Lata sandhy-gruh book and story is written by Rama Sharma Manavi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Lata sandhy-gruh is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
लता सांध्य-गृह - उपन्यास
Rama Sharma Manavi
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
प्रथम अध्याय----------------- आज मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि मैंने अपनी पत्नी लता के एक अहम स्वप्न को साकार रूप दे दिया है।आज हमारे वृद्धराश्रम का आधिकारिक रूप से शुभारंभ हो गया है, जिसमें फिलहाल मुझे लेकर कुल सात सदस्य हैं।दस कमरों में बीस लोगों के निवास की व्यवस्था है।हर कमरे से मिला हुआ लैट-बाथरूम है।यदि पति-पत्नी हैं तो दोनों एक कमरे में रहते हैं, अन्य कमरों में दो-दो महिलाएं या दो पुरुष रहते हैं।एक साथ दो लोगों का रहना इसलिए भी आवश्यक है कि पता नहीं रात-बिरात कब किसी को क्या परेशानी होने लगे तो दूसरा व्यक्ति किसी
प्रथम अध्याय----------------- आज मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि मैंने अपनी पत्नी लता के एक अहम स्वप्न को साकार रूप दे दिया है।आज हमारे वृद्धराश्रम का आधिकारिक रूप से शुभारंभ हो गया है, जिसमें फिलहाल मुझे लेकर ...और पढ़ेसात सदस्य हैं।दस कमरों में बीस लोगों के निवास की व्यवस्था है।हर कमरे से मिला हुआ लैट-बाथरूम है।यदि पति-पत्नी हैं तो दोनों एक कमरे में रहते हैं, अन्य कमरों में दो-दो महिलाएं या दो पुरुष रहते हैं।एक साथ दो लोगों का रहना इसलिए भी आवश्यक है कि पता नहीं रात-बिरात कब किसी को क्या परेशानी होने लगे तो दूसरा व्यक्ति किसी
पूर्व कथा जानने के लिए प्रथम अध्याय अवश्य पढ़ें ।द्वितीय अध्याय--------------------गतांक से आगे …… समय धीरे धीरे व्यतीत हो रहा है, अब मेरे सांध्य-गृह में 10 सदस्य हो चुके हैं, इनमें सभी शिक्षित एवं अच्छे परिवारों से ...और पढ़ेहैं।सबकी अपनी कहानियां हैं, अपने दुःख हैं, मजबूरी है।मैं दान नहीं लेता अपने आश्रम अर्थात घर के संचालन के लिए, बल्कि सभी अपना ख़र्च वहन करते हैं, क्योंकि सभी आर्थिक रूप से पूर्ण सक्षम हैं।मेरा मूल सिद्धांत है कि उम्र के इस काल में हमउम्र हम सब मिलकर एक दूसरे का अकेलापन बांट सके। आज मैं बात कर
पूर्व कथा को जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें… तृतीय अध्याय--------------गतांक से आगे…. रमेश जी एवं अभय जी एक कमरे में रहते हैं, वे अभिन्न मित्र होने के साथ साथ समधी ...और पढ़ेहैं।उनकी प्रथम मुलाकात हुई थी जब उन्होंने स्नातक में प्रवेश लिया था, रमेश जी मैथ से थे एवं अभय जी बायो के विद्यार्थी, परन्तु फिजिक्स दोनों का कॉमन सब्जेक्ट था।मित्रता होने के लिए पूरे दिन के साथ की आवश्यकता होती भी नहीं है। जहां रमेश शांत प्रकृति के व्यक्ति थे वहीं अभय वाकपटु, किंतु दोनों में एक बात जो समान थी पढ़ाई के प्रति
पहले की कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।चतुर्थ अध्याय---------------गतांक से आगे…. चौथे कमरे में रहते हैं दिवाकर जी अपनी धर्मपत्नी रोहिणी जी के साथ। वे एक कस्बे से विकसित हुए छोटे से शहर ...और पढ़ेअपने दो छोटे भाइयों के साथ निवास करते थे।पिता एक किसान थे।सौभाग्य से उनके खेतों के सामने से सड़क निकलने के कारण उन्हें उनकी सड़क की जमीन के लिए सरकार से अच्छा खासा मुआवजा प्राप्त हुआ था, उस धन का सदुपयोग उन्होंने सड़क से लगी जमीन पर छः दुकानें एवं दो-दो दुकानों के पीछे 4-4 कमरों के तीन मकान बनवा लिए थे,तीनों भाइयों
पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें। पंचम अध्याय-----------------गतांक से आगे….--------------- पांचवें कमरे में रहते हैं पचपन वर्षीय अविवाहित नीलेश,मस्तमौला, बिल्कुल आजाद परिंदा।आप सोच रहे होंगे कि एक प्रौढ़ व्यक्ति को वृद्धाश्रम ...और पढ़ेरहने की आवश्यकता क्या पड़ गई।तो उनकी कहानी कुछ यूं है--- नीलेश के पिता एक उच्च व्यवसायी एवं मां एक अत्याधुनिक महिला थीं।पिता धन कमाने में व्यस्त रहते तथा मां अपनी पार्टियों एवं कथित समाजसेवा में। जब दौलत बेहिसाब होता है और कोई रोक-टोक करने वाला न हो तो बच्चों के कदम बहकने से कौन रोक सकता है।पढ़ाई--लिखाई में तो नीलेश का