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त्रिधा - उपन्यास
आयुषी सिंह
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
मेरी प्यारी त्रिधा,कैसी हो ? उम्मीद है पहले से बेहतर होगी। समझ नहीं आ रहा इतने सालों बाद क्या बोलूं, क्या लिखूं, क्या पूछूं...... तुम्हारा फोन नंबर, ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट सब बन्द हैं , आठ साल हो गए त्रिधा....... कब तक भागती रहोगी अपने ही लोगों से ? अगले हफ़्ते तुम्हारे प्रभात की शादी की पांचवी सालगिरह है। शादी में तो नहीं आईं त्रिधा अब तो आ जाओ , तुम ही तो कहती थी न कि प्रभात मैं कभी तुमसे मुंह नहीं मोडूंगी, तुम्हारे बच्चों के साथ मिलकर तुम्हें तंग किया करूंगी तो अब क्यों मुझे भुला दिया त्रिधा?
मेरी प्यारी त्रिधा,कैसी हो ? उम्मीद है पहले से बेहतर होगी। समझ नहीं आ रहा इतने सालों बाद क्या बोलूं, क्या लिखूं, क्या पूछूं...... तुम्हारा फोन नंबर, ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट सब बन्द हैं , आठ साल हो गए ...और पढ़ेकब तक भागती रहोगी अपने ही लोगों से ? अगले हफ़्ते तुम्हारे प्रभात की शादी की पांचवी सालगिरह है। शादी में तो नहीं आईं त्रिधा अब तो आ जाओ , तुम ही तो कहती थी न कि प्रभात मैं कभी तुमसे मुंह नहीं मोडूंगी, तुम्हारे बच्चों के साथ मिलकर तुम्हें तंग किया करूंगी तो अब क्यों मुझे भुला दिया त्रिधा?
अगले दिन सुबह त्रिधा कॉलेज पहुंची तो फिर संध्या उसे लेकर कॉलेज के सेमिनार हॉल में पहुंच गई जहां आज उन्हें प्रभात और एक अन्य लड़का भी मिला।" तुम यहां कैसे ? " त्रिधा ने प्रभात से पूछा।" तुम ...और पढ़ेकैसे ? " प्रभात ने भी वही सवाल दोहरा दिया।" रैगिंग से बचने के लिए " त्रिधा ने मासूमियत से कहा।" तो मैं भी इसलिए ही यहां हूं " प्रभात ने कंधे उचकाते हुए कहा जैसे उसे त्रिधा से ऐसे बचकाने सवाल कि उम्मीद न हो।" ओह हां " त्रिधा ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा।" वैसे संगत
अगले दिन त्रिधा कॉलेज के लिए तैयार होते वक़्त आइने में कुछ ज्यादा ही देर अपने अक्स को देखती रही वहीं माया के फोन में आज भी गाना चल रहा था - महबूब मेरे, महबूब मेरे महबूब मेरे, महबूब ...और पढ़ेतू है तो दुनिया, कितनी हसीं हैजो तू नहीं तो, कुछ भी नहीं हैमहबूब मेरे, महबूब मेरे महबूब मेरे, महबूब मेरे...गाने के बोलों ने एक बार फिर त्रिधा को हर्षवर्धन के ख़यालों में उलझा दिया। आज त्रिधा ने हल्के पीले रंग का सूट पहना हुआ था जिसपर छोटे छोटे लाल फूल और चांदी के रंग के पत्ते बने हुए थे, कानों में पहने उसकी
अगले दिन रविवार था और प्रभात सुबह से माया के फोन पर फोन कर कर के त्रिधा से मॉल जाने के लिए ज़िद कर रहा था और त्रिधा की समझ से बाहर था कि आखिर प्रभात को अचानक हुआ ...और पढ़ेहै इतने महीनों में तो कभी भी कॉलेज के अलावा कहीं जाने के लिए, मिलने के लिए ज़िद नहीं की फिर अचानक क्या हुआ। त्रिधा अभी सोच ही रही थी कि दोबारा फोन बजने लगा और माया उसके सामने आकर खड़ी हो गई और मुंह टेढ़ा करते हुए बोली " उसका इश्क़ चाय सा और तुम डायबिटीज की मरीज़ सी
" ऐसा भी क्या हो गया माया ? " त्रिधा ने पूछा। " जब मैं राजीव से मिलने पहुंची तो उसने मुझे कहा कि अब वह...कि अब वह... " माया आगे न बोल सकी और फिर रोने लगी। एक ...और पढ़ेफिर त्रिधा ने उसे चुप करवाया, उससे कुछ देर शांत होकर बैठने के लिए कहा और खुद जाकर कॉफी बना लाई फिर एक कप माया की ओर बढ़ाते हुए कहा " अपना दिमाग शांत करो माया और जो भी बात है मुझसे शेयर करो ताकि तुम्हारे मन पर कोई बोझ न रहे " माया, त्रिधा की बात समझ रही थी