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आदिवासी जीवनशैली - उपन्यास
Dr. Ashmi Chaudhari
द्वारा
हिंदी कुछ भी
लोग आदिवासी समाज के बारे में जानते हैं पर आदिवासी समाज के सिवा अन्य समाज या फिर अन्य लोग उनकी परंपरा, उनका खानपान, उनकी जीवनशैली , उनकी कुलदेवी, उनके त्यौहार , उनकी भाषाएं के बारे में नहीं जानते यहां तक की आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी धीरे धीरे यह सब कुछ भूल रही है ।
आदिवासी का इतिहास और संस्कृति कुछ अलग तरह ही है । आदिवासी भारत देश के मूल निवासी जाने जाते हैं। वे वर्षों से भारत में रहते हैं हमारे पूर्वजों भी आदिवासी थे। पर आज भी कहीं सालों के बाद पूरे भारत में सबसे ज्यादा वस्ती आदिवासी की है और आदिवासी समाज सबसे अलग तरह से और मेहनत से आगे बढ़ रहा है।
आदिवासी समाज की भाषा की बात की जाए तो वह अलग-अलग है यहां तक की आदिवासी समाज में "जोहार" बोलने का मतलब नमस्कार करना है। इस तरह गुजरात में दाहोद में आदिवासी की भाषा कुछ अलग है , और दक्षिण गुजरात में गामित , चौधरी , पटेल की भाषा अलग-अलग विभिन्न प्रकार में बोली जाती है।
लोग आदिवासी समाज के बारे में जानते हैं पर आदिवासी समाज के सिवा अन्य समाज या फिर अन्य लोग उनकी परंपरा, उनका खानपान, उनकी जीवनशैली , उनकी कुलदेवी, उनके त्यौहार , उनकी भाषाएं के बारे में नहीं जानते यहां ...और पढ़ेकी आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी धीरे धीरे यह सब कुछ भूल रही है । आदिवासी का इतिहास और संस्कृति कुछ अलग तरह ही है । आदिवासी भारत देश के मूल निवासी जाने जाते हैं। वे वर्षों से भारत में रहते है, पर आज भी कहीं सालों के बाद पूरे भारत में सबसे ज्यादा
आधुनिक समय में लोग आदिवासी जीवनशैली के बारे भूलते जा रहे हैं। आज लोग जितना आगे जा रहे हैं उतना उनकी भाषा, संस्कृति , रीति रिवाज , उनका खानपान सब कुछ भूलते जा रहे हैं । कुछ लोग आदिवासी ...और पढ़ेके भी कही जगह पे आदिवासी है वो नही कहते हैं , वो अपनी पहचान छूपाते है , आदिवासी होना यही आदिवासी समाज के लोगो का गर्व हैं । उनको यही गर्व होना चाहिए की हा मैं आदिवासी हूं, हा में देश का मूलनिवासी हूं , जिसको अधिकार है की वे अपनी संस्कृति , जल, जंगल, जमीन के रक्षक है
" जय जोहार जय आदिवासी " टंट्या भील (टंट्या या टंट्या मामा) (26 जनवरी 1842 – 4 दिसंबर 1889) 1878 और 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक जननायक (आदिवासी नायक) थे। द न्यूयॉर्क टाइम्स मे 10 नवंबर 1889 ...और पढ़ेप्रकाशित खबर में टंट्या भील को 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' की पदवी से नवाजा गया था ।वे भारतीय "रॉबिन हुड" के रूप में ख्यात हैं। टंट्या भील आदिवासी समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था, उनसे सरकारी अफसर या धनिक लोग ही भयभीत थे, आम जनता उसे 'टंटिया मामा' कहकर उसका आदर करती थी । टंट्या भील का जन्म