My One Sided Love book and story is written by Shubham Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. My One Sided Love is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
My One Sided Love - उपन्यास
Shubham Singh
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
यह कोई कहानी नहीं है ,यह एक कोशिश है उस प्यार को वापस लाने की जो आज हमारे इस समाज से कहीं खो सा गया है....और मुझे पूरा विश्वास है इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके लिए प्यार का मतलब बदल जाएगा -Shubhaम आज का दिन। आज इतने साल बाद भी मन में बस एक ही सवाल है.....क्या 10 साल पहले जो मैंने किया था वो गलत था? आखिर क्यों मैंने उस राश्ते को चुना जो मुझे मेरे ही अपनों से दूर ले गया? पर कभी कभी लगता है शायद ऐसे भी कुछ राश्ते होते हैं जिनकी हमे मंजिल तो पता नहीं रहती
यह कोई कहानी नहीं है ,यह एक कोशिश है उस प्यार को वापस लाने की जो आज हमारे इस समाज से कहीं खो सा गया है....और मुझे पूरा विश्वास है इस कहानी को पढ़ने के बाद आपके लिए प्यार ...और पढ़ेमतलब बदल जाएगा -Shubhaम आज का दिन। आज इतने साल बाद भी मन में बस एक ही सवाल है.....क्या 10 साल पहले जो मैंने किया था वो गलत था? आखिर क्यों मैंने उस राश्ते को चुना जो मुझे मेरे ही अपनों से दूर ले गया? पर कभी कभी लगता है शायद ऐसे भी कुछ राश्ते होते हैं जिनकी हमे मंजिल तो पता नहीं रहती
किचन से माँ की आवाज आती है” कृष उठ जा ,तेरे पापा ऑटो लेने गए हैं, कहीं तेरी ट्रैन ना निकल जाए ” कृष माँ की आवाज सुन कर उबासी लेते हुए उठता है। ”उठ गया माँ” कृष ...और पढ़ेमें जाता है और नहा कर बाहर आता है और अपनी आलमारी खोलता है कपडे लेने क लिए। उसकी अलमारी में भी हर तरफ राधा राधा ही लिखा रहता है वो इस नाम को देख कर ऐसे मुस्कुराता है जैसे उसकी अलमारी में सच में उसकी राधा बैठी हो ।कृष अब तक राधा नाम की किसी लड़की से नहीं मिला था। पर फिर भी जितना प्यार वो इस नाम से
कृष - ओके पापा.माँ मै चलता हूँ। (कृष माँ के पैर छूता है और बहन को गले लगा कर बाहर आकर ऑटो में बैठ जाता है) (मेरे पापा भी उसके साथ जा रहे है ऑटो में,मुझे स्टेशन छोड़ने। ये ...और पढ़ेबार था जब मै ऐसे घर से दूर जा रहा। वैसे तो जबसे ये तय हुआ था की मैं देहरादून जा रहा तबसे कई बार हम दुखी हो जाते थे की अब मैं दूर चला जाऊंगा पर आज देरी होने के कारण सारा ध्यान ट्रेन छूट ना जाए उसपे था। ऑटो बढ़ गया जैसे ऑटो गली में मुड़ा मैं पीछे पलट के
(तभी ट्रेन एक स्टेशन पर रूकती है और एक छोटा सा लड़का आ कर उनकी सीट के पास खड़ा हो जाता है)प्रीन्स - अबे यह कौन है ??(अभी वो लोग सोचते ही रहते हैं की तभी उसके पीछे लाइन ...और पढ़े5 और लड़के आ कर खड़े हो जाते हैं, बिलकुल मोबाइल के नेटवर्क की तरह। )प्रीन्स - अच्छा ,तभी मै कहू मेरे फ़ोन में नेटवर्क क्यों नहीं आ रहा है, नेटवर्क तो यहाँ खड़ा है। अमर - अबे उसमे भी 4 ही लाइन होती हैं यह तो 6 हैं। कृष - नेटवर्क तो आ गया पर मोबाइल कहा है..आई मीन