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दूसरी माँ - उपन्यास
Dikshadixit
द्वारा
हिंदी जीवनी
मीठी की माँ को गुजरे कुछ ही वक्त हुआ था, और उसके रिश्तेदार उसके पापा की दूसरी शादी के लिए रिश्ते लाने लगे।
पिताजी की सरकारी नोकरी होने के कारण किसी को भी ज्यादा वक्त नहीं लगता था उसके पापा के लिए लड़की देखने में मगर मीठी के पिता हमेशा मना कर दिया करते थे क्यूँ कि उसके पापा जानते थे कि जो प्रेम और स्नेह एक माँ अपने बच्चों को डर सकती है बह प्रेम और स्नेह कोई सौतेली माँ नहीं दे सकती थी यही बात मिठी के पिता को अंदर ही अंदर खाए जा रहीं थी।जब भी मीठी के पिता अकेले होते बह अपने बच्चों की परवरिश की चिंता करने लगते, एक दिन मीठी अपने पिता के पास आती है अपने पिता की नन्हें हाथो से पकड लेती है उसके पिता उसको गोद में उठा लेते है, और पूछते है आज राजकुमारी हमारे कमरे में केसे आयी।
मीठी की माँ को गुजरे कुछ ही वक्त हुआ था, और उसके रिश्तेदार उसके पापा की दूसरी शादी के लिए रिश्ते लाने लगे।पिताजी की सरकारी नोकरी होने के कारण किसी को भी ज्यादा वक्त नहीं लगता था उसके पापा ...और पढ़ेलिए लड़की देखने में मगर मीठी के पिता हमेशा मना कर दिया करते थे क्यूँ कि उसके पापा जानते थे कि जो प्रेम और स्नेह एक माँ अपने बच्चों को डर सकती है बह प्रेम और स्नेह कोई सौतेली माँ नहीं दे सकती थी यही बात मिठी के पिता को अंदर ही अंदर खाए जा रहीं थी।जब भी मीठी के
जैसे ही मीठी के पिता की नींद खुलती है , बह अपनी घड़ी की तरफ देखते है और समय बहुत हो चुका होता है। मीठी के पिता जल्दी से उठते है और नाश्ता किए बिना ही अपने दफ्तर चले ...और पढ़ेहै जाते जाते अपनी मां से कहते है, कि मां बच्चो का ख्याल रखिए गा में साम को जल्दी आऊंगा। मीठी की दादी मीठी को आवाज देती है और कहती है बेटा उठ जाओ सुबह हो गई है मीठी अपनी दादी की एक आवाज में उठ जाती है ,दादी कहती है मैं पूजा में जा रही हूं,आप भईया का ख्याल