Me Vahi Hu book and story is written by Jaishree Roy in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Me Vahi Hu is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मैं वही हूँ! - उपन्यास
Jaishree Roy
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
मैं वही हूँ! (1) मैं नया था यहाँ। नई-नई नौकरी ले कर आया था। इलाके की सभी पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों की देख-रेख और मरम्मत की ज़िम्मेदारी थी मुझ पर। काम आसान तो नहीं था मगर मुझे पसंद था। बीत गया समय और उसकी स्मृति में बचे यह धरोहर अपनी जड़ों की ओर लौटने की पगंडडी जैसी थी और इन पर चल कर खुद तक या उससे भी आगे निकल जाना एक मात्र नशा था जो मैं वर्षों से करता रहा था। जिस उम्र में लोग पार्टी और सैर-सपाटे में समय गुजारते हैं, मैं वीरानियों में ईंट-पत्थर-गाढ़े के मलबों या
मैं वही हूँ! (1) मैं नया था यहाँ। नई-नई नौकरी ले कर आया था। इलाके की सभी पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों की देख-रेख और मरम्मत की ज़िम्मेदारी थी मुझ पर। काम आसान तो नहीं था मगर मुझे पसंद था। ...और पढ़ेगया समय और उसकी स्मृति में बचे यह धरोहर अपनी जड़ों की ओर लौटने की पगंडडी जैसी थी और इन पर चल कर खुद तक या उससे भी आगे निकल जाना एक मात्र नशा था जो मैं वर्षों से करता रहा था। जिस उम्र में लोग पार्टी और सैर-सपाटे में समय गुजारते हैं, मैं वीरानियों में ईंट-पत्थर-गाढ़े के मलबों या
मैं वही हूँ! (2) उस तरफ देखते हुये मुझे तेज डर की अनुभूति हुई थी! शरीर में झुरझुरी फैल गई थी- यह कैसे संभव है! जिसे जीवन में कभी नहीं देखा उसे सपने में देखता हूँ और अब वह ...और पढ़ेके उजाले में आँखों के सामने है! इच्छा हुई थी, वहाँ से उसी क्षण लौट चलूँ मगर मोहाविष्ट-सा खड़ा रह गया था। प्रतीत हो रहा था, कुछ अदृश्य मुझे हाथ के इशारे से अपने पास बुला रहा है। अचानक चली तेज हवा में सघन पेड़ दुहरे हो गए थे। कोई जंगली बत्तख चीखते हुये सर के ऊपर से गुजरा था...मैंने
मैं वही हूँ! (3) बिस्तर में देर तक करवटें बदलने के बाद मैं उठ कर बाहर आ गया था। उस समय रात के तीन बजे थे। धूसर नील आकाश में पश्चिम की ओर झुके चाँद के पास का सितारा ...और पढ़ेउजला दिख रहा था। उजला और बड़ा। जैसे किसी भी क्षण टूट पड़ेगा! उसी ओर देखते हुये मैं आगे बढ़ रहा था जब मुझे सुरंग के पास कुछ अस्पष्ट-सी आवाजें सुनाई पड़ी थी। खजाने के संधान में निकले कोई चोर-उचक्के ना हो! तम्बू से टॉर्च ले कर मैं दबे पाँव सुरंग के पास चला गया था। मेरे पास पहुँचते ही
मैं वही हूँ! (4) “दीपेन! तुम्हें मेरा नाम किसने बताया? मेरा सर चकराने-सा लगा था। वह अचानक पलट कर देखी थी, उस समय उसकी नश्वार पुतलियों में हंसी की सुनहली झिलमिल थी- क्यों, तुम्हीं ने तो मुझे वेनिस में ...और पढ़ेथा... भूल गए लिजा को इतनी जल्दी? लिजा...! यह नाम सुनते ही मेरी आँखों के सामने उस ब्राजिलियन लड़की का चेहरा घूम गया था जिससे मेरी कुछ ही दिनों में गहरी दोस्ती हो गई थी। “तो क्या तुम ही...” मेरे प्रश्न को अनसुना कर वह पहाड़ी के किनारे जा खड़ी हुई थी और नीचे झाँकने लगी थी- तुम जिससे भी