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बना रहे यह अहसास - उपन्यास
Sushma Munindra
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
घटना सिर्फ एक बार घटती है जब अपनी प्रामाणिकता में वस्तुतः घट रही होती है। वही घटना स्मृति में बार-बार घटती है। विचारों में भिन्न तरह से घटती है। विचारों के अनुसार घटना को महसूस करना उतना ही सच होता है, जितना प्रामाणिकता में घटना का वस्तुतः घटित होना। घटना का परिणाम भले ही उस एक मुश्त समय का अनुभव हो लेकिन विचार के आधार पर घटना का परिप्रेक्ष्य, उद्देश्य, कारण, महत्व अलग असर लिये होता है। यह असर अक्सर सम्पूर्ण जीवन का सबूत बन जाता है। वे परिणाम, प्रभाव, आभास, अनुभूतियाँ, जीवन को बनाने-बिगाड़ने में जिनकी खास भूमिका नहीं होती, स्मृति से डिलीट हो जाती हैं लेकिन वे संवाद और दृश्य जो जीवन को एक श्रेणी देते हैं अक्सर, खास कर अंतिम समय में ऐसे सक्रिय हो जाते हैं कि कमजोर स्मरण शक्ति वाले व्यक्ति हतप्रभ हो जाते हैं, उन्हें कितना अधिक याद है।
बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 1 घटना सिर्फ एक बार घटती है जब अपनी प्रामाणिकता में वस्तुतः घट रही होती है। वही घटना स्मृति में बार-बार घटती है। विचारों में भिन्न तरह से घटती है। विचारों के अनुसार ...और पढ़ेको महसूस करना उतना ही सच होता है, जितना प्रामाणिकता
बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 2 अस्पताल से अम्मा घर आ गईं। जिस शोचनीय दशा में गई थीं घर वापसी चमत्कार की तरह है। अनगढ़ लेकिन बहुत बड़ा, पुरानी बुनावट का लेकिन बहुत खुला, हवेली जैसा यह पुश्तैनी ...और पढ़ेमाताराम की क्रूरता, पप्पा के निरादर, सनातन और पंचानन की बेवकूफियों के कारण सदा अजनबी लगता रहा है। सनातन कभी बता रहा था एक बिल्डर बाजार मूल्य पर यह घर खरीद कर बहु मंजिला भवन बनाने का प्रस्ताव दे रहा है। अम्मा ने तब प्रतिक्रिया नहीं दी थी। घर वापसी पर सल्तनत जैसा भाव जागृत हुआ। इच्छा हुई घर के
बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 3 दिन बीत रहे हैं। सर्जरी की चर्चा नहीं। भरा है अम्मा का दिल। कभी फैसला नहीं ले पाई। न अपने लिये न दूसरों के लिये। यह पहला फैसला है। पैसा है इसलिये ...और पढ़ेपाईं वरना न लेती। पूतो का रुख समझ में नहीं आ रहा। भारतीय परिवारों की अज
बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 4 फेमिली पेंशन। सनातन, अम्मा को बैंक ले गया था - ‘‘अम्मा, कितना रुपिया निकालना है ?’’ 13 ‘‘ एक महीने की पूरी पिनसिन। देखें इतना रुपिया कैसा लगता है।’’ पेंशन लेकर अम्मा ...और पढ़ेचाल से घर आईं। हाव-भाव में दृढ़ता। चेहरे में गौरव। अब अपनी मर्जी से जियेंगी। लेकिन वाल्व खराब ..................। तैयारी यामिनी की। दिल्ली जा रही है सरस। गौतमजी ने स्पष्ट कहा ‘‘यामिनी, तुम अम्मा के घर की चाकरी बजाने नहीं जाओगी।’’ ‘‘अम्मा की सर्जरी होनी है। मान-अपमान भूलकर उनकी मदद करनी चाहिये। उनके न रहने पर वैसे भी कोई नहीं
बना रहे यह अहसास सुषमा मुनीन्द्र 5 अम्मा को एडमिट कर लिया गया। उनके साथ मरीज की तरह व्यवहार होने लगा। वर्दीधारी कर्मचारी ने स्टाफ और भर्ती मरीजों के लिये आरक्षित लिफ्ट से उन्हें तीसरी मंजिल के आवंटित कक्ष ...और पढ़ेपहुँचा दिया। दीवार से लेकर बिस्तर तक सफेद रंग में एक सार हुआ सुंदर कक्ष। अम्मा को राजसी बोध हुआ। इतनी समर्थ हैं कि अपने लिये थोड़ा ठाट जुटा सकती हैं। बंगलों में रही हैं पर पप्पा ने समर्थ होने का बोध कभी नहीं होने दिया। मरीज के कमरे में दो व्यक्ति ही रह सकते हैं। पात्रता के लिये पर्ची