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लड़के भी रोते हैं - उपन्यास
Saurabh kumar Thakur
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब मैं रोना चाहता था । पर वो कहते हैं ना, लड़के नहीं रोते बे.........
हाँ, सच में लड़के नहीं रोते, चाहे जेब एक भी पैसा नहीं हो बाजार से कई चीजें खरीदने को मन करे....... भयंकर भूख लगी हुई हो, पापा से पैसे मांगने का मन ना करे । लड़के तब भी नहीं रोते । सच में लड़के नहीं रोते ।
नहीं बे... रोते हैं, लड़के भी रोते हैं । हाँ! सही पढ़ा आपने लड़के भी रोते हैं, लड़के तब नहीं रोते जब उनका पेट खाली हो, लड़के तब नहीं रोते जब उनके कपड़े फटे हो, लड़के तब भी नहीं रोते जब वो दूसरे शहर में हो और जेब में एक धेला नहीं हो, लड़के नहीं रोते........
पता है एक उम्र के बाद लड़कों को आँसू क्यों नहीं आती, पता है एक उम्र के बाद लड़के रोना क्यों छोड़ देते हैं, क्योंकि उस उम्र के बाद दुनिया में कोई ऐसा कंधा नहीं बना जो एक लड़के के रोते हुए सर को सम्भाल सके । उस उम्र के बाद कोई ऐसा आँचल नहीं बना जो उनके आँख से निकलती आँसू को पोंछ सके ।
एक उम्र तक लड़के रोते हैं तब वो अपनी माँ की गोद में सर छुपा लेते हैं, माँ के आँचल में आँसू पोंछ लेते हैं । लेकिन एक उम्र के बाद जब उन्हें घर बनाने के लिए घर छोड़ कर जाना पड़ता है तब बहोत भयंकर आँसू आते हैं आँखों में, यदि लड़के उस दिन रो पड़े तो कई गंगा बन जाए उन आंसुओ से । माँएं रोती हैं उस दिन बेटे को जाता देख । पर बेटे नहीं रोते, सोचते हैं कि अगर वो ही रोने लगे तो माँ को कौन चुप कराएगा। लड़के रोना चाहते हैं, अपने दिल का दर्द कम करना चाहते हैं पर रोते नहीं । अपने आँसू पी लेते हैं ।
हाँ, सच में लड़के नहीं रोते, चाहे जेब एक भी पैसा नहीं हो बाजार से कई चीजें खरीदने को मन करे....... भयंकर भूख लगी हुई हो, पापा से पैसे मांगने का मन ना करे । लड़के तब भी नहीं ...और पढ़े। सच में लड़के नहीं रोते । पता है एक उम्र के बाद लड़कों को आँसू क्यों नहीं आती, पता है एक उम्र के बाद लड़के रोना क्यों छोड़ देते हैं, क्योंकि उस उम्र के बाद दुनिया में कोई ऐसा कंधा नहीं बना जो एक लड़के के रोते हुए सर को सम्भाल सके । उस उम्र के बाद कोई ऐसा
अट्ठारह साल की उम्र हुए आज 17 दिन होने वाले थे उसे । उसे अपनी जिंदगी की जिम्मेदारियों का एहसास होने लगा था, शायद उसे पता चल रहा था कि अब अपना जिंदगी जीने के लिए कुछ तो करना ...और पढ़े। कई पुरानी बातें याद आ रही थी जब वह छोटा बच्चा था चौथी पाँचवी में पढ़ता था, तो उसकी स्कूल की फीस उसके पापा जाकर हर महीने दिया करते थे । पर अब वह बढ़ती उम्र और अपने आने वाले कल की चिंता में न जाने इस प्रकार से उलझ बैठा था कि अब उससे निकलने के लिए वह