I AM GOD book and story is written by Satish Thakur in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. I AM GOD is also popular in आध्यात्मिक कथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मैं ईश्वर हूँ - उपन्यास
Satish Thakur
द्वारा
हिंदी आध्यात्मिक कथा
• 1. (ईश्वर का सम्बोधन) मैं ईश्वर हूँ, में कभी कुछ नही कहता किसी से नहीं कहता बस सुनता हूँ क्योंकि मैं ईश्वर हूँ। मेरा कोई धर्म नहीं न ही कोई जाति, और न कोई देश है, न तो में नर हूँ, न नारी और न ही पशु। न तो मेरे विचार हैं और न ही कोई सोच, न धरती, न जल, न वायू, न अग्नि, न आकाश क्योंकि में निर्विकार हूँ।मैं न राम, न रहीम, न ईश हूँ और न ही वाहेगुरु, मैं तो बस ईश्वर हूँ। तुम्हारी नज़रों में सब कुछ पर मेरी नज़र मैं- मै कुछ भी
• 1. (ईश्वर का सम्बोधन) मैं ईश्वर हूँ, में कभी कुछ नही कहता किसी से नहीं कहता बस सुनता हूँ क्योंकि मैं ईश्वर हूँ। मेरा कोई धर्म नहीं न ही कोई जाति, और न कोई देश है, न तो ...और पढ़ेनर हूँ, न नारी और न ही पशु। न तो मेरे विचार हैं और न ही कोई सोच, न धरती, न जल, न वायू, न अग्नि, न आकाश क्योंकि में निर्विकार हूँ।मैं न राम, न रहीम, न ईश हूँ और न ही वाहेगुरु, मैं तो बस ईश्वर हूँ। तुम्हारी नज़रों में सब कुछ पर मेरी नज़र मैं- मै कुछ भी
एक आवाज ,एक शब्द मुझे सुनाई दिया। आश्चर्य है इस शांत अंधकार में ये शब्द कैसा, ये आवाज क्या है। अब वो आवाज लगातार आने लगी, कुछ रुक-रुक कर पर लगातार। में उस आवाज को सुनकर बैचेन हो गया ...और पढ़ेअपने भ्रूण रूपी शून्य में घूमने लगा, उस शब्द को सुनने और उसकी बजह जानने के लिए। मुझे लगा शायद ये आवाज कुछ समय बाद बंद हो जाएगी, पर वो लगातार, अनवरत आ रही है।इस शब्द से, आवाज से अब अंधकार डरावना सा लगने लगा, पहले जो आवाज मुझे अच्छी लग रही थी अब वही मुझे डराने लगी। पर में
बिम्ब काल.....शून्य अब विकास की दूसरी अवस्था जिसे बिम्ब कहा जाता है उसमें प्रेवेश कर गया है, शून्य अपनी इस नई एवं विकासशील अवस्था में आकर भी पहले के समान ही अंधकार में है। बिम्ब का आकार शून्य से ...और पढ़ेऔर बड़ा जरूर है पर अभी भी वो अपनी पहचान से परे है उसका मन ही सिर्फ उसका एक मात्र सहारा है।बिम्ब एक बार फिर एक तेज मगर नाज़ुक झटके के साथ हिला और चल पड़ा, कहाँ ? उसे क्या पता। उस नए सफर में उसकी गति प्रकाश की गति से भी तेज और प्रकाशमय है। उसे अपने आजु-बाजू केवल
बिम्ब रात्रि में उसी जगह पर स्थिर है जहाँ उसे अपने आत्मीय जन रोते और परेशान होते हुए दिखे थे। बिम्ब रात्रि काल में ईश्वर के साथ हुए वार्तालाप को अपने अंतः-मन में सोचने लगता है। “वह तेजस्वियों ...और पढ़ेतेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय
बिम्ब ईश्वर के साथ अपने अधूरे वार्तालाप को याद कर के सोचता है.......... प्रश्न: आप ईश्वर के अस्तित्व को कैसे सिद्ध करते हैं ? उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के द्वारा । प्रश्न: लेकिन ईश्वर में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं ...और पढ़ेसकता, तब फिर आप उसके अस्तित्व को कैसे सिद्ध करेंगे ? उत्तर: 1. प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट रूप से जाना गया निर्भ्रांत ज्ञान । परन्तु यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं । उदाहरण के लिए जब