Laut aao Deepshikha book and story is written by Santosh Srivastav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Laut aao Deepshikha is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
लौट आओ दीपशिखा - उपन्यास
Santosh Srivastav
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
गुलमोहर के साये में स्थित वह खूबसूरत बंगला जो ‘गौतम शिखा कुटीर’ के नाम से मशहूर था और जो कभी रौनक से लबरेज़ हुआ करता था आज सन्नाटे की गिरफ़्त में है और उसके भीतरी दरवाज़े और काले स्टील के कंगूरेदार गेट पर सरकारी ताले लटक रहे हैं शेफ़ाली कितनी बार इस गेट से पार हुई है बंगले का कोना-कोना उसका परिचित है और उसकी मालकिन मशहूर चित्रकार उसकी बचपन की दोस्त दीपशिखा..... उसकीहर अदा, हर ख़ासो आम बात की राज़दार है वह ज़िन्दग़ी का ये हश्र होगा सोचा न था ये सरकारी ताले उसके दिमाग़ में अंधड़ मचा रहे हैं वह तहस-नहस हो जाती है उसकी नींदें दूर छिटक जाती हैं और चैन हवा हो जाता है क्याइंसान इतना बेबस-लाचार है? क्या वो सबके होते हुए भी लावारिस और तनहा है?
गुलमोहर के साये में स्थित वह खूबसूरत बंगला जो ‘गौतम शिखा कुटीर’ के नाम से मशहूर था और जो कभी रौनक से लबरेज़ हुआ करता था आज सन्नाटे की गिरफ़्त में है और उसके भीतरी दरवाज़े और काले स्टील ...और पढ़ेकंगूरेदार गेट पर सरकारी ताले लटक रहे हैं शेफ़ाली कितनी बार इस गेट से पार हुई है बंगले का कोना-कोना उसका परिचित है और उसकी मालकिन मशहूर चित्रकार उसकी बचपन की दोस्त दीपशिखा..... उसकीहर अदा, हर ख़ासो आम बात की राज़दार है वह ज़िन्दग़ी का ये हश्र होगा सोचा न था ये सरकारी ताले उसके दिमाग़ में अंधड़ मचा रहे हैं वह तहस-नहस हो जाती है उसकी नींदें दूर छिटक जाती हैं और चैन हवा हो जाता है क्याइंसान इतना बेबस-लाचार है? क्या वो सबके होते हुए भी लावारिस और तनहा है?
“ठीक है, शेफ़ाली भी अगले महीने आ जाएगी तब तुम शायद होमसिक नहीं होगी सुलोचनाटेंशन में आ जाती हैं-तुम्हारे अकेलेपन को सोचकर ”
दाई माँ ने नाश्ता मेज पर लगा दिया था- “पापा..... माँ की लाड़ली बिटिया हूँ न.....इसीलिए ...और पढ़ेवैसे यहाँ मेरे सभी दोस्त बहुत मददगार हैं..... मुकेश तो घर तक छोड़ने आता है ”
कह तो दिया था उसने फिर सकपका गई यूसुफ़ ख़ान के भी कान खड़े हुए- “ये मुकेश कौन है?”
सुलोचना के चेहरे पर मुस्कुराहट देख वे परेशान हो उठे- “तुम मेरी बात कोतवज़्ज़ोनहीं दे रही हो ”
“मैं सोच रही हूँ कि आख़िर है तो वो हमारी ही बेटी जब हमने अपनी शादी का फैसला खुदकिया तो वह ...और पढ़ेनहीं कर सकती?”
सुलोचना के याद दिलाने पे उन्हें अपनी शादी याद आ गई कैसे चार दोस्तोंकी उपस्थिति में उनका सुलोचना सेनिक़ाह हो गया था निक़ाह के समय उनका नाम बदलकरनिक़हत रखा गया था और सभी दंग रह गये थे जब सुलोचनाने निक़ाहनामेपर उर्दू लिपि में हस्ताक्षर किये थे फिर सुलोचना की मर्ज़ी के अनुसार यूसुफ़ ख़ाननेहिन्दू रीति से भी शादी की थी
“तुम्हारा बदन जैसे साँचे में ढला हो..... पत्थर कीशिला को तराशकर जैसे मूर्तिकार मूर्ति गढ़ता है ” वह रोमांचित हो उठी थी अपने इस रोमांच को वह चित्र मेंढालने लगी एकयुवती गुफ़ा के मुहाने पर ठिठकी खड़ी ...और पढ़े युवती पत्थर की मूर्ति है मगरचेहरेझौंकोंज़िन्दग़ी को पा लेने की आतुरता है आँखों में इंतज़ार.....ज़िन्दग़ी का..... उसने शीर्षक दिया ‘आतुरता’..... उसे लगा मानो उसकी आतुरता मुकेश तक पहुँची है वह समंदर के ज्वार सा उसकी ओर बढ़ा चला आ रहा है पीछे-पीछे फेनों की माला लिए लहरें और रेत में धँस-धँस जाते मुकेश के क़दम..... वह मुड़कर समंदर के बीचोंबीच लाइट हाउस को देख रहा है जो तेज़ ऊँची-ऊँची लहरों पर डोलते जहाज़ों के नाविक को राह दिखाता है
चाँगथाँग वैली में झील के ऊपर कुछ काली पूँछ वाले परिंदे उड़ रहे थे काली गर्दन वाले सारस भी थे लद्दाख़ में इन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और इसीलिए बौद्ध मठों की दीवारों पर इन्हें उकेरा ...और पढ़ेहै दीपशिखा ने चलती कार में ही इस दृश्य का स्केच बना लिया नीलकांत उसे मुग्ध आँखों से निहारता रहा चढ़ाईपर हवा का दबाव काफ़ी कम था बर्फ़ानी विरल हवा में साँस भरना मुश्किल हो गया सुलोचना ने कपूर उसके पर्स में रखते हुए कहा था- “चढ़ाई पर इसकी ज़रुरत पड़ेगी सूँघती रहना यह एक अच्छा ऑक्सीजनवाहक है ”