Amaltaas ke phool book and story is written by Neerja Hemendra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Amaltaas ke phool is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अमलतास के फूल - उपन्यास
Neerja Hemendra
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
वो एक वामा हैं मोबाइल फोन की घंटी बजी। मैं उठ कर नम्बर देखती हूँ। यह नम्बर चन्दा चाची का है। आज लम्बे अरसे बाद उनका फोन आया है। मैं उत्सुकतावश तीव्र गति से फोन रिसीव करती हूँ। मेरे ’हैलो’ कहने के पश्चात् उधर से चन्दा चाची की आवाज आती है, ’’हलौ,....हलो......स्मृति बेटा ? ’’ हाँ, मैं स्मृति बोल रही हूँ। नमस्ते चाची।’’ प्रत्युत्तर में चाची कहती हैं ’’खुश रहो बेटा।’’ मेैं पुनः पूछती हूँ ’‘ कैसी हैं चाची ! सब ठीक तो है ? ’’ हाँ ...हाँ....बेटा! यहाँ सब कुशल मंगल है।’’ चंदा चाची के इन शब्दों से अत्यन्त
वो एक वामा हैं मोबाइल फोन की घंटी बजी। मैं उठ कर नम्बर देखती हूँ। यह नम्बर चन्दा चाची का है। आज लम्बे अरसे बाद उनका फोन आया है। मैं उत्सुकतावश तीव्र गति से फोन रिसीव करती हूँ। मेरे ...और पढ़ेकहने के पश्चात् उधर से चन्दा चाची की आवाज आती है, ’’हलौ,....हलो......स्मृति बेटा ? ’’ हाँ, मैं स्मृति बोल रही हूँ। नमस्ते चाची।’’ प्रत्युत्तर में चाची कहती हैं ’’खुश रहो बेटा।’’ मेैं पुनः पूछती हूँ ’‘ कैसी हैं चाची ! सब ठीक तो है ? ’’ हाँ ...हाँ....बेटा! यहाँ सब कुशल मंगल है।’’ चंदा चाची के इन शब्दों से अत्यन्त
एक पल फोन की घंटी बजती जा रही थी ......एक......दो........तीसरी बार। घर में मैं अकेली थी, उस पर काॅलेज पहँुचने की शीघ्रता। लपक कर मैं फोन उठाती हूँ। मेरे हलो कहने के साथ उधर सन्नाटा.....पुनः हलो कहने के साथ ...और पढ़ेसे आवाज आती है......’’.मैम मंै.....मैं समीर! पहचाना ? मैं समीर हूँ।’’ मैं सुन कर पहचानने का प्रयत्न करने लगी। समीर? कौन समीर? समझ नही पा रही हूँ ये कौन समीर है? स्मृतियों पर जोर डालती हूँ किन्तु कुछ समझ में नही आ रहा है। पुनः वही भारी-सी आवाज.....’’मैम आपने नही पहचाना। मंै समीर हूँ।’’ आवाज मेें ठहराव थी। ’’मै आपसे
बिब्बो बड़े शहरों को जहाँ बड़े-बड़े बंगले, बिल्ड़िगें, चैड़ी साफ सुथरी सड़कें, माॅल्स,दुकाने, बड़े-बड़े कार्यालयों में कार्य करते अफसरों, बाबुओं व व्यापारियों का समूह बड़ा बनाता है, वहीं शहरों को बड़ा बनाने में यत्र-तत्र अवैध रूप से ...और पढ़ेझुग्गी-झोंपड़ियों व उनमें बसने वाले लोंगों का भी योगदान कम नहीं है। सही अर्थों में इन तबके के लोग ही बड़े शहरों के निर्माण कत्र्ता हैं। इन अवैध रूप से बसी बस्तियों में शहरों के आस-पास के गाँवों से आकर रहने वाले लोगों में बहुत से कुशल कारीगर हैं जो जीवन यापन के लिये अपनी झोपड़ी के कम स्थान में
पथ-प्रर्दशक यह स्थान पहले छोटा-सा कस्बा रहा होगा। समय के साथ विकसित होता हुआ शनःै-शनैः शहर का रूप ले रहा था। यहाँ मिश्रित आबादी है। एक तरफ मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग के साथ ही अत्यन्त निर्धन वर्ग के ...और पढ़ेहैं, तो दूसरी तरफ नवधनाढ्य वर्ग के लोगों के बड़े-बड़े बंगलेनुमा मकानों से यह कस्बा पटता जा रहा है। इन नवधनाढ्य लोगों में अधिकतर व्यवसायी व नौकरीपेशा हैं। शहर के पूर्वी छोर पर विकसित हो रहे क्षेत्र में अनेक सरकारी कार्यालयों की बिल्डिगें हैं। यह क्षेत्र व्यवस्थित रूप से बसा है। उसे इस शहर में स्थानान्तरित हो कर आये हुए
एकाकी नही है जीवन वह उठी और बालकनी की तरफ खुलने वाली खिड़की का पर्दा एक ओर सरका कर खिड़की खोल दी। बाहर से हवा का एक हल्का-सा झोंका कमरे में आया और उसके वस्त्रों, बालों, ...और पढ़ेअनुभूतियों को स्पर्श करता हुआ कमरे में विद्यमान प्रत्येक वस्तु को स्पर्श करने लगा। लगी। पेपरवेट से दबे कागज़ के पन्ने फड़फड़ाने लगे। हवा में हल्की-सी ठंड़क थी। यह ठंड़क उसे अच्छी लग रही थी। उसने खिड़की यूँ ही खुली छोड़ दी तथा कमरे को व्यवस्थित करने लगी। चीजों को ठीक करते-करते उसकी दृष्टि दीवार घड़ी की तरफ उठी। घड़ी