मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 3 Kripa Dhaani द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 3

दो साल गुजर गये। नीरा कॉलेज में आ गई। उस दिन कॉलेज के मेन गेट से बाहर निकलती नीरा ने आसमान की ओर नज़र उठाकर श्वेता से कहा, “कहीं बारिश न हो जाये।”

“हो गई, तो मज़े से भीगेंगे।” श्वेता चहकते हुए बोली।

स्कूल की दोनों सहेलियाँ अब कॉलेज में भी साथ थीं। इसी साल दोनों ने फर्स्ट इयर में एडमिशन लिया था।

दोनों पैदल-पैदल सड़क पर आगे बढ़ी चली जा रही थीं कि एक बाइक उनके पास आकर रुकी। पहले श्वेता की नज़र बाइक की तरफ घूमी। बाइक पर विवान था। श्वेता ने नीरा के कंधे पर हाथ रखा। तब नीरा ने पलटकर विवान को देखा।

“चल!” इतना ही कहा विवान ने।

ये सुनकर श्वेता नीरा से ‘बाय’ कहकर आगे बढ़ गई। श्वेता नीरा की पक्की सहेली थी और विवान नीरा का पक्का दोस्त। नीरा की वजह से श्वेता और विवान एक-दूसरे को काफ़ी सालों से जानते थे। लेकिन बात करना तो दूर, एक-दूसरे से ‘हाय-हलो’ तक नहीं करते थे। वजह विवान ही था, उसने कभी नज़र उठाकर श्वेता की तरफ देखा ही नहीं। जब भी मिलता, नीरा को साथ लेकर चला जाता। नीरा को ये कुछ अटपटा सा लगता, पर विवान वैसा ही था।

नीरा विवान की बाइक पर बैठ गई और विवान ने बाइक भगा दी। कुछ देर बाद दोनों मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे थे।

“कभी तो श्वेता से हलो-हाय कर लिया कर।” नीरा शिकायती अंदाज़ में बोली।

आसमान को नज़रें गड़ाये देखते विवान ने नीरा की तरफ नज़र घुमाई।

“कभी तो श्वेता से हलो-हाय कर लिया कर।” नीरा ने तेज आवाज़ में अपनी बात दोहराई, “कितने सालों से जानते हो उसे। मेरी पक्की सहेली है। लेकिन जब भी मिलते हो, यूं दिखाते हो, मानो उसे जानते-पहचानते ही नहीं। कितना अजीब लगता है?”

“वो कह रही थी ऐसा?” विवान ने कहा और फिर से आसमान को ताकने लगा।

“नहीं...मैं कह रही हूँ।”

“फिर ठीक है।”

“क्या ठीक है?”

“कुछ नहीं!”

“अरे!”

बात ख़त्म।

कई बातें विवान यू हीं ख़त्म कर दिया करता था, बिना किसी निष्कर्ष तक पहुँचे और नीरा सोचते रह जाती थी कि उसने बात शुरू ही क्यों की।

नीरा ने चिढ़कर अपनी नज़र दूसरी तरफ घुमा ली।

विवान ने तिरछी नज़र से नीरा को देखा, फिर अपनी जेब से एक कागज़ निकालकर उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, “ये ले!”

नीरा पलटी और कागज़ हाथ में लेकर पूछने लगी, “ये क्या है?”

“लव लैटर...” विवान लापरवाही से बोला।

इससे पहले कि नीरा कुछ कहती, विवान ने यह भी जोड़ दिया, “...श्वेता के लिये।”

नीरा का मुँह खुला का खुला रह गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी दिन विवान उससे ऐसा कुछ कह देगा। उसे तो लगता था कि वो उसे पसंद करता है।

“बहक गया है क्या?” लड़खड़ाती ज़ुबान में नीरा ने कहा।

“हाँ!” विवान ने गहरी साँस भरी और कहने लगा, “बहक ही जाता हूँ, जब उसके सामने आता हूँ। तभी तो ज़ुबान से कोई बोल नहीं फूटते। हाय-हलो भी नहीं।”

“ओह!” नीरा ने नज़रें झुका ली।

अभी कुछ देर पहले तक श्वेता की वक़ालत करने वाली नीरा पर मानो बिजली गिर पड़ी थी। एक पल में इंसानी ज़ज़्बात कैसे अपना रंग बदलते हैं? इसका नमूना सामने था। श्वेता की वकील बन रही नीरा अब दिल ही दिल में उससे जल रही थी।

“पढ़ ले।” विवान यूं ही बेफ़िक्री से बोला।

“मैं दूसरों की चिट्ठियाँ नहीं पढ़ती।” कहते हुए नीरा की आँखों में बादल घुमड़ने लगे।

शायद इसका ही असर था कि आसमान में भी बादल घुमड़ आये। बादलों का ये अंदाज़ देखकर विवान उठ खड़ा हुआ और नीरा का हाथ पकड़कर बोला, “बारिश होने वाली है, चल!”

नीरा ने विवान का हाथ झटक दिया और उठ खड़ी हुई। फ़िर चल पड़ी। विवान हैरानगी में उसके पीछे चल पड़ा। दोनों ने कुछ कदमों का ही फ़ासला तय किया था कि बूंदा-बांदी शुरू हो गई। विवान भागा और इस बार उसने कसकर नीरा का हाथ थाम लिया और उसे अपने साथ भागने पर मज़बूर कर दिया।

अब दोनों चाय की एक टपरी पर ख़ुद को बारिश से बचाते हुए खड़े थे।

“दो कड़क चाय!” विवान चाय वाले से बोला और नीरा के दुपट्टे के किनारे से अपने चेहरे पर चमक रही बारिश की बूंदों को पोंछने लगा।

उसकी इस हरक़त पर नीरा खीझते ही बोली, “क्या है ये?” और अपना दुपट्टा झटककर छुड़ाने लगी। लेकिन, विवान था कि दुपट्टा छोड़ने को तैयार ही नहीं था। दोनों के बीच एक तरह से रस्साकशी शुरू हो गई।

“छोड़!”

“नहीं!”

“मैंने कहा छोड़!”

“मैंने कहा नहीं!”

“मेरा दुपट्टा क्यों पकड़ा है तूने? जाकर उसका पकड़, जिसके लिए लव लैटर लिखा है। मैं कौन हूँ तेरी?” नीरा रूठे हुए अंदाज़ में बोली।

विवान ने झटका देकर दुपट्टे को अपनी ओर खींचा और दुपट्टे के साथ नीरा भी उसके क़रीब आ गई।

“तो तू क्या कुछ भी नहीं?” उसकी आँखों में झांककर विवान ने कहा।

विवान की आँखों में उमड़ रहे भावों का सामना नीरा नहीं कर पाई और अपनी नज़रें झुकाकर बोली, “पता नहीं!”

विवान उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोला, “पागल चिट्ठी तो पढ़ ले।”

“कहा ना मैं किसी दूसरे की चिट्ठी नहीं पढ़ती।” नीरा अपनी बात पर अड़ी रही।

“ऐसी बात है, तो फिर ठीक है।” विवान ने कहा और चाय वाले की तरफ घूम गया –

“क्यों भैया दूसरों की चिट्ठी पढ़ते हो क्या?” उसने चाय वाले से पूछा।

“लिखना-पढ़ना जानते हैं, तो पढ़ लेते हैं भईया।” चाय वाला बोला।

“तो ये चिट्ठी पढ़ दो।” नीरा के हाथ से चिट्ठी छीनकर उसने चाय वाले को थमा दिया।

चाय वाले ने पहले चाय छानी और काँच के दो गिलास में डालकर विवान और नीरा की ओर बढ़ाकर चिट्ठी खोल ली।

“ई तो अंग्रेजी मा है।” चिट्ठी को घूरते हुए चाय वाला बोला।

नीरा ने आँखें घुमाकर चाय की चुस्की ली। विवान भी चुस्की लेकर बोला, “नहीं पढ़ पाओगे?”

“काहे नहीं पढ़ पायेंगे भईया। इत्ती अंग्रेजी तो हर कोई जाने है।” चाय वाला मुस्कुराते हुए बोला।

“तो ज़ोर से पढ़ डालो।” विवान बोला।

चाय वाले ने गला साफ़ किया, मानो कोई भाषण देने की तैयारी कर रहा हो। नीरा ने अपना पूरा ध्यान चाय पर लगा लिया, मानो चिट्ठी में क्या लिखा है, वो सुनना चाहती ही ना हो।

चाय वाला बुलंद आवाज़ में बोला, “आई लव यू.....” उसके बाद अटक गया।

“नीरा....” विवान ने कहा और अपनी नज़र नीरा पर टिका दी।

चाय पीने में मस्त नीरा को ठसका लग गया और वह खांसने लगी। खांसी रुकी, तो उसने नज़र उठाकर विवान को देखा, जो उसे निहारते हुए मुस्कुरा रहा था। उसने चाय वाले को देखा, जो पूरी बत्तीसी निपोरे हँस रहा था, “आप ही नीरा हो ना...हम समझ गये।”

नीरा अचकचा गई। वह कुछ जवाब नहीं दे सकी। उसकी तरफ़ से विवान ने जवाब दिया, “हाँ ये है नीरा...मेरी नीरा। अच्छी है ना?”

“बहुतई अच्छी है भईया!” चाय वाला हँसते हुए बोला।

“तो शादी कर डालें?” विवान के सवाल थे कि थम ही नहीं रहे थे।

चाय वाला भी मज़े ले रहा था, “कर डालो भईया...”

नीरा शर्म से लाल हुए जा रही थी। उसने विवान का हाथ खींचकर उसे चुप रहने का इशारा किया, तब कहीं विवान चुप हुआ। उसने चाय के पैसे दिये और नीरा को लेकर बारिश में निकल पड़ा। दोनों बाइक पर बैठ गये। विवान बाइक स्टार्ट कर बोला, “मैंने तो कह दिया, तू अभी कहेगी कि इंतज़ार करना पड़ेगा।”

नीरा क़रीब खिसककर उसके कान में बुदबुदाई, “कहना पड़ेगा क्या?”

“हाँ!”

“तो तू बोल पहले।”

“आई लव यू नीरा.....” विवान ने इतनी बुलंद आवाज़ में कहा, मानो पूरी दुनिया के सामने एलान कर रहा हो कि वो नीरा को कितना चाहता है।

नीरा ने शरमाकर उसकी पीठ में अपना चेहरा छुपा लिया।

“अब तो बोल!” विवान प्यार से बोला।

“आई लव यू विवान!” नीरा हौले से उसके कान में बुदबुदाई और विवान ने बाइक आगे बढ़ा दी। उस दिन दोनों पर प्यार का ख़ुमार चढ़ा हुआ था। बारिश भी उनका साथ दे रही थी। शाम तक दोनों यूं ही बारिश में शहर की सड़कों पर घूमते रहे, मानो अपने प्यार का जश्न मना रहे हों।

क्रमश:

क्या होगा नीरा और विवान के प्यार का अंज़ाम? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।