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किस्मत. - उपन्यास
Anil Sainger
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
मैं रोज की तरह मेट्रो स्टेशन अभी पहुंचा ही था कि सामने से मेट्रो आती दिखी | मैंने जल्दी से अपने कानों में इयरफोन ठूंसा और ट्रेन का दरवाज़ा खुलते ही डब्बे में घुस गया | किस्मत अच्छी थी कि दरवाजे के पास ही एक सीट खाली थी | मैं लपक कर उस पर जा बैठा | मेरे बैठते ही ट्रेन का दरवाजा बंद हुआ और ट्रेन सरपट गति से दौड़ पड़ी | इत्मीनान से बैठने के बाद मैंने जब अपने आस-पास बैठे लोगों को देखा तो पाया कि कुछ लोग या तो चुप-चाप बैठे थे या फिर मेरी तरह
मैं रोज की तरह मेट्रो स्टेशन अभी पहुंचा ही था कि सामने से मेट्रो आती दिखी | मैंने जल्दी से अपने कानों में इयरफोन ठूंसा और ट्रेन का दरवाज़ा खुलते ही डब्बे में घुस गया | किस्मत अच्छी थी ...और पढ़ेदरवाजे के पास ही एक सीट खाली थी | मैं लपक कर उस पर जा बैठा | मेरे बैठते ही ट्रेन का दरवाजा बंद हुआ और ट्रेन सरपट गति से दौड़ पड़ी | इत्मीनान से बैठने के बाद मैंने जब अपने आस-पास बैठे लोगों को देखा तो पाया कि कुछ लोग या तो चुप-चाप बैठे थे या फिर मेरी तरह
इसी उधेड़बुन में एक और हफ्ता गुजर गया | उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह करे तो क्या करे | इसी बीच एक अनजान नंबर से उसे कई बार फ़ोन आ चुका था लेकिन वह उठा ...और पढ़ेरही थी | एक दिन परेशान हो उसने उस अनजान नंबर से बात करने की सोची ही थी कि उस नंबर से फिर घंटी बज उठी | उसने फ़ोन उठाया और ‘हेलो’ कहा ही था कि दूसरी तरफ से बोलने वाले ने अपना परिचय देते हुए बोलना शुरू किया तो जैसे-जैसे वह सुनती जा रही थी वैसे-वैसे उसका चेहरा ख़ुशी