आदिवासी जीवनशैली - 3 Dr. Ashmi Chaudhari द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऋषि की शक्ति

    ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा...

  • बुजुर्गो का आशिष - 9

    पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी...

  • इश्क दा मारा - 24

    राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने...

  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

श्रेणी
शेयर करे

आदिवासी जीवनशैली - 3

" जय जोहार जय आदिवासी "
टंट्या भील (टंट्या या टंट्या मामा) (26 जनवरी 1842 – 4 दिसंबर 1889) 1878 और 1889 के बीच भारत में सक्रिय एक जननायक (आदिवासी नायक) थे। द न्यूयॉर्क टाइम्स मे 10 नवंबर 1889 में प्रकाशित खबर में टंट्या भील को 'रॉबिनहुड ऑफ इंडिया' की पदवी से नवाजा गया था ।वे भारतीय "रॉबिन हुड" के रूप में ख्‍यात हैं।
टंट्या भील आदिवासी समुदाय के सदस्य थे उनका वास्तविक नाम टंड्रा था, उनसे सरकारी अफसर या धनिक लोग ही भयभीत थे, आम जनता उसे 'टंटिया मामा' कहकर उसका आदर करती थी । टंट्या भील का जन्म मध्‍य प्रदेश के खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़दा में आदिवासी लोकगीत अनुससान संक्रांत के 12 दिन यानी 26 जनवरी1842 में हुआ था। एक नए शोध के अनुसार उन्होंने 1857 में हुए पहले स्‍वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए दमन के बाद अपने जीवन के तरीके को अपनाया। टंट्या को पहली बार 1874 के आसपास "खराब आजीविका" के लिए गिरफ्तार किया गया था। एक साल की सजा काटने के बाद उनके जुर्म को चोरी और अपहरण के गंभीर अपराधों में बदल दिया गया। सन 1878 में दूसरी बार उन्‍हें हाजी नसरुल्ला खान यूसुफजई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। मात्र तीन दिनों बाद वे खंडवा जेल से भाग गए और एक विद्रोही के रूप में शेष जीवन जिया। इंदौर की सेना के एक अधिकारी ने टंट्या को क्षमा करने का वादा किया था, लेकिन घात लगाकर उन्‍हें जबलपुर ले जाया गया, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया और 4 दिसंबर 1889 को उसे फाँसी दे दी गई। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश देवडे़ बिरसावादी के अनुसार- "शुरुआत में टंट्या भील के विद्रोही प्रवृत्ति को उनके परिवार समाज और राष्ट्र पर हुए अन्याय और अत्याचार को जोड़कर देखा गया । उन्हें डकैत लुटेरा इस प्रकार की उपाधि सामंतवादी जमीदारों द्वारा दी गई क्योंकि यह लोग टंट्या के खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस की मदद मांगना चाहते थे इसलिए टंट्या भील को आरोपित किया गया । टंट्या भील का परिवार भी इस अन्याय और शोषण का शिकार हुआ थ। उनकी जमीन जमीदार पाटिल के पास गिरवी थी जिसका जबरन कब्जा कर ब्याज के रूप में वसूली जैसी बातों ने मानो गरीब किसानों, आदिवासियों के परिवार को नेस्तनाबूद कर दिया। वह निरंतर श्रम करने के बावजूद भी पेट भर खाना नहीं खा सकते थे ऐसी स्थिति में महाविद्रोही टंट्या भील का निर्माण हुआ था।"

२) टंटया भील मंदिर

टंटया भील मंदिर रॉबिनहुड टंटया भील का मंदिर खंडवा जिले की पंधाना तहसील के ग्राम बड़ौदा अहीर मे स्थिति है इस जगह पर टंटया भील का एक बड़ा स्मारक बना है और साथ ही साथ टंटया भील का एक मंदिर भीकनगांव तहसील के ग्राम गढ़ी कोटड़ा मे स्थित है और पीर बाबा की मजार भी बनी हुई है टंटया भील के वंशज आज भी ग्राम बड़ौदा अहीर मे निवास करते है टंटया भील की जीवनी पर फ़िल्म भी बन चुकी है ।
३) आदिवासी समुदाय
आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़ जो 2011 जनगणना के अनुसार हैं (संस्कृत ग्रंथों में)। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (क्योंकि अधिकतर आदिवासी लोग जंगल और पहाड़ों पर रहने वाले लोग हैं, जो जल जंगल जमीन के सच्चे रखवाले हैं) कह कर पुकारा है। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में आंध, गोंड, खरवार, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, कोली, सहरिया, संथाल, भूमिज, हो, उरांव, लोहरा, बिरहोर, पारधी, असुर, नायक, भिलाला, मीणा, धानका आदि हैं।
भारत में आदिवासियों को प्रायः 'जनजातीय लोग' के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान झारखंड नॉर्थ ईस्ट के 8 राज्य में आदिवासी में बहुसंख्यक व गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जाति एवं जनजाति " में रखा जाता है।

चंदा समिति ने सन् 1960 में अनुसूचति जातियों के अंर्तगत किसी भी जाति को शामिल करने के लिये 5 मानक निर्धारित किया:

1. भौगोलिक एकाकीपन
2. विशिष्ट संस्कृति
3. पिछड़ापन
4. संकुचित स्वभाव
5. आदिम जाति के लक्षण

बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे हैं। आदिवासी समाज की समस्या 1.अशिक्षा 2.अंधविश्वास&पाखण्डवाद 3.बेरोजगारी 4.भुखमरी 5.दहेजप्रथा ।