाय की चुस्की गर्माहट पैदा न कर पाये।
वह नीरा के लिए कुछ वैसा ही दिन था - उदास, ग़मज़दा, नीरस, बेरंग। बीते कुछ अरसे यूं ही तो गुज़रे थे।
नीरा बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठी बारिश की झिलमिलाती बूंदों को टकटकी लगाये देख रही थी। हाथ में चाय का प्याला था, जिसकी गर्म चुस्कियाँ उस भीगे हुए दिन की ज़रूरत थी।दिल उदास था उसका। सुबह-सुबह ही पतिदेव ...और पढ़ेज़ोर-दार झगड़ा हुआ था। यद्यपि पति-पत्नि के बीच नोंक-झोंक और लड़ाई-झगड़ा कोई नई बात नहीं। इसे दांपत्य जीवन का अंश कहा जाये, तो गलत न होगा। प्यार और तकरार का तालमेल ही तो दांपत्य जीवन में रस घोलता है। लेकिन, जब प्यार कहीं गुम हो जाये और बस तकरार ही रह जाये, तब क्या? तब यही उदासी, ठंडा हो चुका
वह बारिश से भीगा दिन था। सोलह बरस का विवान स्कूल छूटने के बाद साइकिल चलाता हुआ गिटार क्लास जा रहा था। रास्ते में उसकी नज़र भुट्टे के ठेले के पास खड़ी एक चौदह बरस की अल्हड़ सी लड़की ...और पढ़ेपड़ी। वह कोई और नहीं नीरा थी। उसके साथ एक लड़का खड़ा था, जो उसे वहाँ भुट्टा खिलाने लाया था। विवान को जाने क्या हुआ कि उसने फ़ौरन साइकिल रोकी और नीरा के पास जाकर उसके हाथ से भुट्टा छीनकर फेंक दिया और उसे खींचता हुआ अपने साथ ले गया। अब दोनों सड़क किनारे खड़े झगड़ रहे थे।“ये क्या किया
दो साल गुजर गये। नीरा कॉलेज में आ गई। उस दिन कॉलेज के मेन गेट से बाहर निकलती नीरा ने आसमान की ओर नज़र उठाकर श्वेता से कहा, “कहीं बारिश न हो जाये।”“हो गई, तो मज़े से भीगेंगे।” श्वेता ...और पढ़ेहुए बोली। स्कूल की दोनों सहेलियाँ अब कॉलेज में भी साथ थीं। इसी साल दोनों ने फर्स्ट इयर में एडमिशन लिया था। दोनों पैदल-पैदल सड़क पर आगे बढ़ी चली जा रही थीं कि एक बाइक उनके पास आकर रुकी। पहले श्वेता की नज़र बाइक की तरफ घूमी। बाइक पर विवान था। श्वेता ने नीरा के कंधे पर हाथ रखा। तब
तीन बरस बाद वो भी जश्न का ही दिन था। नीरा की शादी के जश्न का दिन। दुल्हन के लिबास में सजी वो बेहद ख़ूबसूरत नज़र आ रही थी। इतनी ख़ूबसूरत कि कोई दो पल को नज़रें ही न ...और पढ़ेसके। विवान की नज़र उस पर ही जमी हुई थी।विदाई की बेला में नीरा के आँसू ठहर ही नहीं रहे थे। सब कुछ पीछे छूटता चला जा रहा था। शायद, पहले जैसा अब कुछ भी ना रहे। माँ-बाबा से लिपटकर वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसके आँसू देखकर विवान की आँखें भी नम हो गई। आसमान ने भी रिमझिम फुहारें बरसाकर
मायरा की आवाज़ नीरा को यादों के भंवर से बाहर खींच लाई, “मम्मी भूख लगी है।” “क्या खाओगी?” पूछते हुए नीरा कुर्सी से उठी। “मैगी” मायरा उछलते हुए बोली। “नहीं मैगी नहीं। मैं पोहा बना रही हूँ।” कहते हुए ...और पढ़ेड्राइंग हॉल में दाखिल हुई।“नहीं मम्मी पोहा नहीं।” भूख ने मिशा का ध्यान भी मोबाइल से हटा दिया था और वह भी अपनी डिमांड रख रही थी, “मम्मी सैंडविच बना दो ना प्लीज!” मिशा के हाथ से मोबाइल छीनकर नीरा अपने कमरे में गई और विवान की फ़ोटो ड्रेसिंग टेबल पर रखकर बाहर आ गई।“मैं पोहा बना रही हूँ।” उसने