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आन्या का ससुराल - उपन्यास
Riya Jaiswal
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
रात का समय था। यही कोई ग्यारह बज रहे होंगे। अब आन्या को सोने जाना था। उसने अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ाए ही थे कि अचानक उसे एक आहट सुनाई दी। अंधेरा था, कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा, फिरभी, पलटकर उसने बत्ती जलाई। आसपास कोई नहीं था। सोचा कोई बिल्ली होगी पर ये क्या! अचानक उसे पायल की छनछन सुनाई दी, और फिर उसने बिना देर किए आवाज की ओर गई। सामने सासु मां खड़ी थी। आन्या ने सोचा कि वो बेकार ही परेशान हो रही थी। उसने मम्मीजी से पूछा, कुछ चाहिए क्या मम्मीजी? सासु मां ने
रात का समय था। यही कोई ग्यारह बज रहे होंगे। अब आन्या को सोने जाना था। उसने अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ाए ही थे कि अचानक उसे एक आहट सुनाई दी। अंधेरा था, कुछ दिखाई भी नहीं दे ...और पढ़ेफिरभी, पलटकर उसने बत्ती जलाई। आसपास कोई नहीं था। सोचा कोई बिल्ली होगी पर ये क्या! अचानक उसे पायल की छनछन सुनाई दी, और फिर उसने बिना देर किए आवाज की ओर गई। सामने सासु मां खड़ी थी। आन्या ने सोचा कि वो बेकार ही परेशान हो रही थी। उसने मम्मीजी से पूछा, कुछ चाहिए क्या मम्मीजी? सासु मां ने
सुबह के नौ बज रहे थे। हररोज की तरह आज भी सुमित तैयार होकर काम पर चला गया। ट्रांसपोर्ट बिजनेस था उसका, भाई के साथ। तीन भाई थे जिनमें सुमित सबसे बड़ा था और उसकी एक छोटी बहन भी ...और पढ़ेतृषा। उसके पिता नहीं थे। दोपहर हो गई थी। सुमित और मांजी के जाने के बाद आन्या नहाने चली गई। फिर तैयार होकर खाना बनाने लगी। आन्या के लिए साड़ी पहनना शुरूआत में मुश्किल हुआ करता था, काम भी चुपचाप करती रहती। न किसी से हंसना होता, न बोलना। उसे एनर्जी वैसी मिलती नहीं जिससे काम जल्दी हो सके। झाड़ू,
सर पर आंचल लेना आन्या को बिल्कुल पसंद नहीं था। एक तो सारी संभालनी ही मुश्किल थी उसके लिए, ऊपर से घर के कामों की जिम्मेदारी। अब आंचल संभाले या काम। मगर मम्मीजी का कहना था कि कम से ...और पढ़ेछत पर या बालकनी में जाओ तो आंचल जरूर रखा करो सर पर। जब कोई गेस्ट आए या तुम बाहर निकलो तब भी खयाल रखना पल्लू का। आन्या बाहर तो कहीं जाती नहीं। सुमित अपने काम में व्यस्त रहता और उसे कोई शौक भी नहीं था पत्नी के साथ घुमने फिरने का। कभी फुर्सत होती भी तो वो सिर्फ सोता रहता
आन्या मांजी के साथ बेटी लेकर हॉस्पिटल से घर आई। उसे और उसकी बच्ची को नहलाकर उनके रहने के लिए अलग कमरे में व्यवस्था कराया गया। डिलीवरी का पहला दिन था मगर मांजी के चेहरे पर आन्या के प्रति ...और पढ़ेबेचारगी (ममता) नहीं थी। आन्या को त़ो कुछ छूना नहीं था, मम्मीजी ही पूरे घर के काम संभालतीं जब तक आन्या अलग थलग थी। उन दिनों में भी मम्मीजी ने उसे ताने देना नहीं छोड़ा था। सुबह आठ बजे मांजी गुस्से से आकर बोलीं, "नाश्ता करोगी"? आन्या ने पूछा, "कितने बजे हैं"? मांजी ने बौखलाकर कहा, उससे तुमको क्या मतलब