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पलक - उपन्यास
Anil Sainger
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
मैं और विराट पहले एक ही कम्पनी में काम किया करते थे | लेकिन पिछले कुछ समय से उसे भूत सवार था कि इस कम्पनी में कोई भविष्य नहीं है और न ही ये कोई तरक्की देने वाले हैं | इसलिए जितनी जल्दी हो सके कम्पनी बदल लेते है | वह यहाँ नौएडा में ही एक किराए के मकान में अकेला रहता था इसलिए उसके लिए पैसे की ज्यादा अहमियत थी जबकि मैं पैसे से ज्यादा अनुभव पर जोर देता हूँ | मेरी सोच है कि पहले अनुभव प्राप्त कर लो फिर पैसे के बारे में सोचो | मेरे काफी
मैं और विराट पहले एक ही कम्पनी में काम किया करते थे | लेकिन पिछले कुछ समय से उसे भूत सवार था कि इस कम्पनी में कोई भविष्य नहीं है और न ही ये कोई तरक्की देने वाले हैं ...और पढ़ेइसलिए जितनी जल्दी हो सके कम्पनी बदल लेते है | वह यहाँ नौएडा में ही एक किराए के मकान में अकेला रहता था इसलिए उसके लिए पैसे की ज्यादा अहमियत थी जबकि मैं पैसे से ज्यादा अनुभव पर जोर देता हूँ | मेरी सोच है कि पहले अनुभव प्राप्त कर लो फिर पैसे के बारे में सोचो | मेरे काफी
पलक की बातों से मुझे मालूम हुआ कि वह मेरी कम्पनी के साथ वाली कम्पनी में ही काम करती है और मेरी तरह ही सेक्टर दस द्वारका की एक सोसाइटी में रहती है | उसकी माँ नहीं है और ...और पढ़ेपिता एक कम्पनी में डायरेक्टर हैं और ज्यादात्तर रात ग्यारह-बारह बजे तक ही घर आते हैं | आज ऑफिस में पार्टी की वजह से वह लेट हो गई है | मैं अभी उसकी बातों को अपने दिमाग में बिठा ही रहा था कि उसकी तेज आवाज मेरे कानो में पड़ी ‘साहिब कहाँ खो गए | आप सो तो नहीं गए