Nakti book and story is written by Rohitashwa Sharma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Nakti is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
नकटी - उपन्यास
Rohitashwa Sharma
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
संजय रास्ता पूछता हुआ देवीपुरा की तरफ जा रहा था। सड़क पर देवीपुरा का बोर्ड देखकर समझ गया कि देवीपुरा पास ही है। उसने बोर्ड मेंदिखाई दिशा में मोटरसाइकिल मोड़ दी। कुछ घर नज़र आने लगे थे। रास्ते चलती महिला से उसने पूछा" जोगी कानदास कहाँ रहते हैं?""बस थोड़ा आगे दाहिनी तरफ उनकी झोंपडी दिख जाएगी।"संजय झोंपडी में पहुँचा। वहां जोगी कानदास अपनी झोंपडी को ठीक करने में लगे हुए थे"जय भोले नाथ""बम बम भोले। बेटा यहाँ के तो नहीं लग रहे, कहाँ से आये हो?""यहीं का हूँ। दूर आपने पहुँचाया। मैं हरसी का बेटा संजय।"कानदास सुनकर घबरा गये। उसे
बसंत और हरसी अपने जीवन में बहुत खुश थे लेकिन कुछ अपनों को ही उनकी ख़ुशी बर्दाश्त न थी और उनके खिलाफ षड़यंत्र रचते रहते थे और एक दिन वे लोग सफल भी हो गए
हरसी की हँसती खेलती जिंदगी में एक भूचाल आ गया। बसंत की हत्या का दुःख तो था ही अब वे लोग और भी हावी हो गए थे और उसका सब कुछ लूट लेना चाहते थे वह जीना नहीं चाहती ...और पढ़ेलेकिन एक ऐसा कारण था कि मर भी नहीं सकती थी
जीप हरसी को लेकर शहर महेश के घर पहुँची। महेश और उसकी माँ वहाँ पहले से तैयार थे। हरसी को वे सीधे हॉस्पिटल लेकर गये। महेश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के बावजूद भी उसने हरसी को ...और पढ़ेबहन मानकर बहुत सेवा की।हरसी को सात दिन में छुट्टी मिल गयी लेकिन उसके चेहरे पर ख़रोंच और नाक कटने के निशान रह गये थे। महेश ने महेश की सब्जी की दुकान थी। हरसी धीरे धीरे घर के कामों में हाथ बटाने लगी। घर के बाद वह महेश के साथ दुकान पर भी जाने लगी। महेश ने उसको बहुत मना
सुबह सुबह ग्यारह बजे का समय था। चरण फाईनेंस के ब्रांच मैनेजर गुप्ता जी ऑफिस की फाइलें निपटाने में व्यस्त थे। किसी ने दरवाजा खटखटाया। गुप्ता जी ने गर्दन ऊँची की वहाँ एक लड़की खड़ी थी। “अरे कंचन, ...और पढ़ेआओ।“ “गुड मॉंर्निग अंकल” कंचन ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए कहा। गुप्ता जी ने पूछा "तुम्हारे पापा ने इस ऑफिस में लम्बी नौकरी की है। कैसे हैं आज कल?” "जी अच्छे हैं, आपको बहुत याद करते हैं।“ कंचन फिर रुक कर बोली "अंकल मैं एक व्यक्तिगत काम से आपके पास आयी हूँ।" "कहो बेटी , कुछ लोन चाहिए?" “नहीं अंकल, अंकल
शाम को संजय कंचन के साथ घूम रहा था। “कैसा रहा तुम्हारा दिन?” “तुम क्या सोचती हो?” “ये डिफाल्टर बडे ही ढीठ किस्म के लोग होते हैं ।“ “अरे नहीं। बड़े ही सोफस्टिकेटेड लोग हैं । पिछली बार शायद ...और पढ़ेनहीं पाए। इस बार मैं गया और उनको इज्जत दे कर बात की तो वे मान गये। प्रतीक ने चैक दे दिया है। मनीष कल जमा करवा देगा।“ “क्या बात है गुरू! फिर तो तुम्हे मेरी जरूरत ही नहीं रहेगी।“ “ऐसा हुआ है कभी कि ज़िन्दगी को साँसों की जरुरत ना रहे“ संजय ने उसकी नज़रों में झांकते हुए कहा ।