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संगम - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
ये किसे ले आया अपने साथ?मास्टर किशनलाल ने अपने नौकर दीनू से पूछा।
मालिक,हैजे से पत्नि चल बसी,ये अकेली जान कैसे रहता गांव में, कोई रिश्तेदार भी तो ऐसा भरोसेमंद नहीं है, जिसके पास इसे छोड़ देता,मेरा एक छोटा भाई है लेकिन उसकी पत्नी की वजह से उसकी चलती नही है, ये इसे पढ़ने का बहुत शौक़ है और होशियार भी है, मैंने सोचा आपकी छत्रछाया में रहेगा तो और होशियार हो जाएगा पढ़ने में, किशनलाल जी का नौकर दीनू बोला।
मास्टर किशनलाल बोले,इधर आओ,क्या नाम है? तुम्हारा!!
जी, मालिक, श्रीधर,उस सोलह साल के बच्चे ने जवाब दिया।
बहुत अच्छी बात है,दीनू...
अगर तुम्हारा बेटा पढ़ना चाहता है, जो मुझसे बन पड़ेगा, मैं करूंगा, इसके लिए, मास्टर किशनलाल बोले।
आपकी बहुत बहुत कृपा,मालिक, आपका घर खुशियों से भरा रहें,आप सदा ऐसे ही मुस्कुराते रहे, दीनू बोला।
तभी मास्टर जी की मुस्कान को नजर लग गई, उनकी दूसरी पत्नी सियादुलारी की कर्कश आवाज सुनाई पड़ी___
पता नहीं,एक काम ठीक से नहीं कर सकती, कुछ काम-काज ठीक से नहीं सीखेंगी तो ससुराल वाले कहेंगे कि, हां कुछ नहीं सिखाया मां ने सौतेली मां जो ठहरी।
अरे,दीनू, ये किसे ले आया अपने साथ?मास्टर किशनलाल ने अपने नौकर दीनू से पूछा। मालिक,हैजे से पत्नि चल बसी,ये अकेली जान कैसे रहता गांव में, कोई रिश्तेदार भी तो ऐसा भरोसेमंद नहीं है, जिसके पास इसे छोड़ देता,मेरा एक ...और पढ़ेभाई है लेकिन उसकी पत्नी की वजह से उसकी चलती नही है, ये इसे पढ़ने का बहुत शौक़ है और होशियार भी है, मैंने सोचा आपकी छत्रछाया में रहेगा तो और होशियार हो जाएगा पढ़ने में, किशनलाल जी का नौकर दीनू बोला। मास्टर किशनलाल बोले,इधर आओ,क्या नाम है? तुम्हारा!! जी, मालिक, श्रीधर,उस सोलह साल के बच्चे ने जवाब दिया। बहुत
छोटा सा कस्बा है, रामपुर ! जहां मास्टर किशनलाल रहते हैं ,कस्बा छोटा जरूर है लेकिन स्कूल और कालेज की सुविधा है वहां पर____ मास्टर किशनलाल का पूरा नाम किशनलाल उपाध्याय है, सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई तो ...और पढ़ेलोग सम्मान में मास्टर जी कहने लगे, ऐसा नहीं है कि उन्हें रूपए-पैसे की दिक्कत है इसलिए सरकारी नौकरी कर रहे हैं,बस उन्हें बच्चों को पढ़ाने का बहुत शौक है,कस्बे से उनका गांव ज्यादा दूर नहीं है लेकिन मां-बाप की अकेली संतान थे और मां-बाप के जाने के बाद कौन से नाते-रिश्तेदार सगे होते हैं इसलिए गांव छोड़कर कस्बे में
सुबह के समय___ प्रतिमा नाश्ता लेकर आई, बोली काका नाश्ता कर लो,आज चने की दाल की पूड़ी और लौकी का रायता है साथ में लहसुन की चटनी भी है,रात में खाना तो कम नहीं पड़ा था। हां, थोड़ा बहुत ...और पढ़ेकाम चल गया था, दीनू बोला। ऐ सुनो.... श्रीधर ने नहीं सुना___ प्रतिमा ने आवाज दी,ऐ तुम बहरे हो क्या? नहीं,मेरा नाम ऐ नहीं है,श्रीधर है,श्रीधर बोला। अच्छा जो भी तुम्हारा नाम है,तुम मेरे साथ घर के अंदर चलो और तुम खाना वहीं खा लिया करो, काका बेचारे भूखे रह जाते हैं,प्रतिमा बोली। श्रीधर खड़ा रहा___ अब चलो,मेरा मुंह क्या
मास्टर किशनलाल जी के पुराने मित्र थे, सीताराम पाण्डेय वो एक बार मास्टर जी के घर आए, दोनों मित्र सालों बाद मिले थे, किसी विवाह में अचानक ही मुलाकात हो गई दोनों की तो मास्टर जी ने अपने घर ...और पढ़ेकर लिया, उन्होंने प्रतिमा के हाथ का खाना खाया और देखा कि प्रतिमा घर के कामों में कितनी सुघड़ है और साथ में सुंदर भी है तो उन्होंने उसे अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया। ये खबर मास्टर जी ने घर में सुनाई कि प्रतिमा को मेरे मित्र ने अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया है__
मास्टर जी को पूरा भरोसा था कि श्रीधर चोरी जैसा तुच्छ कार्य नहीं कर सकता, उन्हें अपने बेटे आलोक पर संदेह हो रहा था और सियादुलारी भी समझ तो रही थी लेकिन खुलकर नहीं बोल पा रही थी शायद ...और पढ़ेममता आड़े आ रही थी। मास्टर जी ने पुलिस से कहकर बारीकी से फिर से सारी खोज-बीन करवाई,सारी जांच के बाद पता चला कि आलोक ही दोषी है,उसी ने गहने चुराये थे, कुछ गहनों से उसने कर्जा चुका दिया था और कुछ आगे के खर्चे के लिए बचाकर गौशाला में छुपा दिए थे, सोचा था बाद में जरूरत पड़ने पर